रेलवे की 41 साल की सर्विस में अजीत सिंह को सम्मान में मिली बेदाग सर्विस, अनुशासन, स्वाभिमान और ढेर सारा सम्मान

गांव पहुंचकर ग्रामीणों ने किया जोरदार स्वागत, अब शेष जीवन समाजसेवा को समर्पित


 जीवन का एक लंबा सफर नौकरी को देने के बाद जब कोई शख्स वापस अपने घर लौटता है तो वह पेंशन या अन्य तरह के सरकारी भत्तों के अलावा ऐसा बहुत कुछ लेकर आता है जिसकी कोई कीमत नहीं होती वह अनमोल होता है।  गांव नांधा निवासी अजीत सिंह रेलवे के आरपीएफ विभाग में चौकी इंचार्ज के पद से रिटायर होकर जब घर लौटे तो उनकी आंखें, चमकता चेहरा और मुस्कान बहुत कुछ बयां कर रही थी। दरअसल 41 साल की नौकरी वो भी बेदाग। यह किसी भी स्वाभिमानी और ईमानदार कर्मचारी या अधिकारी की जिंदगी का सबसे बड़ा सम्मान होता है। अजीत सिंह को जब मंडल आयुक्त डॉ. अभिषेक ने सम्मानित करते हुए उनकी पीठ थपथपाई तो चारों तरफ से यही आवाज निकली। सीखना है तो अजीत सिंह से सीखिए। जिसने पुलिस की नौकरी में अनुशासन, ईमानदारी और सम्मान को किसी भी हालात में कमजोर होने नहीं दिया। अजीत सिंह के पिता स्व. राव सरदार सिंह बोहरा भी अपने क्षेत्र में अपने इसी व्यक्तित्व से जाने जाते थे। उनके छह बेटे थे जिमसें अजीत सिंह चौथे नंबर पर है। 1980 में महज आठवीं करते ही अजीत सिंह को रेलवे में नौकरी मिल गई थी। नौकरी से पहले  उनकी शादी होकर एक बेटी का जन्म हो चुका था। उनकी चार संतानें हैं जिसमें तीन बेटियां एवं एक बेटा आजाद सिंह नांधा है। जो अपने बड़े बुजुर्गों के संस्कारों के साथ जिला पार्षद के तौर पर जनता की सेवा कर रहा है। अजीत सिंह के सम्मान में जब उनके अधिकारियों एवं साथियों ने कार्यक्रम किया तो अधिकांश ने उन्हें सम्मान के तौर पर श्रीमद भगवत गीता समेत अनेक महान लेखकों की पुस्तकें दी। अजीत सिंह गीता सार को ही सबकुछ मानते हैं। यह उनके करीबी दोस्त बेहतर ढंग से समझते थे। जब वे गांव में पहुंचे तो उनका जोरदार स्वागत किया गया। अजीत सिंह अब अपना शेष जीवन समाज सेवा को समर्पित करना चाहते हैं। वे अपने समय में गांव के सबसे बेहतर कुश्ती के खिलाड़ी रह चुके हैं। डयूटी के दौरान वे कबड्डी, कुश्ती, गोला फैंक, डिक्सस थ्रो, बालीवाल समेत 10 खेलों में आलराउंडर रहे हैं।

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