रणघोष की सीधी सपाट बात : भाजपा में चालाक- शातिर कौन है, धनखड़ वाले या सीएम मनोहर की तरफ से आने वाले

मौजूदा हालात में सीएम मनोहर विरोधी दलों से ज्यादा अपनों से लड़ते नजर आ रहे हैं


रणघोष खास. सुभाष चौधरी

ऐसा लग रहा है हरियाणा के सीएम मनोहरलाल अपने विरोधी दलों से ज्यादा पार्टी के भीतर अपनों से ज्यादा लड़ते नजर आ रहे हैं। 2024 चुनाव के ठीक एक साल पहले प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ को हटवाकर कुरुक्षेत्र सांसद नायब सैनी की बराबर में सीट तैयार करवाना, गृह मंत्री अनिज विज के मिजाज को दायरे में समेटना। यह ऐसे तत्कालीन कदम है जिसकी आहट से भाजपा अंदर से इधर उधर हो रही है। सीएम के लिए सबसे मजबूत पक्ष दिल्ली से हाईकमान का साथ मिलना। इसमें पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह विशेष तौर से शामिल है। इसलिए सीएम के खिलाफ भाजपा के भीतर कोई भी नेता उन्हें सीधे चुनौती देने की हिम्मत नहीं जुटा पाया है। इसकी वजह भी साफ है सीएम मनोहरलाल पिछले 9 सालों में यह समझ चुके हैं कि उन्हें कमजोर करने का काम विरोधी दलों के नेताओं से ज्यादा अपनों ने ज्यादा किया है। चाहे वो संगठन में धड़ेबाजी के तौर पर रहा हो या फिर उनकी कार्यप्रणाली को कमजोरियत के तौर पर दिखाया जाता रहा हो। इसमें कोई दो राय नहीं की 2014 के मनोहरलाल में ओर आज के मनोहर में एक बड़ा बदलाव नजर आ रहा है वह अब अनावश्यक दबाव व आंख बंद कर किसी पर भरोसा नहीं करना।

पिछले दिनों रोहतक पार्टी मुख्यालय में प्रदेश अध्यक्ष नायब सैनी की ताजपोशी के समय सीएम ने जिस तरह रोहतक मेयर मनमोहन गोयल का भरे मंच पर  बीपी शुगर टेस्ट लिया उससे सीएम के इरादे जाहिर हो गए थे कि वे संगठन के अंदर बाहर किसी भी तरह का दबाव, नौटंकी या मनमानी को बर्दास्त नहीं करेंगे। सीएम का यह अंदाज बताने के लिए काफी था कि वे पहले संगठन में उस लॉबी का हाजमा ठीक करेंगे जिसने सरकार की छवि को कमजोर करने के लिए उन्हें जिम्मेदार मानने का माहौल बनाया। इतना भी साफ है कि भाजपा 2024  का चुनाव पूरी तरह नॉन जाट के वोट बैंक पर लड़ेगी। इसके लिए जरूरी है कि ओमप्रकाश धनखड़ ने अपने तीन साल के कार्यकाल में जो संगठन खड़ा किया उसका मूल्याकंन किया जाए। रोहतक ताजपोशी के समय धनखड़ के उस बयान पर गौर करिए जिसमें उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष नायब सैनी को इशारों में कहा था कि समर्पित कार्यकर्ताओं की जगह  चालाक व स्वार्थी लोग ना आ जाए। अब यह सवाल यह उठता है कि धनखड़ को यह कहने की जरूरत क्यों पड़ी। जाहिर है बदलाव तो होगा ही। जिन्हें इधर उधर किया या हटाया जाएगा वे सीएम टीम की नजर में चालाक व भरोसे लायक नहीं होंगे जिसे धनखड़ समर्पित मानकर उन्हें ना हटाने का आगाह इशारों में कर चुके थे। कुल मिलाकर 9 साल पहले जिस भाजपा ने पीएम मोदी की लहर में सत्ता की अपने दम पर नैया पार कर ली थी। 2019 में इस नैया ने खुद को डूबने से बचाने के लिए दूसरी किश्ती का सहारा लेना पड़ा। अब हालात  यह है कि इस नैया में अपनों के किए जा रहे छेद कैसे भरेंगे। यह देखने वाली बात होगी।

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