रणघोष खास.. एमपी से
मध्य प्रदेश में विधानसभा उपचुनावों में जिस तरह भारतीय जनता पार्टी की जीत हुई, उससे यह तय हो गया कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अभी जनता की पसंद बने हुए हैं। इसके बाद नेतृत्व परिवर्तन की मांग करने वाले सभी विरोधी शांत हो गए हैं। उपचुनावों से पहले जब राज्य मंत्रिमंडल गठित किया गया था तो उसमें शिवराज विरोधियों और संगठन की चली। उनकी पसंद के लोगों में भूपेंद्र सिंह को छोड़कर किसी अन्य को जगह नहीं मिली, लेकिन जीत के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। शिवराज फिर से सत्ता के केंद्र के रूप में उभरे हैं। परिस्थितियों में बदलाव का अनुमान इसी से हो जाता है कि मुख्यमंत्री ने चुनाव हारने के बाद भी तीन मंत्रियों को उनके पद पर बनाए रखा है। उन्हें निगम-मंडलों में नियुक्त करने की तैयारी की जा रही है। सिंधिया समर्थक इमरती देवी की राज्य महिला वित्त विकास निगम में नियुक्ति लगभग तय है। माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल विस्तार हो या निगम-मंडलों में नियुक्तियां, सभी शिवराज के अनुसार तय किए जाएंगे। चुनाव से पहले दो मंत्रियों के इस्तीफा देने और तीन मंत्रियों के चुनाव हारने के बाद मंत्रिमंडल में पांच जगह खाली हुई हैं। ये सभी पद सिंधिया खेमे के मंत्रियों के थे। सिंधिया की ओर से मांग है कि ये सभी पद उनके समर्थन वाले विधायकों को दिए जाएं, हारने वालों में इमरती देवी और गिरिराज दंडोतिया को निगम-मंडल में नियुक्ति दी जाए। प्रदेश भाजपा संगठन सिंधिया की सभी मांगें मानने को तैयार नहीं दिख रहा था। ऐसे में मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद बीच का रास्ता निकाला गया और सिंधिया समर्थक दो मंत्रियों की वापसी और इमरती देवी को निगम में नियुक्ति देने पर सहमति बन गई लगती है।
बाकी मंत्रिमंडल में शिवराज की पसंद से लोगों को रखे जाने की बात है। चुनाव के पहले स्थिति बिल्कुल उलट थी। तब शिवराज को केवल नेतृत्व दिया गया था, बाकी सब संगठन तय कर रहा था। राजनीतिक विश्लेषकों को मानना है कि बड़ी जीत के बाद न केवल शिवराज के विरोधियों, बल्कि पार्टी संगठन को भी पता चल गया है कि उनकी लोकप्रियता उसी तरह बनी हुई है। इसके बाद वे पार्टी में और मजबूत दिखाई देंगे। पार्टी स्तर पर तय किया गया है कि सरकार में शिवराज को और प्रदेश संगठन में अध्यक्ष वी.डी. शर्मा को पूरी छूट दी जाएगी। प्रदेश में पार्टी संगठन में भी नई नियुक्तियां होनी हैं। शर्मा ने इसकी शुरुआत जुलाई में की भी थी, लेकिन उपचुनावों को देखते हुए उसे टाल दिया गया था। अब उसकी प्रक्रिया फिर शुरू होने से पहले यह फॉर्मूला तय हुआ कि 55 से अधिक उम्र के नेताओं को इसमें जगह नहीं दी जाएगी। शर्मा ने अध्यक्ष बनने के बाद कुछ नियुक्तियां की थीं, जिसमें शिवराज की पसंद को दरकिनार कर दिया गया था। अब भी शर्मा की नई टीम में शिवराज का प्रभाव न के बराबर ही रहने के आसार हैं। भाजपा सूत्र बताते हैं कि पार्टी तेजी से शिवराज का विकल्प खोज रही है। यह तभी संभव है जब दूसरी पंक्ति को मौका दिया जाए। इसी को ध्यान में रखते हुए संगठन और सरकार, दोनों जगहों पर नए चेहरों को मौका दिया गया है। पूरे मंत्रिमंडल में भाजपा ने केवल तीन लोगों को फिर से मौका दिया है, बाकी सब नए चेहरे हैं। इसी तरह पार्टी में भी नए और युवा चेहरों को मौका दिया जाएगा।
विश्लेषक मानते हैं कि भाजपा ने 2023 के विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है। यही वजह है कि नए चेहरों को मौका दिया जा रहा है। अगले चुनावों में भाजपा बिल्कुल नए चेहरों को साथ मैदान में उतरेगी। बहुत संभावना है कि अभी के ज्यादातर विधायकों को टिकट ही न दिया जाए। उम्रदराज विधायकों का नाम कटना तो तय है। कुछ विश्लेषक यह भी मान रहे हैं कि शायद भाजपा शिवराज की जगह किसी दूसरे चेहरे के साथ चुनाव लड़े। हालांकि भाजपा सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर कुछ भी तय नहीं हुआ है। यह विचार अवश्य है कि चुनावों में पार्टी को नए चेहरे के साथ जाना चाहिए। उनमें से कोई शिवराज का विकल्प होगा या नहीं, यह कहना फिलहाल मुश्किल है। बिहार में जिस तरह भाजपा ने सुशील मोदी को हटाया उससे भी संदेश स्पष्ट है। यह बात शिवराज और सिंधिया भी जानते हैं, इसलिए दोनों एक-दूसरे को मजबूत करने में लगे हैं।
शिवराज सिंह को कमजोर करने में संगठन में सक्रिय नेता ही नहीं, उनके वरिष्ठ सहयोगी भी तेजी से काम कर रहे हैं। इनमें नरोत्तम मिश्रा और गोपाल भार्गव प्रमुख हैं, जो स्वयं को मुख्यमंत्री के विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर चुके हैं। इनके अलावा कैलाश विजयवर्गीय भी हैं, जो फिलहाल हाइकमान के निर्देश पर राज्य की राजनीति से बाहर पश्चिम बंगाल चुनाव में लगे हैं। वे वहां पार्टी को जीत दिला देते हैं तो उन्हें इनाम के तौर पर राज्य में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है।