रणघोष खास. एक भारतीय की कलम से
भारतीय राजनीति में पिछले कुछ सालों से चुनाव जीतने के बाद गजब की भारत भ्रमण की संस्कृति चल पड़ी है। सही मायनों में छोटे- बड़े चुनाव में यही संस्कृति ही निर्वाचित जनप्रतिनिधि की ईमानदारी- जिम्मेदारी एवं जवाबदेही का प्रमाण बन चुकी है। भारत भ्रमण से सीधे शपथ समारोह में पहुंच कर जनप्रतिनिधि क्या सोचकर शपथ लेते हैं यह अभी तक समझ से बाहर है। महज औपचारिकता पूरी करने के लिए यह सब करना मजबूरी है। कायदे से भ्रमण पर गए पार्षदों की गिनती के आधार पर ही हिल स्टेशन से ही चुने जाने वाले प्रतिनिधि की घोषणा हो जानी चाहिए। वजह भ्रमण में ही जनप्रतिनिधि की निष्ठा कायम हो चुकी होती है। धारूहेड़ा नगर पालिका में उपप्रधान बनाने को लेकर देशभ्रमण की यही संस्कृति फिर नजर आईं। इस तरह के भ्रमण मान्यता प्राप्त है या बहुत जरूरी है यह आज तक समझ में नहीं आया है। इसमें सत्ता में बैठे नेताओं की मौन स्वीकृति होती है। इस भ्रमण का खर्च चुने जाने वाला प्रतिनिधि वहन करता है या ऐसा कोई तीसरा शख्स जिसकी नजर आने वाले समय में विकास के नाम पर मिलने वाले टेंडर पर होती है का खुलासा हमेशा राज बना हुआ है।
किसी भी राज्य में जब कोई सरकार अल्पमत में आती हैं तो सबसे पहले वह खुद को बचाने के लिए विधायकों को देश- विदेश भ्रमण पर रवाना कर देती हैं। यह भ्रमण इतना शानदार व आलीशान होता है कि विधायक इसे लंबा करने के लिए रूठने मनाने के फार्मूले को लागू कर देते हैं। कुछ माह पहले राजस्थान- मध्यप्रदेश- कर्नाटक समेत कुछ राज्यों की सरकार की अदला बदली में यह नजारा सभी ने देखा। ऐसे में कैसे एक- एक विधायक इतना महत्वपूर्ण हो जाता है मानो उसके रूठने या मनाने से ही देश का संविधान सुरक्षित रहेगा। इस भ्रमण पर करोड़ों- अरबों रुपए पानी की तरह बहाए जाते हैं, चुप रहने की डील अलग से होती है। अब यही ट्रेंड ऊपर से चलता हुआ छोटे चुनाव में भी आ चुका है जिसे अप्रत्यक्ष तौर पर मान्यता मिल चुकी है। ऐसे में अब यह उम्मीद करना कि भ्रमण से लौटा जनप्रतिनिधि आने वाले 5 सालों में ईमानदारी से जनता की उम्मीद व विश्वास पर खरा उतर पाएगा। यह जनप्रतिनिधि की अंतारत्मा ही बेहतर बता सकती है। कुल मिलाकर चुनाव जीतकर भारत भ्रमण पर जाने की संस्कृति को आधिकारिक तौर पर मान्यता दिलाने का समय आ गया है। कायदे से जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि वह शपथ लेने के बाद सदन में सबसे पहले प्रस्ताव साल में एक बार भारत भ्रमण पर खर्च होने वाले बजट का पेश करें ताकि पांच साल में पांच बार देशभ्रमण होने से बीच में चुनाव की नौबत नहीं आए। सहीं मायनों में यही आज का लोकतंत्र है ओर यहीं संविधान की असल परिभाषा।
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