रणघोष अपडेट. रेवाड़ी. सुभाष चौधरी
नगर निकाय चुनाव में यह दिमाग से निकाल दीजिए कि किसी पार्टी की टिकट पर खड़े उम्मीदवार को जीताने के लिए कोई बड़ा नेता आएगा और भाषण देकर मतदाताओं को अपने विश्वास में ले लेगा। इस चुनाव में किसी भी तरह का कोई राष्ट्रीय या राज्य स्तर का मुद्दा काम नहीं करेगा। यह पूरी तरह से फेस टू फेस चुनाव है जिसमें सीधे तौर पर नगर पार्षद का चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार की हैसियत तय करेगी कि वह किस इरादे से जनता के बीच में आया है और अपने वार्ड को बेहतर बनाने के लिए उसके पास क्या विजन है। यही फार्मूला चेयरमैन पद के लिए आने वाले उम्मीदवारों पर पूरी तरह से लागू होगा। चेयरमैन वहीं बनेगा जिसके पास हर वार्ड में जमीनी पकड़ रखने वाले साफ सुथरे उम्मीदवार की टीम होगी।
यह मुकाबला किसी भी सूरत में एक तरफा या किसी भी तरह की इधर उधर की लहर का नहीं है। सीधे तौर पर त्रिकोणीय मुकाबला होगा जिसमें भाजपा- कांग्रेस के साथ कोई मजबूत निर्दलीय चेयरमैन उम्मीदवार की दावेदारी नजर आएगी। इसलिए दोनो राजनीतिक दल अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं। निर्दलीय चेहरा भी सामने आएगा। इतना जरूर है कि भाजपा चारों खाने गुटबाजी के चक्रव्यूह में घिर चुकी है। इतना समय नहीं है कि हाईकमान से ऐसा कोई टॉनिक लाए जो सभी के अंदर एकजुटता और जोश भर दें। हर रोज भाजपा कार्यालय में चेयरमैन लड़ने के लिए आवेदन आ रहे हैं। कुछ ऐसे नए चेहरे हैं जो चौंकाने वाले हैं। ऐसे में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती किसी एक को टिकट मिलने पर सभी दावेदारों को एक छत के नीचे लाने की रहेगी। समय इतना कम है कि सबको साथ लेकर चलना अब आसान नहीं है।
सही मायनों में भाजपा की स्थिति उस राजा जैसी है जिसके पास बाहरी तोर पर दिखाने को सबकुछ है लेकिन अंदरखाने उतनी कमजोरियत है। इसलिए पार्टी को अपना उम्मीदवार घोषित करने में रोज अपना गणित बदलना पड़ रहा है। नगर निकाय चुनाव के प्रभारी प्रो. रामबिलास शर्मा की मौजूदगी में हरको बैंक चेयरमेन अरविंद यादव एवं विधानसभा चुनाव में रेवाड़ी सीट पर भाजपा प्रत्याशी रहे सुनील यादव के बीच हुई नोंक झोंक यह बताने के लिए काफी है कि जख्म भरना तो दूर यह चुनाव कहीं नमक छिड़कने का काम नहीं कर जाए। उधर कांग्रेस की कमान पूरी तरह से पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव के पास है। यहां चेयरमैन दावेदारों को लेकर कोई घमासान नहीं है। यह समय का फेर है। विधानसभा चुनाव में कप्तान परिवार नामाकंन भरने से पहले इस बात के लिए पूरी तरह तनाव में था कि हार को सम्मानजनक स्थिति में कैसे पहुंचाया जाए। इसलिए परिवार में पिता- पुत्र में किसे उतारा जाए। चुनाव में मिली भाग्यशाली जीत के बाद एक साल में बहुत कुछ बदल गया। आज नगर निकाय चुनाव में स्थिति बेहतर है तो इस उलझन में है कि परिवार से किसी को उतारा जाए या किसी खास समर्थक को आशीर्वाद कर लड़ाया जाए। यहीं समय की असल ताकत है।
अगर कप्तान अपने परिवार से विधायक चिरंजीव राव की पत्नी अनुष्का राव या पत्नी शकुंतला यादव को मैदान में उतारते हैं तो मुकाबला बेहद दिलचस्प होगा। उधर राव इंद्रजीत सिंह की सहमति से ही भाजपा कमेटी प्रत्याशी फाइनल करेगी। इसके बाद हार- जीत की कमान वार्ड स्तर पर लड़ने वाले उम्मीदवार के चयन पर होगी। यहां की गई अनदेखी किसी को भी भारी पड़ सकती है। मतदाता को पार्षद से रूटीन में अपने छोटे- छोटे कार्य करवाने होते हैं। इसलिए व्यवहार और छवि विशेष रहेगी। कुछ उम्मीदवार ऐसे भी होगे जो अचानक प्रकट होकर पार्टी की हवा में ही अपने वजूद को देख रहे हैं। हालांकि पार्षद चुनाव सिंबल पर नहीं है। इसके बावजूद यहां भी वार्ड स्तर पर पार्टी समर्थकों के धड़े साफ तोर से नजर आएंगे। कुल मिलाकर इस चुनाव में बाजी वहीं मारेगा जिसके पास कुशल प्रबंधन, पार्षद उम्मीदवारों की मजबूत टीम एवं शहर को मॉडल बनाने का शानदार विजन होगा।