रणघोष की सीधी सपाट बात: कोसली में लक्ष्मण रेखा को पार करना आसान नहीं

 दीपेंद्र हुडा के लिए एक म्यान में दो तलवार रखना कहीं घातक नहीं बन  जाए  


रणघोष खास. सुभाष चौधरी

67 वर्षीय पूर्व मंत्री जगदीश यादव अब कांग्रेसी चेहरा बनकर कोसली में नजर आएंगे। इस फैसले से इस क्षेत्र की राजनीति में कितना बदलाव आएगा। इसे समझना जरूरी है।

जगदीश यादव ने 2024 के विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले कांग्रेस में आकर अपनी राजनीति का अंतिम दांव खेल दिया है। उसके बाद ना उनकी उम्र इसकी इजाजत देगी और ना हीं उनके परिवार से ऐसा चेहरा अभी तक अपनी पहचान बना पाया है जो उनकी विरासत को संभाल सके। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडडा एवं उनके बेटे राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुडडा के लिए कोसली से जगदीश यादव का उनके पास आना एक तरह जमीनी ताकत का बढ़ना है लेकिन साथ ही बराबर का नुकसान भी। अभी तक दीपेंद्र हुडडा के लिए पूर्व विधायक राव यादुवेंद्र सिंह ही कोसली का चेहरा बने हुए थे। यादुवेंद्र सिंह जिस रामपुरा हाउस की राजनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं जगदीश यादव की राजनीति उनके खिलाफत में पलती बड़ी होती रही है। लिहाजा एक म्यान में दो तलवार को लेकर चलना दीपेंद्र हुडडा को अच्छा खासा महंगा पड़ सकता है। साथ ही केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह कोसली से किसी भी सूरत में जगदीश यादव को उभरने नहीं देंगे इसके लिए वे किसी भी हद तक अपना दांव चला सकते हैं। एक समय भी था जब कांग्रेस में रहकर राव इंद्रजीत ही अपने छोटे भाई राव यादुवेंद्र सिंह को राजनीति में लेकर आए थे और 2013 से पहले दो बार विधायक बनाने में आगे रहे थे। भाजपा में आने के बाद राव ने इस सीट पर 2014 के चुनाव में कांग्रेसी प्रत्याशी अपने भाई राव यादुवेंद्र सिंह को इसलिए हराना पड़ा की इस लड़ाई में कहीं जगदीश यादव बाजी ना मार जाए। यह क्षेत्र रामपुरा हाउस की पारिवारिक राजनीतिक विरासत रहा है जिसे जगदीश यादव ही चुनौती देने में हिम्मत जुटा पाए थे। इसलिए 2024 चुनाव में रामपुरा परिवार किसी सूरत में जगदीश यादव के इरादों  को कामयाब नहीं होने देगा। इसलिए पिछले दो चुनाव लगातार हार चुके राव यादुवेंद्र सिंह को जगदीश यादव के लिए मनाना दीपेंद्र हुडडा के लिए पाकिस्तान से बातचीत में पीओके मांगना जैसा है। जाहिर है अभी से कोसली में कांग्रेस में वहीं घमासान शुरू हो जाएगा जो प्रदेश हाईकमान में हुडडा गुट एवं सुरजेवाला- शैलजा- किरण के बीच देखने को मिल रहा है।

 किसी के लिए आसान नहीं है लक्ष्मण रेखा पार करना

करीब पिछले चार सालों से कोसली को संभाल रहे भाजपा विधायक लक्ष्मण यादव की कार्यप्रणाली, पारिवारिक- सामाजिक एवं राजनीति व्यवहार एवं काम कराने के तौर तरीकों से इस सीट पर भाजपा पहले से बेहद मजबुत हुई है। लक्ष्मण यादव के पास कोसली की तस्वीर को बदलने का अच्छा खासा रिकार्ड कार्ड है। विधानसभा पटल पर 30 से ज्यादा बार कोसली के अनेक मसलों को प्रमुखता से उठाया। मुख्यमंत्री से लगातार मुलाकात कर अनेक परियोजनाओं को जमीन पर उतारा। जनता के बीच लगातार संपर्क बनाए रखा। जनता दरबार में समस्याओं को इधर उधर नहीं होने दिया। अधिकारियों को हावी नहीं होने दिया। सबसे बड़ी बात   विधायक बनने के बाद अपने स्वभाव एवं अंदाज को साधारण से विशेष नही होने दिया। लक्ष्मण यादव ने भाजपा को उस समय ज्वाइन किया जब यह पार्टी अपनी पहचान तलाश रही थी। भाजपा जिला अध्यक्ष रहकर लक्ष्मण यादव ने पूरे जिले में पार्टी को नई ताकत दी। इन तमाम खुबियों के चलते लक्ष्मण 2019 में यहां से टिकट लेने में कामयाब हो गए थे ओर अच्छी खासी वोटों से जीतकर चंडीगढ़ पहुंचे। चार सालों में इस क्षेत्र से विधायक के खिलाफ ऐसी कोई आवाज नही आई जिसने लक्ष्मण को परेशानी में डाला हो। भाजपा के वरिष्ठ नेता वीर कुमार यादव अब उम्र के ढलान पर पहुंच चुके हैं। पूर्व मंत्री विक्रम यादव जरूर पूरी तरह सक्रिय है। कुल मिलाकर लक्ष्मण यादव अभी तक भाजपा के रिकार्ड में  बेहतर भूमिका में हैं जिसके चलते हाईकमान उनका भरपूर उपयोग अन्य राज्यों के चुनाव में भी लगातार कर रही है। इसलिए लक्ष्मण रेखा को पार करना भी किसी के लिए आसान नहीं होगा।

आरती राव का कहां से चुनाव लड़ना मायने रखेगा

राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव 2024 में हर हाल में चुनाव लड़ेगी। कहां से मैदान में उतरेगी। इसके रोज समीकरण बदल रहे हैं। आरती ने भी अपने भाषण में जानबूझकर सस्पेंस बनाए रखा है जो उनकी पिता की तरह  समझदार राजनीति का इशारा कर रही है। इतना जरूर है कि आरती वहां हरगिज नहीं उतरेगी जहां परिवार किसी ना किसी रूप में चुनौती देता नजर आए। कोसली में उनके चाचा राव यादुवेंद्र पीछे कदम हटाते हैं तो यहां के लिए वह सोच सकती है। यहां मुकाबला कांग्रेस- भाजपा के बीच है। भाजपा के लिए टिकट मिलना आरती के लिए किसी सूरत में आसान नहीं है। राव इंद्रजीत 2024 के बाद भी  दिल्ली की राजनीति में बना रहना चाहते हैं। यहां पिता- पुत्री के लिए परिवारवाद की राजनीति सबसे बड़ा धर्म संकट बना हुआ है। इसलिए एक एक कदम सोच समझकर उठाया जा रहा है। राव बखूबी समझते हैं कि अगर इस बार आरती को चुनाव में नहीं उतारा तो उनकी राजनीति विरासत को लंबे समय तक संभालना मुश्किल हो जाएगा। युवा मतदाता अब परिवार के मुखिया की सलाह पर नहीं अपने तौर तरीकों से फैसले ले रहे हैं। ऐसे में परपंरागत वोट बैंक जनाधार भी राव का कमजोर होता जा रहा है। कुल मिलाकर कोसली सीट  को लेकर अभी से उथल पुथल शुरू हो गई है। जगदीश यादव की सक्रियता से तस्वीर साफ नजर आएगी।   

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