यह लेख पत्रकारिता का चेहरा बता रहा है..

ये एंकर्स, सिस्टम को फेल करने वाले वायरस हैं


यह तो आप जानते ही हैं कि यूँ ही कोई बेवफ़ा नहीं होता। रही होगी उनकी कोई मजबूरी। उनके मालिकों-संपादकों की पूँछ कहीं दबी होगी या कोई अर्ज़ी कहीं किसी के दरबार में लगी होगी। पूछने पर भी वे नहीं मानेंगे कि सिस्टम हैक हुआ है। वे सिस्टम-सिस्टम करते रहेंगे, ताकि लोग उसी में अटके रहें और हैकर्स के बारे में भूल जाएं। 


5ef5b61ba7c2eरणघोष खास. मुकेश कुमार की कलम से


टीवी चैनलों और उनके ऐंकरों ने घोषणा कर दी है कि सिस्टम फेल हो गया है। हालाँकि ऐंकरों की घोषणाओं को कोई गंभीरता नहीं लेता और लिया भी नहीं जाना चाहिए, क्योंकि वे ख़बरों को लेकर कभी गंभीर नहीं रहते हैं। मगर चूँकि वे सिस्टम के अंदर घुसे हुए हैं और उसका हिस्सा हैं, इसलिए उनकी घोषणा का महत्व तो है ही। इसलिए करबद्ध प्रार्थना है कि उनकी घोषणा को गंभीरता से लिया जाए।अब आपका प्रश्न होगा कि बतोलेबाज़ ऐंकरों ने सिस्टम के फेल होने की जो बात कही है उसमें नया क्या है? देश को तो बहुत पहले पता चल गया था कि सिस्टम फेल हो गया है। दर्शक मीडिया के चाल-चरित्र और लक्षणों को, उसके व्यवहार को, प्राइम टाइम की बहसों और समाचारों को बहुत पहले से देखकर महसूस कर रहे थे कि सिस्टम तो गयो।ऐंकरों और रिपोर्टरों के हाव-भाव, रंग-ढंग, दबाव-प्रभाव से उन्होंने जान लिया था कि अब ये सिस्टम काम नहीं कर रहा है, इसे हैक कर लिया गया है।

यूँ ही कोई बेवफ़ा नहीं होता

चूँकि प्रश्न पूछना जिज्ञासुओं का मर्ज़ है इसलिए आप ये भी ज़रूर पूछेंगे कि ऐंकरों ने हैकिंग वाली बात क्यों नहीं बताई, हैकर्स के बारे में कोई ज़िक्र क्यों नहीं किया। यह तो आप जानते ही हैं कि यूँ ही कोई बेवफ़ा नहीं होता। रही होगी उनकी कोई मजबूरी। उनके मालिकों-संपादकों की पूँछ कहीं दबी होगी या कोई अर्ज़ी कहीं किसी के दरबार में लगी होगी। पूछने पर भी वे नहीं मानेंगे कि सिस्टम हैक हुआ है। वे सिस्टम-सिस्टम करते रहेंगे, ताकि लोग उसी में अटके रहें और हैकर्स के बारे में भूल जाएं। मगर लोग इतने नासमझ भी नहीं हैं। वे बरसों से देख-समझ रहे हैं कि कैसे सिस्टम को हैक किया जा रहा है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैकर्स कैसे-कैसे वायरस भेज रहे हैं और उनका क्या असर सिस्टम पर पड़ रहा है। जो धर्म, क्रिकेट या किसी दूसरी अफीम के नशे में हैं उनको छोड़ दीजिए, मगर जागरूक लोग इसको देख भी रहे थे और बचाओ-बचाओ की गुहार भी लगा रहे थे। यह सी-1 कैपिटल का वायरस था, जिसमें कैपिटल यानी पूँजी सिस्टम को अपने हिसाब से चलाती थी। इसके साथ सी-2 वायरस आया, जो कि करप्शन का था। सी-3 वायरस कास्ट यानी जातिवाद का था, इसने सिस्टम में ऊँची जातियों को बैठा दिया। फिर आया सी-4 क्राइम वायरस। सिस्टम को अपराधियों से जोड़ना इसका मक़सद था। 

एलपीजी सीरीज़ के वायरस

सिस्टम इन हमलों से जूझ ही रहा था कि एलपीजी सीरीज़ के वायरस अटैक शुरू हो गए। इनमें ग्लोबलाइज़ेशन, प्रायवेटाइज़ेशन और लिबरलाइजेशन के तहत बड़े वायरस हमले किए गए, जिन्होंने सिस्टम के सारे फाइल-फोल्डर करप्ट कर डाले। कई ज़रूरी फाइलें नष्ट हो गईं और ज़रूरी जानकारियाँ भी चोरी कर ली गईँ। इसने बड़ी आबादी के खाते भी खाली कर डाले। इसी दौर में सी -4 वायरस आया जो कि सी-1 का नया वर्ज़न था। इसमें कैपिटल कार्पोरेट कंट्रोल में बदल गई और उसने एम यानी मार्केट सीरीज़ के कई वायरस हमले किए, जिनसे पुराना सिस्टम अस्त-व्यस्त हो गया। हालाँकि एथिकल हैकर्स सिस्टम को वायरस से बचाने के लिए पी  (पब्लिक) सीरीज़ के वायरस लगातार छोड़ते रहे, मगर वे इतने मज़बूत साबित नहीं हो पाए कि एलपीजी को ख़त्म कर पाते। एलपीजी के साथ ही एच (हिंदुत्व) सीरीज़ के वायरस का भी पहला हमला हुआ था। ये बहुत घातक हमला था, जिसने सिस्टम को अंदर से कमज़ोर करना शुरू कर दिया था। इसी सीरीज़ में एचएमपी (हिंदू-मुसलिम-पाकिस्तान) और एचएमटी (हिंदू-मुसलमान-टेररिज़्म) वायरस आए जो लगातार सिस्टम को कमज़ोर करते रहे। लेकिन 2014 के बाद हैकर्स ने एच  सीरीज़ का सबसे पॉवरफुल एचएम वायरस अटैक किया। वायरस इतना ख़तरनाक़ था कि ये मालिकों, संपादकों, ऐंकरों, रिपोर्टरों और तमाम पत्रकारों के दिमाग़ों में घुसकर तबाही मचाने लगा और उन्हें इसका पता ही नहीं चला। इसने उनके दिमाग़ों को हैक कर लिया और वे वही करने लगे जो हैकर्स कहते थे। असल में हैकर्स से सिस्टम को बचाने के लिए जो उपाय किए जाने थे वे समय रहते किए नहीं गए। एक मज़बूत एंटी वायरस सॉफ्टवेयर की ज़रूरत थी, मगर पायरेटेड वर्ज़न से काम चलाने की कोशिश की गई, जिसकी वजह से वायरस अटैक का हमला रुका नहीं। जब बहुत शोर मचा तो नया एंटी वायरस डाला गया मगर लाख चेताने के बावजूद उसे अपडेट नहीं किया गया और बाद में तो वह एक्सपायर ही हो गया।आपकी ये आशंका सही हो सकती है कि न्यूज़ चैनल और ऐंकर हैकर्स से मिले हो सकते हैं। इसलिए वे हैकर्स के बारे में कुछ नहीं बोलते, न ही ये बताते हैं कि एंटी वायरस की सेफ्टी वॉल कैसे ध्वस्त हो गई। बहुत से शंकालुओं को तो यहाँ तक लगता है कि ऐंकर दरअसल, हैकर्स के गिरोहों का हिस्सा है या क्या पता उनके द्वारा छोड़े गए वायरस ही हैं जो जनता के दिमाग़ों को हैक करने में लगे हुए हैं ताकि सिस्टम को हैक करने में उनके आकाओं को दिक्क़त न हो।

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