रणघोष खास. प्रदीप नारायण
हे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम आप हर साल विजयादशमी पर्व पर लंकेश्वर रावण का वध कर असत्य पर सत्य की जीत का पैगाम देकर चले जाते हो। सदियों से ऐसा करते आ रहे हो। बड़ी हिम्मत जुटाकर इस बार आपसे यह भक्त अरदास करता है। अपना यह तीर इस बार मेरे शरीर के अंदर बैठे रावण पर चला दो। बहुत हो चुका रावण को भस्म होते हुए। आखिर कब तक हम अपनी तमाम बुराईयों, छिपे अपराध, छल कपट, पांखड को छिपाकर जुबां से तेरा नाम लेकर उस रावण को अभी तक मारते रहेंगे जिसे उसके छोटे भाई विभीषण ने धर्म का पालन करते हुए आपको उसके मारने का भेद बता दिया था। अगर ऐसा करना सही था तो आज कोई अपने बेटों का नाम विभीषण क्यों नहीं रखता। हे राम इतना बता दो कैकेयी की दासी मंथरा कहां गलत थी। अगर वह अपनी रानी को नहीं बहकाती तो आप 14 साल का वनवास काट मर्यादा पुरुतोषतम श्री राम कैसे कहलाते। आपने एक धोबी के कहने पर माता सीता का परित्याग कर उसे वन भेज दिया। आपके जीवन से जुड़े बहुत से वृतांत का स्मरण करता हूं तो मेरा चेहरा आइने के सामने रावण से भयानक नजर क्यों आता है। आपने तो पिता के वचन को निभाया मैने तो अपने माता-पिता को घर से निकाल दिया। आपने तो अपने भाईयों के लिए अपना राज पाठ सबकुछ न्यौछावर कर दिया। मैने तो जमीन के छोटे से टुकड़े के लिए उनकी जान तक ले ली। आपने पराई स्त्री को देवी स्वरूप माना। मै तो मौका लगते ही उसकी अस्मिता से खेलता रहा। आपने शबरी के झूठे बेर खाए। मैने तो छोटी जाति वाले को छुने पर उन्हें दंडित किया। आपके राज में कोई भूखा नहीं सोया। मैने तो भ्रष्टाचार, मक्कारी, छल कपट से दूसरे के मुंह से निवाला तक झपट लिया। आप के समय में हनुमान जी जैसे परम भक्त होते थे। मै तो आपके नाम पर धर्म व पांखड का बाजार लगाता हूं। आपके समय का रावण जैसा भी था सार्वजनिक था। वह अंहकारी राक्षस था। सब जानते थे। मै तो तेरे नाम का चोला पहनकर रावण जैसी प्रवृति में जीता हूं। हे राम बताइए कब तक हम हर साल लंकेश्वर का दहन कर अपने अंदर के रावण को छिपाते रहेंगे। इसलिए हे मेरे प्रभु इस बार अपना यह तीर मुझ पर चला देना। मेरे अंदर के रावण का वध कर राम को जगा दो। मेरे भीतर की लंका को ढहाकर अयोध्या बसा दो। मै धन्य हो जाऊगा नहीं तो मेरे जैसे रावण घर घर में नजर आएंगे ओर तुम इतने राम कहां से लाओंगे।