रेवाड़ी को रोंद कर चले जाइए साहब.. यह उफ तक नहीं करेगा..
पिछले 8 माह से डीसी अशोक कुमार गर्ग कई मोर्चे पर इस शहर को बेहतर बनाने में हर उस चुनौती से लड़ रहे हैं जिसे सत्ता ओर सिस्टम के गलियारों में माफिया कहा जाता है। मजाल शहर के रहवासी सैनिक बनकर अपने इस सेनापति के साथ नजर आते हो।
रणघोष खास. प्रदीप नारायण
कोई भी शहर, कस्बा, गांव, गली मोहल्ले अपने मिजाज और तौर तरीकों से अपने चेहरे ओर चरित्र को पहचान देते हैं। बात करते हैं हरियाणा में रेवाड़ी की। कहने को इसका इतिहास गर्व और गौरव की चासनी में डूबा हुआ है लेकिन मौजूदा हकीकत से पर्दा हटाए तो यह जमीनी तौर पर खुद को यह खुद को उलट साबित करने में लगा हुआ है। ज्यादा पीछे ना जाकर पिछले 8 माह में जिला प्रशासन के उठाए उन कदमों से समझते हैं जिससे मचे शोर ने 13 फरवरी 1939 में हिसार स्थित एयू खान की कोर्ट के दिए फैसले को एक बार फिर जिंदा कर दिया। इस फैसले के मुताबिक यह शहर लगभग राय बहादुर मक्खनलाल की जमीन पर बसावट ले रहा है। यहां का रिकार्ड बताता है मक्खनलाल के मुनीम मुंशीलाल जैन पर आरोप था कि उसने राय बहादुर की मृत्यु के बाद फर्जी गोदनामा तैयार कर इस शहर की 3 हजार से ज्यादा एकड़ जमीन अपने नाम करवा ली थी। जिसे आगे चलकर मुंशीलाल जैन के भाई श्यामलाल ने हिसार कोर्ट में चैलेंज किया था। तत्कालीन जज अयूब खान ने इस गोदनामें को फर्जी मानकर रद्द कर दिया था। इसकी आधिकारिक पुष्टि देश की आजादी के बाद 24 नवंबर 2009 को रेवाड़ी के तत्कालीन उपायुक्त टीएल सत्यप्रकाश के चंडीगढ़ भेजे डीओ लैटर नंबर 2739-41 ने कर दी जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि मुंशीलाल जैन के नाम फर्जी गोदनामा है और इसके वारिसान को जमीन बेचने का कोई हक नहीं है।
मुंशीलाल जैन के दो पुत्र थे रतिराम और नेमींचंद। रतिराम के तीन पुत्र राजकुमार जैन, प्रेम कुमार जैन और सतीश कुमार जैन हुए। नेमीचंद् के दो लड़की भारती और ऊषा है। इन पर आरोप लगते रहे हैं कि राजकुमार जैन, प्रेम कुमार जैन, सतीश जैन भारती और ऊषा कई सालों से बिना कोई वारिस हुए शहर की इस संपत्ति को बेचने में लगे हुए हैं। यहां गौर करने लायक बात यह है कि शहर के सबसे बड़े रामलीला मैदान को भी इसी फर्जी गोदनामा का हवाला देकर 9 साल तक कोर्ट में चले केस के बाद 21 जनवरी 2011 को बेचने से बचा लिया था। यह मैदान भाड़ावास रोड स्थित बाल वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय को बतौर राय बहादुर मक्खनलाल की तरफ से जिंदा रहते उपहार में दी गई प्रोपर्टी थी। उस समय तत्कालीन प्राचार्य मुकेश कुमार ने यह लड़ाई लड़ी थी। इसके बावजूद भूमाफियों ओर प्रशासन के कुछ अधिकारियों की मिली भगत से शहर में इधर उधर बिखरी इस तरह की जमीन को बेचने ओर खरीदने का खेल लगातार आज तक जारी है। इसमें वो राजनीतिक लोग भी शामिल है जो छाती ठोंक कर रेवाड़ी शहर को बदलने के लिए सबसे ज्यादा चिल्लाते हैं। लेकिन इस मसले पर उन्हें सांप सूंघ जाता है। इसलिए आज तक किसी असरदार नेता ने इस मामले की बड़े स्तर पर जांच कराने की कोशिश तक नहीं की।
13 साल पहले डीसी टीएल सत्यप्रकाश ने प्रयास किया तो चंडीगढ़- दिल्ली से आए दबाव से उन्हें इधर उधर कर दिया गया। उसके बाद जितने भी बड़े अधिकारी आए वे या तो इस मामले को ले देकर निगल गए या खामोश रहकर अपना समय गुजार गए। पिछले 8 माह में डीसी अशोक कुमार गर्ग ने इधर उधर से साक्ष्यों के साथ आ रही शिकायतों पर एक्शन जब लेना शुरू किया तो शहर फिर हलचल में आ गया। राजेश पायलट चौक पर स्थित रेजागंला पार्क की जमीन पर कई सालों से अवैध कब्जा हटाना हो, मॉडल टाउन में चल रहे शिशुशलाला बेचने के इरादों को नाकाम करना और दो दिन पहले टेकचंद क्लब पर कब्जा करने के भूमाफियाओं के निर्माण को जेसीबी से ध्वस्त कराकर डीसी अशोक कुमार गर्ग ने इस शहर को वजूद को जिंदा कर दिया। एक अकेला अधिकारी कितनी चुनौतियों के बीच में लड़ रहा है यह आसान इसलिए नहीं है क्योंकि उसकी भी अपनी सीमाएं ओर अधिकार है। यहां गौर करने लायक बात यह है कि इतना सबकुछ होने के बावजूद शहर के लोगों व संगठनों का तमाशीन होकर नजारा देखना यह जाहिर करता है कि इस शहर को कोई रोंद कर भी चला जाए तो यह उफ तक नहीं करेगा। वजह जब यह शहर फर्जी वसीयत पर खुद को बेचने में लगा हुआ है तो इससे ईमानदारी की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
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