समाज के नाम पर चौधर, ठेकेदारी का खेल, आज तक बन नहीं पाए मिशाल, अपने निजी एंजेडों को कर रहे पूरा

–    – अभी हाल ही में महावर सभा रजि. का मसला काफी तूल पकड़ रहा है जिसमें पिछले 5-7 सालों में आधिकारिक तौर पर यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि असली प्रधान कौन है


–    इन संस्थाओं- संगठनों के सार्वजनिक आयोजनों में संपन्नता एवं निर्धनता की तस्वीर भी साफ नजर आती हैं। आर्थिक हैसियत वाले मंच पर नजर आएंगे ओर साधारण लोग उनके भाषण पर तालियां बजाने के लिएआमंत्रित होते हैं।


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


    व्यवसायिक एवं समाजसेवा के अलावा अलग अलग जाति एवं धर्म के नाम पर बने सामाजिक संगठन एवं संस्थाओं की एक चौंकाने वाली तस्वीर सामने आ रही है। इन संगठनों को कानूनी दायरे में लाकर पूरी तरह जवाबदेह बनाने वाली फर्म एवं रजिस्ट्रार सोसायटी की हालिया रिपोर्ट पर नजर डाले तो समाज का ऐसा कोई घटक नहीं है जो अंदंर खाने आपसी चौधराहट की लड़ाई, ठेकेदारी की लड़ाई में नहीं उलझा हो। रिपोर्ट की माने तो लगभग हर समाज में कुछ प्रभावशाली लोग अपने राजनीतिक-  व्यवसायिक एवं सामाजिक एजेंडे को पूरा करने के लिए समाज को अलग अलग धड़ों में तब्दील कर रहे हैं। जिसके कारण विवाद भी तेजी से बढ़ रहे हैं। हालात यह है कि इन संस्थाओं को कानून के दायरे में लाने वाले विभाग के पास हर रोज विवादित मामले निपटाने मुश्किल हो गए हैं। हाल ही में महावर सभा रजि. का मामला तूल पकड़ रहा है जिसमें पिछले 5-7 सालों में आधिकारिक तौर पर यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि आधिकारिक तौर पर असली प्रधान कौन है। कुछ दिन पहले महावर सभा का चुनाव कराने के लिए एक अधिसूचना जारी की गईं। यह सूचना घनश्याम डाटा की तरफ से प्रेषित हुईं। कुछ माह पहले इस समाज से एनके गुप्ता सभा के कार्यकारी अध्यक्ष चुने गए ताकि चुनाव की प्रक्रिया को पूरा करवाया जा सके। एनके गुप्ता से पहले घनश्याम डाटा पिछले 5-7 सालों से सभा के प्रधान बनते आ रहे हैं जबकि सोसायटी के रिकार्ड में आधिकारिक तौर पर रामौतार गुप्ता प्रधान है। यह जानकारी आरटीआई से मिली जानकारी के आधार पर है। ऐसे में सरकार की तरफ से मिलने वाली ग्रांट एवं होने वाले खर्च राशि किस अधिकार एवं प्रावधान के तहत किसके द्वारा खर्च हो रही है। इस पर विवाद होते जा रहे है। उधर फर्म एवं रजिस्ट्रार सोसायटी की स्थिति यह बन चुकी है कि विभाग के कर्मचारी एवं अधिकारी में शायद ही कोई भरोसा कायम करते हुए विवाद का निपटारा कर रहा हो। इसलिए कुछ अधिकारी एवं कर्मचारियों की कार्यप्रणाली पर लगातार उंगली उठ रही है। ऐसे अनेक मामले सामने आ रहे हैं जहां सेवा पानी के नाम पर पीछे के दरवाजे से कागजी कार्रवाई को पूरा किया गया। जिसके चलते कुछ मामले कोर्ट में चले गए हैं। सीआईडी के माध्यम से सरकार के पास भी इसकी रिपोर्ट भेजी गई है। अब सरकार की विजिलेंस टीम की नजर ऐसी संस्थाओं पर है जो चालाकी से सरकारी ग्रांट का अपने निजी हितों के लिए पूरा कर रही है।

     मिशाल नहीं बन पा रहा कोई सामाजिक- धार्मिंक संगठन

 जब से अलग अलग समुदाय के सभी सामाजिक और धार्मिक संगठन जब से फर्म एवं सोसायटीज एक्ट के दायरे में आए हैं। एक भी संस्था या संगठन साफ सुथरी, समर्पण, पवित्र सोच के साथ एक दूसरे के लिए  मिशाल नहीं बन पाई है। गौर करने लायक बात यह है कि इन संस्थाओं में शैक्षणिक, व्यवसायिक एवं सामाजिक हैसियत रखने वाले लोग सदस्य के तौर पर जुड़े रहते हैं। आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग के लोगों की मंच पर भागेदारी ना के बराबर होती हैं। इसलिए इन संस्थाओं के सार्वजनिक आयोजनों में संपन्नता एवं निर्धनता की तस्वीर भी साफ नजर आती हैं। आर्थिक हैसियत वाले मंच पर नजर आएंगे ओर साधारण लोग उनके भाषण पर तालियां बजाने के लिए आमंत्रित होते हैं। इसी वजह से फर्म एवं रजिस्ट्रार सोसायटी के पास थोक के भाव विवादित मामले आ रहे हैं जिसका समय पर समाधान कर पाने में वह नाकाम साबित हो रही है।

आपसी धड़े बनने से निजी संबंधों में भी आ रही कड़वाहट

 सबसे गंभीर बात यह है कि समाज के घटकों में समय समय पर होने वाले चुनाव में अलग अलग धड़े बन जाते हैं जिसका सीधा असर निजी संबंधों पर नजर आता है। कायदे से आपसी भाईचारे की संस्कृति एवं मिशाल के तौर पर आगे आना चाहिए

काम करने वाले कटघरे में, जो कुछ नहीं करते वह सबसे ज्यादा नसीहत देते हैं

 इस तरह के विवादों का सामना कर रहे पदाधिकारियों एवं सदस्यों का कहना है कि आमतौर पर जिम्मेदारी एवं जवाबदेही के साथ काम करने वालों को कटघरे में खड़ा किया जाता है जबकि मीटिंग में आकर बड़ी बड़ी बातें करने वाले योगदान के नाम पर जीरो होते हैं। वे खुद में उदाहरण बनने की बजाय नसीहत ज्यादा देते हैं। इसी मानसिकता की वजह से भी सामाजिक भाईचारे के प्रयास धीरे धीेरे  कमजोर होते चले जाते हैं। कायदा यह कहता है कि आलोचना या आरोप लगाने वाले खुद को पहले उदाहरण के तौर पर साबित करें। लेकिन हो रहा है उलटा। 

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