मनुमुक्त ‘मानव‘ मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा ‘वर्चुअल अंतरराष्ट्रीय हाइकु–सम्मेलन‘ का आयोजन आज किया गया, जिसमें छह महाद्वीपों और भारत, नेपाल, जापान, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, यूएई, मॉरीशस, रूस, बल्गारिया, जर्मनी, ट्रिनिडाड, अमेरिका और कनाडा सहित चौदह देशों के लगभग दो दर्जन हाइकुकारों ने सहभागिता की। चीफट्रस्टी डॉ रामनिवास ‘मानव‘ के प्रेरक सान्निध्य तथा डॉ पंकज गौड़ के कुशल संचालन में संपन्न हुए इस ऐतिहासिक हाइकु–सम्मेलन में केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल, भारत सरकार, नई दिल्ली के उपाध्यक्ष अनिल जोशी ने बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए कहा कि हाइकु लिखने से पूर्व इसके मूल स्वरूप को समझना आवश्यक है। लखनऊ (उत्तर प्रदेश) की वरिष्ठ हाइकुकार, साहित्यकार तथा समीक्षक डॉ मिथिलेश दीक्षित ने, हाइकु का उद्गम–स्थल भारत को बताते हुए, अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि भारत का ‘ध्यान‘ शब्द जापान में जाकर ‘जेन‘ हो गया तथा बाद में इन्हीं जेन संतों द्वारा जापान में हाइकु प्रचलित हुआ। उन्होंने अनेक हाइकु भी प्रस्तुत किए। उनका एक हाइकु था–रस झरता/जीवन में जब हो/समरसता। इससे पूर्व विषय–प्रवर्तन करते हुए चीफट्रस्टी डॉ रामनिवास ‘मानव‘ ने स्पष्ट किया कि भारतीय परिवेश में ढलकर ही हाइकु भारत में लोकप्रिय हो सकता है।इस अवसर पर प्रिंस्टन (अमेरिका) के विख्यात कवि अनूप भार्गव ने स्पष्ट किया कि हाइकु जैसी छोटी विधा के माध्यम से भी बड़ी बात कही जा सकती है। उनका एक हाइकु देखिए–धरती ओढ़े/बरफ की चादर/सूरज फाड़े। हिंदी सांस्कृतिक केंद्र, टोक्यो (जापान) की अध्यक्ष तथा ‘हिंदी की गूंज‘ पत्रिका की संपादक डॉ रमा पूर्णिमा शर्मा ने हाइकु द्वारा मानवीय संवेदना की अभिव्यक्ति की बात कही। उनका चर्चित हाइकु था–बहन दूर/ले हाथों में राखी/तकती राह। मॉरीशस हिंदी अकादमी, मौका के अध्यक्ष डॉ हेमराज सुंदर ने ‘सीना छलनी/गोली खाते सिपाही/देश हो कोई‘ कहकर पुलिस के बलिदान को रेखांकित किया, वहीं ऑकलैंड (न्यूजीलैंड) की ई–पत्रिका ‘भारत दर्शन‘ के संपादक रोहितकुमार ‘हैप्पी‘ ने अम्मा का महत्त्व कुछ यूं बताया–आंखों में नमी/बेगाना लगे घर/अम्मा की कमी। टोरंटो (कनाडा) की प्रमुख हाइकुकार डॉ शैलजा सक्सेना का विशिष्ट हाइकु था–छोटी–सी बात/कागज पर उतरी/बन हाइकु। कोलोन (जर्मनी) की डॉ शिप्रा शिल्पी का उन्मुक्त प्रेम के संबंध में कहना था–कुटिल मन/नाबालिग यौवन/रोंदता तन। सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) की रेखा राजवंशी ने मां के प्यार–दुलार का महत्व स्पष्ट करते हुए कहा–मां का दुलार/खील और बताशा/जीने की आशा। नारनौल (हरियाणा) प्रख्यात हाइकुकार डॉ रामनिवास ‘मानव‘ ने वर्तमान हालात पर कुछ यू चिंता प्रकट की–हालात ऐसे/सत्यमेव जयते/कहें तो कैसे। पोर्ट ऑफ स्पेन (ट्रिनिडाड) की आशा मोर का भी एक हाइकु देखिए–शिला अहिल्या/ इंतजार राम का/जड़ चेतन।
इन्होंने की सहभागिता : अब तक के विश्व के इस सबसे बड़े हाइकु–सम्मेलन में टोक्यो (जापान) की डॉ रमा पूर्णिमा शर्मा, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) की रेखा राजवंशी, ऑकलैंड (न्यूजीलैंड) के रोहितकुमार ‘हैप्पी‘, (मौका) मॉरीशस के डॉ हेमराज सुंदर और इंद्रदेव भोला, दुबई (यूएई) के डॉ नितिन उपाध्ये, चितवन (नेपाल) की रचना शर्मा, मास्को (रूस) की श्वेतासिंह ‘उमा‘, सोफिया (बल्गारिया) की डॉ मोना कौशिक, कोलोन (जर्मनी) की डॉ शिप्रा शिल्पी, पोर्ट ऑफ स्पेन (ट्रिनिडाड) की आशा मोर, अमेरिका से कैलिफोर्निया की डॉ अनीता कपूर और अर्चना पांडा, न्यूयॉर्क की डॉ रजनी भार्गव और प्रिंस्टन के अनूप भार्गव तथा भारत में नई दिल्ली की डॉ नीलम वर्मा, रायगढ़ (छत्तीसगढ़) के प्रदीपकुमार दाश, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) की डॉ मिथिलेश दीक्षित तथा हरियाणा से हिसार के डॉ राजेश सरदाना ‘जीवंत‘ और नारनौल के डॉ रामनिवास ‘मानव‘ ने, हाइकुकार के रूप में, सहभागिता की।
इनकी रही विशिष्ट उपस्थिति : लगभग अढाई घंटों तक चले इस महत्त्वपूर्ण हाइकु–सम्मेलन में विश्वबैंक, वाशिंगटन डीसी (अमेरिका) की अर्थशास्त्री डॉ एस अनुकृति और कंसलटेंट प्रो सिद्धार्थ रामलिंगम, नेपाल प्रज्ञा प्रतिष्ठान, काठमांडू की पत्रिका ‘समकालीन साहित्य‘ के संपादक डॉ पुष्करराज भट्ट, पोर्ट ऑफ स्पेन (ट्रिनिडाड) के साहित्यकार दिनेश मोर, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, भारत सरकार, नई दिल्ली के सहायक निदेशक डॉ दीपक पांडेय, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के प्रतिष्ठित साप्ताहिक ‘विश्व–विधायक‘ के संपादक मृत्युंजयप्रसाद गुप्ता, नई दिल्ली के प्रख्यात पत्रकार राहुल देव, ट्रस्ट की दिल्ली प्रभारी उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी‘, ट्रस्टी डॉ कांता भारती, शिमला (हिमाचल प्रदेश) की उज्ज्वल राठौड़, जयपुर (राजस्थान) की सुषमा भार्गव, सतना (मध्य प्रदेश) के अरविंदकुमार शुक्ल, सोलन (हिमाचल प्रदेश) की सुनीता चांदला, इंदौर (मध्य प्रदेश) के राजीव नामदेव, नई दिल्ली की डॉ पूर्णिमा कात्यायनी, सुरेंद्र गंभीर, सुनीता पाहुजा, जया आर्य, रेखा शर्मा और चित्रा गुप्ता तथा नारनौल (हरियाणा) के डॉ जितेंद्र भारद्वाज, कृष्णकुमार शर्मा, एडवोकेट आदि की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रही।