आईएएस बने निखिल की कहानी में अपना गांव बसता है
–यह कहानी जीवन में बेहतर बदलाव की खुबसूरत मिशाल है। इसलिए रणघोष यह कहानी आपके लिए लाया है।
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
आइए हम आपको हरियाणा के रेवाडी जिले के गांव मुसेपुर लेकर चलते हैं। जहां 92 साल के किसान चंद्र सिंह गर्व से कभी अपने घर को निहार रहे हैं तो कभी परिवार के सदस्यों को देखकर आनंद से सराबोर हो जाते हैं। हो भी क्यों ना , पोता जो आईएएस बना है। 16 अप्रैल को देश की सबसे महत्वपूर्ण परीक्षा यूपीएससी का परिणाम जारी हुआ तो आईटीएन से आईएएस बने पोते निखिल ने दिल्ली से फोन कर बताया की वह तीन सौ तेतीसवीं रैंक के साथ उत्तीर्ण हो गया है।
इतना सुनते ही परिवार में खुशी की लहर दौड गई। ऐसा लगा शिक्षा की सुगंध घर- खेत खलिहान से होते हुए स्कूल के प्रांगण को नमन कर दिल्ली से पूरे देश में फैल गई है।
सभी ने मिलकर इस खुशी को अलग अलग अंदाज में सांझा किया। बधाई देने वालो का तांता लगा रहा। यह वो पल था जिसका हर कोई इंतजार करता है। इस मुकाम को हासिल करने के लिए जहां संघर्ष कदम कदम पर आगे बढने से रोकता है , तो हौसले की उडान उसके मंसूबो पर पानी फेर देती है। किसान चंद्र सिंह के परिवार में आईएएस के रूप में आई सफलता की यह कहानी कई मायनों में खास है। यह परिवार ना केवल शिक्षा के क्षेत्र में अलग पहचान बनाता जा रहा है। साथ ही सादगी भरे जीवन के संपूर्ण परिवेश में रहकर समाज में पारिवारिक संस्कारों की अनूठी मिशाल बना हुआ है। यही वजह है की 92 वें साल के चंद्र सिंह पूरी तरह स्वस्थ्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं। पत्नी नारायणी देवी जरूर 2016 में 85 साल की उम्र का साथ निभाकर दुनिया से चली गई थी। उसके बाद उनके बेटो, बेटी, बहू, पोते पोतियों ने इस घर के मुखिया के चारों तरफ आपसी स्नेह, प्यार और रिश्तों के आनंद से बनी मिठास को बिखेरे रखा, जिसमें उन्हें कभी महसूस नही होने दिया की कोई उनसे दूर चला गया है। चंद्र सिंह के तीन बेटे, दो बेटियों के अलावा सात पोते पोतियो से भरा पूरा परिवार है। बडा बेटा बाबूलाल सरकारी स्कूल में प्राचार्य, दूसरा बेटा अमन यादव हुड्डा विभाग में एसडीओ एवं सबसे छोटे बेटे सुरेन यादव कॉपरेटिव बैंक से मैनेजर पद से रिटायर होकर परिवार में एक दूसरे की ताकत बने हुए हैं। इसी तरह इस घर के मुखिया की दोनो बेटिया सुशीला और कौशल्या भी अपने ससुराल में शिक्षिका के तौर पर अपने परिवार को संवार चुकी है। आईएएस बने निखिल सुरेन यादव व 2016 में गांव की सरपंच बनी जगंती के बेटे है। चंद्र सिंह की एक पोती प्रिया यादव दिल्ली यूनिवर्सिटी में कैमिस्ट्री में पीएचडी कर रही है। इस परिवार का कोई ना कोई बेटा-बेटी बेहतर माहौल और संस्कारों के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करता जा रहा है।
चाहता तो यह परिवार शहर में भी बस जाता..
परिवार के सदस्य समय के साथ बदलते जा रहे परिवेश और मिल रही उन्नति को देखकर चाहते तो शहर में बस जाते लेकिन सभी ने किसी ना किसी तौर पर अपनी जडो को मजबूती से पकड़े रखा और गांव में रहकर सांझा परिवार के रूप में तमाम जिम्मेदारियों को निभाया। धीरे धीरे यह परिवार समाज के सामने पारिवारिक- सामाजिक और शिक्षा जगत में एक अलग ही मिशाल के तौर पर पहचान बनाता चला गया। इसी दरम्यान 2003 में इस परिवार ने पास के गांव बेरली खुर्द में नहर से गुजरती जमीन पर कैनाल वैली नाम से शिक्षण संस्थान की बुनियाद रखी। जिसका संचालन परिवार के सदस्य बाबूलाल यादव एवं सुरेन यादव अपनी बहन कौशल्या के साथ कर रहे हैं। कौशल्या के पति मोहर सिंह रेवाडी कोर्ट के जिला न्यायवादी रह चुके है। उनका बेटा प्रशांत यादव गुरुग्राम कोर्ट में एक नामी अधिवक्ता के तौर पर पहचान रखते हैं। यह शिक्षण संस्थान वर्तमान में शिक्षा में अलग पहचान बना चुका है। आईएएस बने निखिल की शैक्षणिक पृष्टभूमि इसी शिक्षा के प्रांगण में पली बडी होकर आज सभी के लिए प्रेरणा बन चुकी है। खेत खलिहान से निकलकर राष्ट्रीय पटल पर पहुंची सफलता की यह कहानी जीवन में बेहतर बदलाव की खुबसूरत मिशाल है। इसलिए रणघोष यह कहानी आपके लिए लाया है।