तो सेक्टरों में अवैध कब्जों पर वसूली करने वाले अधिकारी- कर्मचारी कलंक..
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
लिखना जरूरी था। लिखना ही चाहिए। जो लिख नहीं सकते उन्हें बोलना चाहिए। जो बोल नहीं सकते, खड़े रहना चाहिए। जो खड़े नहीं रह सकते उन्हें अपने गिरेबां में झांकना चाहिए। कोई बता सकता है अवैध कब्जों से भरे पड़े सेक्टरों पर कई सालों से आंखमूंद कर वसूली का खेल करते आ रहे हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने कई दशकों से खाना बदोस का जीवन जीते आ रहे गाडिया लुहार ही अतिक्रमणकारी क्यों लगे। वजह ये जरूरतमंद ओर मेहनत से अपना जीवन यापन करने वाली जाति के लोगों को इस महकमें की सेवा पानी करने का ज्ञान नहीं था ओर ना ही उनकी हैसियत की वे दिनभर की मजदूरी में कुछ हिस्सा उनका निकाल दे। ना इस जाति का कोई वोट बैँक है जिसके लालच में कोई नेता चला आए। ना इसका कोई सरदार है जो तौर तरीको से बात कर सके। ना ये पढ़े लिखे हैँ जो मीडिया या सरकारी महकमें से जानकारी लेकर समय रहते अपने लिए कोई कदम उठा ले। इन्होंने जब से होश संभाला है जनम से से लेकर मृत्यु चलते फिरते आशियाना में होती रही है। जहां खाली जगह मिलती है वहां अपना काम धंधा शुरू कर जीवन को आगे बढ़ाते रहे हैं।
शुक्रवार दोपहर बाद जिस तरह से शहरी विकास प्राधिकरण ने कार्रवाई की। उनके सामानों पर पीला पंजा चलाया। एक एक पाई जोड़ने वाले का पल झपकते ही हजारों का सामान मलबे में तब्दील कर दिया। कार्रवाई करने से पहले यह भूल गए कि पड़ने लगी कड़ाके की ठंड में ये रात कहां बिताएंगे। मासूम बच्चे कैसे खुले आसमान में रह पाएंगे। इन लुहारो की वजह से ऐसा क्या अतिक्रमण हो गया था की इंसानियत ओर मानवता को भरी सड़क पर शर्मसार कर दिया। इतना ही हौसला ओर ईमानदारी डयूटी में है तो सेक्टरों में ग्रीन बैल्ट के नाम पर अतिक्रमण को छोड़िए अवैध कब्जे तक कर लिए हैं। सीएम विंडो एवं अन्य शिकायतों की भरमार इस महकमों की फाइलों में धूल फांक कर रही है। कार्रवाई इसलिए नहीं होती हर भेजे गए नोटिस का जवाब सेवा पानी के बंद लिफाफे में बंद हो जाती है। कई सालों से रेजागंला पार्क के नाम पर हुडा की कई एकड़ जमीन पर तो सैकड़ों कंक्रीट से मजबूत झुग्गियां बनाकर वसूली का खेल चलता रहा। यहां तक की बिजली पानी का कनेक्शन भी जारी किया हुआ था। बड़े स्तर पर मीडिया ने शोर मचाया तो तत्कालीन डीसी अशोक कुमार गर्ग के कड़े रूख इसे मकहमें के अधिकारियों पर जूं रेंगी। अभी तक अवैध कब्जे पूरी तरह से हट नहीं पाए हैं। हम स्पष्ट कर देना चाहते हैँ कि गाडिया लुहार का पक्ष लेकर अतिक्रमण का समर्थन नहीं कर रहे। इस महकमें का कार्रवाई के नाम पर असली चरित्र सार्वजनिक कर रहे हैँ।
गाडिया लुहार अतिक्रमणकारी कैसे हो गए, प्रशासन सुध ले
गाड़िया लोहार (जिन्हें गाडुलिया लोहार या भी कहा जाता है। एक खानाबदोश समुदाय हैं । वे पेशे लौहार है जो बैलगाड़ी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैँ इसलिए इन्हें गाडिया लुहार भी कहा जाता है। वे आमतौर पर कृषि और घरेलू उपकरण बनाते और मरम्मत करते हैं।उनके पूर्वज सेना में लोहार थे और लोहार महाराणा प्रताप के वंशज होने का दावा करते हैं। मेवाड़. जब मेवाड़ मुगलोंके अधीन हो गया, तो महाराणा प्रताप जंगल की ओर भागे जहां उनकी मुलाकात इन लोगों से हुई जिन्होंने उनकी और उनके परिवार की मदद की। उन्होंने प्रतिज्ञा की कि जब तक महाराणा प्रताप चित्तौड़गढ़ को वापस नहीं जीत लेते, तब तक वे कभी भी अपनी मातृभूमि में नहीं लौटेंगे, कभी कहीं और नहीं बसेंगे और कभी भी एक छत के नीचे नहीं रहेंगे। लेकिन महाराणा प्रताप चित्तौड़ को वापस नहीं जीत सके और इसलिए लोहारों ने आज भी अपनी प्रतिज्ञा जारी रखी है हालांकि अब इनकी विचारधारा में बदलाव आ रहा है।