जेजेपी एवं इनेलो का माहौल समझने में ही समय गुजर जाएगा
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
नगर निकाय के चुनाव की घोषणा से एक दिन पहले भाजपा जिला कार्यकारणी की घोषणा कर दी गईं। प्रदेश की अन्य नगर निकाय के साथ साथ रेवाड़ी नगर परिषद एवं धारूहेड़ा नगर पालिका के होने वाले चुनाव की मौजूदा तस्वीर भाजपा के लिहाज से संतोषजनक नहीं है। 15 दिनों में भाजपा हाईकमान एवं स्थानीय टीम क्या करिश्मा कर देगी यह आने वाला रजल्ट बजाएगा। प्रदेश में भाजपा सरकार है लेकिन रेवाड़ी विधानसभा सीट पर कांग्रेस का राज है। सरकार को बने हुए एक साल हो चुके हैं। ऐसा माहौल भी नहीं बना जिसके बूते पर भाजपा कार्यकर्ता एवं पदाधिकारी यह हुंकार भर सके कि वे आत्मविश्वास से लबालब है। भाजपा अगर पूरी तरह सिंबल से चुनाव लड़ती है तो वह चौतरफा घिरी हुई नजर आ रही है। अगर खामोशी से रहकर चुनाव को देखती है और जीतने वाले उम्मीदवारों पर अपना मोहर लगा देती है तो बात अलग है। लेकिन भाजपा हाईकमान यह घोषणा कर चुका है कि वह अपने उम्मीदवार मैदान में उतारेगी। अकेले चेयरमैन के लिए या पार्षदों को भी सिबंल मिलेगा यह अभी पूरी तरह स्पष्ट होना है। कमाल की बात देखिए। चुनाव की समय अवधि इतनी कम रखी गई है कि चुनाव लड़ने वाले को नहीं सूझ रहा कि वह सुबह उठकर कहां भागे। टिकट के लिए अपने नेताओं के यहां हाजिरी लगाए या जनता के बीच जाकर अपना गणित बनाए। या फिर नामाकंन की तैयारी में सभी आवश्यक कार्रवाई पूरी करें। कोरोना से भी बराबर लड़ना जरूरी है। अगर गलती से कोई उम्मीदवार इसकी चपेट में आ गया तो उसका फैसला रजल्ट से पहले ही आ जाएगा।
भाजपा के लिए आसान नही है चुनाव जीतना
रेवाड़ी विधानसभा सीट पर भाजपा अंदरखाने पूरी तरह से बंटी हुई है। 2019 के विधानसभा चुनाव में टिकट को लेकर हुए घमासान से लगे घाव भरने तो दूर उन पर नमक छिड़कने का खेल जारी है। सार्वजनिक तौर पर यहां भाजपा वैचारिक और निजी तौर पर बंट चुकी है। रही सही कसर चुनाव से एक दिन पहले घोषित हुई नई कार्यकारिणी से पूरी हो रही है। जहां अंदरखाने पार्टी के पुराने पदाधिकारी एवं नेता संतुष्ट नजर नहीं आ रहे हैं। इस नई टीम में किसी भी सीनिययर नेता या पदाधिकारी की पूरी तरह से नहीं चली। पार्टी की तरफ से नगर पार्षद एवं चेयरमैन की सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी करने वालों के लिए यह चुनाव चौतरफा चुनौती वाला रहेगा। अगर किसी पार्टी की उम्मीदवार की अपनी जमीनी पकड़ मजबूत है तो बात अलग है नहीं तो अधिकांश वार्ड में भाजपा उम्मीदवार को हराने में कांग्रेस उतना जोर नहीं लगाएगी जितना पार्टी से किसी ना किसी कारण से नाराज चल रहे कार्यकर्ता पूरी ताकत लगा देंगे। टिकट नहीं मिलने पर भाजपा में बगावत के सुर भी अब सुनाई देंगे।
कांग्रेस के पास अब खोने को कुछ नहीं, कप्तान के लिए यह बेहतर माहौल
यह समय का खेल है। 2019 विधानसभा चुनाव से पहले पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव अपने वजूद को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रहे थे। चुनाव में उनके बेटे चिरंजीव राव को मिली भाग्यशाली और हैरान करने वाली जीत ने उनकी राजनीति को नया जीवन दे दिया। वर्तमान में रेवाड़ी सीट पर कांग्रेस का मतलब कप्तान अजय सिंह यादव बन चुका है। इसलिए चुनाव मे जीत के बाद पिता- पुत्र लगातार जनता के बीच बने हुए हैं। यहां तक की कोरोना काल में भी उन्होंने लोगों से संपर्क बनाए रखा। भाजपा की अंदरखाने गुटबाजी एवं किसान आंदोलन की वजह से बने माहौल का भी कांग्रेस को सीधा फायदा होगा। भाजपा सरकार में सहयोगी पार्टी जेजेपी ने प्रदेश स्तर पर गजब का टीम वर्क किया लेकिन शहर में अपनी जमीन तैयार करने में उसे समय लगेगा। इसलिए रेवाड़ी- धारूहेड़ा नगर चुनाव में वह किस भूमिका में रहेगी यह देखने वाली बात होगी। इनेलो अभी तक खुद की उलझन से बाहर निकलने का ही संघर्ष कर रही है। कुल मिलाकर आज की तारीख में रेवाड़ी- धारूहेड़ा नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस इसलिए मजबूत नजर आ रही है क्योंकि यहां पार्टी के तौर पर वन मैन शो के तौर पर कप्तान के पास कमान है जिसके पास रेवाड़ी के एक- एक गली मोहल्ले का गणित है। कप्तान को यह भी पता है कि चुनाव में किस पार्षद ने साथ देने के नाम पर उनके साथ खेल किया था। इसलिए वे अपना हिसाब भी चुकता करने में पीछे नहीं हटेंगे।
पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास को कम समझना घातक
विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास बेशक तीसरे नंबर पर रहे लेकिन शहर में उनकी पकड़ निजी तौर पर काफी मजबूत है। कापड़ीवास चुनाव हारने के बाद भी लगातार लोगों के बीच सक्रिय है। उनकी गिनती केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह विरोधियों में है। एक लंबे समय तक वे इलाके की सक्रिय राजनीति कर रहे हैं।
राव इंद्रजीत सिंह के लिए यह चुनाव भी एक अग्नि परीक्षा से कम नहीं
2019 विधानसभा चुनाव मे अपने दम पर रेवाड़ी की टिकट सुनील यादव मुसेपुर को दिलाकर केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने साबित कर दिया था कि जमीन पर और हाईकमान में वे मजबूत पकड़ रखते हैं हालांकि पार्टी में जबरदस्त गुटबाजी की कीमत भी उन्हें चुकानी पड़ी जब सुनील यादव बहुत कम वोटों से चुनाव हार गए। भाजपा की नई टीम में भी राव अपना दबदबा बनाने में कामयाब रहे लेकिन असली चुनौती नगर निकाय चुनाव में अपने समर्थकों को टिकट दिलाना और उन्हें जीताने तक रहेगी। अगर राव यहां सफल रहे तो लंबे समय तक उनके प्रभाव का सिक्का बना रहेगा। हालांकि मौजूदा हालात में यह आसान नहीं है। हर वार्ड में भाजपा अलग अलग धड़ों में अभी से बंटी हुई नजर आ रही है।
अलग मिजाज होता है शहरी मतदाता का
ग्रामीण परिवेश से ज्यादा शहरी मतदाताओं का चुनाव में अलग ही मिजाज होता है। गांवों में जितनी गुटबाजी एवं धड़े बने रहते हैं उतने शहर में यह माहौल कम रहता है। बिजनेस क्लचर होने की वजह से लोग सुबह- शाम अपने व्यवसाय में खुद को ज्यादा व्यस्त रखते हैं। राजनीति में वे खुलकर सामने नहीं आते। खामोश रहकर अपने इरादे जाहिर करते हैं। इसलिए रजल्ट नहीं आने तक उम्मीदवार का बीपी- शुगर चैक होता रहता है। पिछले विधानसभा चुनाव यह साबित हो जाता है।