पूजा- आस्था के नाम पर पेड़ को छलनी करने वाले, इस कहानी को जरूर पढ़े
-एडीसी रेवाड़ी ने वन मंडल अधिकारी को पत्र लिख बताई पेड़ की पीड़ा
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
अतिरिक्त उपायुक्त रेवाड़ी की तरफ से वन मंडल अधिकारी को एक पत्र जारी किया गया है। जिसमें कहा गया है कि धार्मिक एवं पूजा स्थलों पर लगे विशेषतौर से पीपल के पेड़ों में आस्था- पूजा के नाम पर तेल चढ़ाना एवं अनावश्यक ऐसी पूजा सामग्री का प्रयोग किया जाता है जो सीधे तौर पर पेड़ की जिंदगी से खिलवाड़ है। यहीं वजह है कि पेड़ धीरे धीरे सुखकर खत्म हो रहे हैं। सबकुछ जानते हुए भी इस तरह के अंध भक्त अपने स्वार्थ में इतने अभिभूत रहते हैं कि आक्सीजन से जीवन देने वाले पेड़ के हत्यारे बन जाते हैं। रणघोष सीख और जागरूकता के लिए जागरूक एवं जिम्मेदार पाठकों को पेड़ के निस्वार्थ प्रेम की कहानी पढ़ा रहा है ताकि हम सभी अपने जीवन में पेड़ की अहमियत को जीवन में उतार ले।
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जब इंसानों को इंसान दोस्त नहीं मिलते हैं तो वह या तो निर्जीव वस्तुओं से दोस्ती कर लेता है या तो पशु पक्षी या पेड़ों से। अविनाश के घर के सामने एक आम का पेड़ था। अविनाश अपना खाली समय इस आम के पेड़ की छाया में बिताने लगा। अविनाश या तो स्कूल में होता था, या तो इस पेड़ के पास। पेड़ के साथ खेलता था, उस पर चढ़ता था वही, उसकी छाया में आराम करता और वही सो जाता था। अविनाश उस पेड़ को इतना पसंद करता था कि वह अपने मन की सारी बातें अब उस पेड़ को बताने लगा था। 1 दिन चमत्कार हुआ जब अविनाश अपने मन की बातें उस पेड़ को बता रहा था तब अचानक वह पेड़ बोल पड़ा। अविनाश की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा क्योंकि अब ना उसे कोई सुनने वाला मिल गया था साथ ही साथ कोई ऐसा भी जो उससे बातें करें।
पेड़ ने बताया की अविनाश की इतनी घनिष्ठ मित्रता देख वो अपने आप को रोक नहीं पाया और उसे मजबूरन बोलना पड़ा। वह अविनाश जैसे दोस्त को पाकर बेहद खुश है। पेड़ को भी अविनाश की आदत हो गई थी। पेड़ अविनाश को एक दोस्त की तरह एक बेटे की तरह दिखने लगा, उसकी फिक्र करने लगा!
इंसानों की फितरत है वह समय के साथ बदल जाया करते हैं। समय बदला, अविनाश की उम्र बढ़ी। अब वह कॉलेज जाने लगा। उसने इस पेड़ के पास आना बंद कर दिया। बेचारा पेड़ अविनाश को याद कर काफी दुखी रहने लगा। एक बार अविनाश को अपने पास से गुजरता देख पेड़ ने उसे आवाज लगाई और अपने पास बुलाया। पेड़ ने अविनाश से कहा आओ अविनाश मेरे पास बैठो कुछ बातें करते हैं। अविनाश ने कहा नहीं मेरे पास इतना वक्त नहीं है कि मैं तुम्हारे पास बैठ सकूं और बातें कर सकूं ।अब मुझे कॉलेज जाना है और मुझे इस बात की भी टेंशन है कि कॉलेज की फीस कहां से लाऊं? अविनाश की बातें सुन और उस को टेंशन में देखकर पेड़ बोला – अगर मेरे फल बेचकर तुम्हें कुछ मदद होती हो तो मेरे सारे फल तोड़ कर ले जाओ। अविनाश को पेड़ का सुझाव पसंद आया। उसने तुरंत सारे आम तोड़ लिए और बाजार में बेचकर उसके अच्छे खासे पैसे कमाए और अपनी कॉलेज की फीस भर दी।
अविनाश फिर से अपनी जिंदगी में बिजी हो गया और एक बार फिर से पेड़ अकेला हो गया। पेड़ हर दिन अविनाश का इंतजार करता लेकिन कई साल बीत गए वह नहीं आया। एक लंबे समय बाद अविनाश का आना हुआ। पेड़ उसे देखकर काफी खुश हो गया। पेड़ ने अविनाश को अपने पास बुलाया और बोला आओ अविनाश मेरे पास बैठो। चलो कुछ बातें करते हैं। अविनाश ने पेड़ से कहा मै नहीं बैठ सकता मेरी नौकरी लग गई है। शादी भी हो गईं। नया घर बनाना है। मेरी इतनी तनख्वाह नहीं कि घर बना सकू। अविनाश को चिंता में देख फिर से पेड़ का दिल पिघल गया। पेड़ ने अविनाश से कहा तुम मेरी सारी डालिया काट कर अपने घर को नया बना लो इससे तुम्हारी समस्या सुलझ जाएगी। अविनाश ने पेड़ की सारी डालिया काट ली और बाजार में बेचकर उसके पैसे बना लिए। वो अपने पुराने घर को भाड़े पर देकर कहीं और रहने चला गया। पेड़ फिर से एक बार अकेला हो गया। पेड़ ने अब उम्मीद छोड़ दी कि कभी उसकी मुलाकात अविनाश से हो भी पाएगी या नहीं। पेड़ भी अब पूरी तरह से उजड़ चुका था उसकी डालियां कटने के बाद ना उस पर फूल आते थे ना पत्ते। 30 साल बीत चुके थे फिर 1 दिन पेड ने एक झुके हुए, लकड़ी के सहारे चलते एक बूढ़े आदमी को अपने पास आते देखा। पेड़ ने ध्यान से देखा और उस आदमी को पहचान लिया, वह कोई और नहीं अविनाश था। वह जब पेड़ के पास पहुंचा तो पेड़ ने उसे कहा माफ करना दोस्त अब मेरे पास तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है। अविनाश ने कहा – मुझे कुछ भी नहीं चाहिए और ना ही मेरी कोई इच्छाये बची है। मुझे सिर्फ तुम्हारे पास बैठना है और तुमसे बातें करनी है। बूढ़ा अविनाश पेड़ को ऐसे चिपक गया जैसे उसे गले लगा रहा हों! जर्जर और उजाड़ हो गए। उस आम के पेड़ पर नई कुंपले उग निकली!