जिस सरकार को यह बात ही समझ में नहीं आई कि इस महामारी से बचाव के लिए टीकाकरण कितना ज़रूरी है उससे दूसरी लहर के पूर्वानुमान की अपेक्षा रखना और उसकी तैयारी में ऑक्सीजन, दवाओं और बिस्तरों का प्रबंध करने की उम्मीद रखना बेमानी है। अफ़सोस की बात यह है कि चीन, अमेरिका और यूरोप में महामारी से हो रहे विनाश को साल भर देखकर भी मोदी जी उससे बचाव के प्रबंध नहीं कर पाए।
रणघोष खास. शिवकांत की कलम से
भारत का कोरोना संकट अब भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन गया है। ऑक्सीजन और दवाओं के अभाव में और अस्पतालों में जगह न मिल पाने के कारण लोग बड़ी संख्या में दम तोड़ रहे हैं। सीएनएन ने मेरठ के एक सरकारी अस्पताल में रोगियों की दशा पर मुख्य अंतरराष्ट्रीय संवाददाता क्लेरिसा वॉर्ड की ऐसी दर्दनाक रिपोर्ट दिखाई है जिसे देखकर किसी का भी कलेजा मुँह को आ सकता है।भारत के अधिकतर सरकारी अस्पतालों के हालात मेरठ के सरकारी अस्पताल जैसे ही या उससे भी बदतर हैं। केंद्र और राज्य सरकारें पिछले दो सप्ताह से सारे जतन करने के बावजूद ऑक्सीजन, दवाओं और बिस्तरों की बढ़ती माँग को पूरा नहीं कर पा रही हैं। इससे साफ़ हो चुका है कि देश भर में चीनी शहर वूहान जैसे हालात हो चुके हैं। अकेले वूहान ने दुनिया को तबाह कर दिया, भारत का तो तकरीबन हर शहर वूहान बन चुका है।संक्रमित लोगों की संख्या की दृष्टि से भारत अब भी अमेरिका से काफ़ी पीछे है। महामारी से हुई मौतों की संख्या की दृष्टि से दुनिया में तीसरे स्थान पर है। भारत की आबादी को देखते हुए यह बड़ी बात नहीं लगती। लेकिन पिछले एक पखवाड़े के भीतर महामारी जिस तेज़ी से फैली है और मरने वालों की संख्या जिस तेज़ी से बढ़ी है उससे स्वास्थ्य सेवाएँ असहाय सी हो चुकी हैं।महामारी की मार से बेबस हुए सिस्टम या सरकारी तंत्र के कारण पहले से ही धीमी रफ़्तार से चल रहे कोविड टेस्ट और टीकाकरण की गति और धीमी पड़ गई है। इसकी वजह से संक्रमित होने वाले और महामारी से दम तोड़ने वाले लोगों की सही संख्या का अनुमान लगा पाना मुश्किल हो रहा है। ऊपर से सरकारें लोगों की दशा और मौत के आँकड़ों को छिपाने के लिए समाचार माध्यमों पर अंकुश लगाने की कोशिशें कर रही हैं।टीके और दवाओं के निर्माण में दुनिया में सबसे आगे होने के बावजूद भारत में अपने ही लोगों के बचाव के लिए टीकों की भारी तंगी हो गई है। दुनिया की टीका और दवा फ़ैक्टरी होने के ढोल पीटती फिर रही मोदी सरकार को टीकों और दवाओं के लिए दुनिया के सामने हाथ फैलाने पड़ रहे हैं। विश्वगुरु बनाते-बनाते मोदी सरकार ने भारत को एक विश्वसंकट में बदल दिया है। यह हाल तब है जबकि तैयारी के लिए महामारी ने भारत सरकार को दुनिया के बाक़ी बड़े देशों की तुलना में ज़्यादा समय दिया। जब अमेरिका, यूरोप और दक्षिण अमेरिका के देश महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहे थे उस समय भारत में महामारी का फैलाव ना के बराबर चल रहा था।लेकिन सरकार ने इस मोहलत का प्रयोग लोगों को टीकाकरण से सुरक्षित करने और बीमारों के इलाज का प्रबंध करने के बजाय उस जीत का ढोल पीटने में किया जो हासिल ही नहीं हुई थी।अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की एक बात के लिए दाद देनी पड़ेगी। वे जान गए थे कि सबको टीका लगाए बिना इस महामारी से नहीं बचा जा सकता। इसलिए भले ही उन्होंने लॉकडाउन, मास्क और सामाजिक दूरी का मज़ाक बना कर और दूसरी लहर के बीच जाकर चुनाव रैलियाँ की हों, लेकिन टीकाकरण का काम युद्ध-स्तर पर चलाने के लिए कंपनियों को अरबों डॉलर पेशगी दिए और अभियान की बागडोर सैनिक अफ़सर को सौंप दी थी जिसकी वजह से अमेरिका में आधी आबादी को टीके लग चुके हैं और महामारी काबू में है।ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन ने और इस्राइली प्रधानमंत्री नेतनयाहू ने भी ट्रंप की देखा-देखी अपने यहाँ वही किया। हैरत की बात यह है कि ट्रंप को अपना दोस्त बताने वाले भारत के प्रधानमंत्री मोदी इस काम में पूरी तरह चूक गए। वे चाहते तो भारत बायोटेक और सीरम इंस्टीट्यूट को कम-से-कम सौ करोड़ टीकों का पेशगी ऑर्डर दे सकते थे और युद्ध स्तर पर टीके लगवा कर अब तक आधे से ज़्यादा देश को महामारी से सुरक्षित बना सकते थे।इस काम के लिए उन्हें मौलिक रूप से सोचने की ज़रूरत भी नहीं थी। उनके तीनों दोस्त, ट्रंप, जॉन्सन और नेतनयाहू अपने-अपने देशों में यही कर रहे थे। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। यह सही है कि भारत के लोगों ने सही तरह से मास्क लगाने, सामाजिक दूरी रखने और स्वच्छता रखने में कोताही बरती, क्योंकि यह सब उनकी आदतों का हिस्सा नहीं है। अमेरिका के भी आधे लोग वैसे ही हैं। ट्रंप इस बात को और अपने लोगों को जानते थे। लेकिन क्या मोदी को अपने लोगों की आदतों का अंदाज़ा नहीं था? नेता वही होता है जो अपनी जनता को समझे। गाँधी जी का सारा जीवन इसकी मिसाल रहा।जिस सरकार को यह बात ही समझ में नहीं आई कि इस महामारी से बचाव के लिए टीकाकरण कितना ज़रूरी है उससे दूसरी लहर के पूर्वानुमान की अपेक्षा रखना और उसकी तैयारी में ऑक्सीजन, दवाओं और बिस्तरों का प्रबंध करने की उम्मीद रखना बेमानी है। अफ़सोस की बात यह है कि चीन, अमेरिका और यूरोप में महामारी से हो रहे विनाश को साल भर देखकर भी मोदी जी उससे बचाव के प्रबंध नहीं कर पाए। उतने ही अफ़सोस की बात यह भी है कि किसी भी बड़े विपक्षी नेता ने मोदी सरकार को उसकी इस भूल के लिए आड़े हाथों नहीं लिया। टीकाकरण की ज़रूरत और रफ़्तार को लेकर दुनिया भर में विपक्ष अपनी-अपनी सरकारों को आड़े हाथों ले रहा था। लेकिन भारत का विपक्ष केवल धरने-प्रदर्शनों को हवा देने और टीके के ख़तरों को लेकर शोर मचा रहा था जिससे टीके को लेकर पनप रहे संदेह को हवा मिली। कहना न होगा कि भारत की पूरी राजनीतिक बिरादरी ही इस संकट की कसौटी पर खरी नहीं उतरी है। फिर भी, सत्ता में होने के कारण पहली जवाबदेही सरकार की ही बनती है। सरकार ने जो किया उसे किसी भी आधार पर क्षम्य नहीं माना जा सकता। टीकाकरण और पूर्व तैयारी से काबू में रखे जा सकने वाले इस संकट से देश ही नहीं पूरी दुनिया का अकल्पनीय नुक़सान किया है।