रेवाड़ी में इन वायरसों से भी लड़ना होगा..
2 किमी दूर श्मशान घाट तक एंबुलेंस ने वसूले 4 हजार, दाह संस्कार का सामान नकली निकला, डूब मरो ऐसा करने वालो
रणघोष खास. प्रदीप जैन की बयानगी
पिछले तीन चार दिनों में कोरोना ने हमारे करीबी रिश्तेदारियों में दो को हमसे छीन लिया। इस तरह जाने का दर्द असहनीय है। बर्दास्त करना पड़ेगा। यह वायरस किसी को नहीं बख्श रहा। लेकिन इससे बड़ा जख्म जो हमें मिला उसके सामने इस वायरस का दर्द भी छोटा लगने लगा। आक्सीजन- वेंटीलेटर की कमी हमारी व्यवस्था की नाकामी से जन्मीं है लेकिन मानवता- इंसानियत तो हर इंसान के हर कोने में रहती है वह भी तार तार हो रही है। इसका आभास जिंदगी में पहली बार हुआ जब एंबुलेंस वाले ने कहा कि सेक्टर तीन से सोलाराही तालाब जो मुश्किल से दो किमी भी नहीं था, तक शव को ले जाने का वह 4 हजार रुपए लेगा। हमारी रिश्तेदारी में 32 साल की ज्योति जैन जो 7 माह की गृभवती थी। उसे समय पर प्लाज्मा एवं रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिला। वह हमें छोड़कर चली गईँ। इसी तरह हमारे 70 साल के रिश्तेदार पवन कुमार को जब आक्सीजन और वेंटीलेटर नहीं मिला तो 50 किमी दूर बहरोड में जान पहचान से वहां व्यवस्था होने पर हमने एंबुलेंस वाले को बुलाया तो उसने सीधे 18 हजार मांग लिए। हमें मौत से लड़ना था इसलिए इस जीते जागते नजर आने वाले इस इंसानी वायरस के डंक को भी झेला और बहरोड पहुंच गए। वहां काफी प्रयास के बाद भी वे जिंदगी की जंग हार गए। वापस में हम बहरोड से रेवाड़ी दूसरी एंबुलेंस से आए जिसने ने केवल साढ़े हजार रुपए लिए। यहां एंबुलेंस के नाम पर दो इंसानों के दो चरित्र सामने आए। एक ने मानवता को बचाए रखा तो दूसरे ने उसे नीलाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हम यहां तक बर्दास्त करते चले गए। शुक्रवार को सेक्टर एक स्थित सोलाराही श्मशान घाट पर उनका अंतिम संस्कार करने की तैयारी में लग गए। बाजार से जब दाह संस्कार की सामग्री लेकर आए तो होश उड़ गए। घी- गोले से लेकर सब नकली निकले ओर राशि असली के नाम पर ले ली। कफन के लिए जो दो- तीन मीटर कपड़ा, दुशाला 200-300 रुपए में मिल जाता था उसके एक हजार रुपए तक वसूल लिए। जब हम अंतिम संस्कार की रस्म को पूरा कर रहे थे तो एक सवाल बार बार मन को उचेट रहा था। असल में किससे लड़ रहे हैं। कोरोना से जो हमें हमारा चरित्र, असलियत और औकात बताने आया है या उससे जो इंसानी खाल में है लेकिन इन हालातों में भी वह इंसानियत और मानवता को कुचलकर भूखा भेड़िया बन चुका है। हमें शर्म आती हैं ऐसे इंसानी भेड़ियों पर। कोरोना तो आज नहीं कल चला जाएगा लेकिन बेबस, लाचारी का नाजायज फायदा उठाने वाले समाज के इन वायरसों की सूची बनाकर सार्वजनिक करनी चाहिए ताकि आमजन इन्हें देखकर उसी तरह नफरत करें जिस तरह फोडे से आने वाली मवाद से होती है।