सुमन ने दिखा दिया गूंगी बहरी वह नहीं हमारा सिस्टम है
15 हजार आबादी वाले भाड़ावास में बचा एक मात्र झोपड़ी वाला घर वो भी बीपीएल नहीं..
रणघोष खास. सुभाष चौधरी की कलम से
बिलो पॉवर्टी लाइन (बीपीएल) मतलब गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वालों की असली तस्वीर देखनी है तो किसी भी गांव या शहर के गली मोहल्ले की बीपीएल सूची को ईमानदारी से जमीन पर परख लिजिए। पैरो के तले जमीन खिसक जाएगी। जिन्हें असल में बीपीएल कार्डधारी होना चाहिए वे हर रोज सिस्टम से लड़ रहे हैं जिनके अच्छे खासे घर बने हुए हैं वे इस कार्ड का फायदा उठाकर गरीबी का मजाक उड़ा रहे हैँ। हम आपको 40 साल की एक ऐसी महिला सुमन देवी पुत्री स्व. निहाल सिंह की कहानी बता रहे हैं जिसे सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। यह कहानी बता देगी कि सरकार और प्रशासन की नजर में असली गरीब कौन है। बावल विधानसभा का सबसे बड़ा करीब 15 हजार से ज्यादा की आबादी वाला भाड़ावास गांव शहर से महज 7 किमी दूर है। इस गांव से निकली अनेक प्रतिभाओं ने जज से लेकर प्रशासनिक अधिकारी, डाक्टर्स, इंजीनियर्स एवं देश प्रदेश स्तर की राजनीति में नाम कमाया है। यह उन्नत गांवों की श्रेणी में भी आता है। इसी गांव की सुमन देवी बचपन से ना सुन पाती थी और बोल पाती थी। डॉक्टरों की नजर में वह शत प्रतिशत विकलांग है। 20 साल पहले उसकी शादी हुई थी। पति किसी कारणवश छोड़कर चले गए। वह अपने बेटे सन्नी के साथ गांव में एक झोपड़ी में रह रही है। गांव में यह अकेला झोपड़ी वाला घर बचा है बाकि तकरीबन सभी के पक्के मकान हैं। सुमन के पास दिव्यांगता के नाम पर मिलने वाली पेंशन के अलावा कोई आय का साधन नहीं है। पिता पहले ही चल बसे थे। भाई समय समय पर मदद करते रहते हैं। बेटा सन्नी अखबार बांटकर किसी तरह घर को चला रहा है। छोटे-बड़े चुनाव जब होते हैं तो उम्मीदवार सुमन देवी के पास आते हैँ और उसका बीपीएल कार्ड बनवाने की गांरटी देकर चले जाते हैं। कमाल देखिए गांव में ऐसे लोगों के कार्ड बने हुए हैं जो अच्छे खासे घरों में रहते हैं और सभी तरह की सुविधाएं मौजूद है। 2017 में सुमन देवी ने बीपीएल के लिए अप्लाई किया तो उसका छोड़कर सभी का बनकर आ गया। सुमन अपनी पीड़ा ना बता सकती थी और ना ही यह जान पाती थी कि सही और गलती कहां हुईं। उसकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं था। 2019 में उसके भाई ने बीपीएल कार्ड के लिए फिर प्रयास किया तो उसका बीपीएल कार्ड बनाने की बजाय साधारण कार्ड बनकर आ गया। थक हारकर सुमन के परिजनों ने कार्ड बनवाने के प्रयास छोड़ दिए। फरवरी 2020 में किसी ने बताया कि अब ऑन लाइन बीपीएल कार्ड फार्म भरे जा रहे हैं। सुमन देवी ने किसी तरह अप्लाई किया तो यहां उसे कुछ उम्मीद लगी। कार्ड के लिए पत्राचार शुरू हुआ। बीपीएल कार्ड के लिए गठित सर्वे टीम भी मौके पर रिपोर्ट लेकर चली गईं। सबकुछ ठीक था। इतना सबकुछ होने के बाद भी सुमन देवी का कार्ड नहीं बना है। पूछने पर एक ही जवाब मिलता है प्रक्रिया जारी है। जल्द ही बनकर आ जाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि जब सुमन देवी जो पूरी तरह से दिव्यांग है, झोपड़ी में रहती है। उसे अपना कार्ड बनाने के लिए इतना संघर्ष करना पड़ रहा है तो प्रशासन की नजर में असली गरीब कौन है। क्यों चार साल के संघर्ष के बाद भी सुमन देवी का कार्ड नहीं बन पाया है। सुमन की यह कहानी पूरी तरह सरकार के गरीबों के लिए बनाए जा रहे बीपीएल कार्ड की असलियत को उजागर कर रही है।
झोपड़ी में शौचालय तक नहीं, खुले जाना पड़ता है
इससे शर्म की बात क्या हो सकती है कि एक तरफ सरकार एवं प्रशासन जिले के प्रत्येक घरों में शत प्रतिशत शौचालय बनाए जाने का दावा करता है। गरीबों के लिए शौचालय बनवाने के नाम पर हजारों रुपए की राशि दिए जाने की व्यवस्था है। सुमन की झोपड़ी में शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं है। उसे मजबूरन बाहर शौच के लिए जाना पड़ता है। ऐसे में खुले में शौच मुक्त गांव की रिपोर्ट की भी जांच होनी चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं कि सुमन की दिव्यांगता का फायदा उठाकर उसके नाम पर आने वाली राशि को भी इधर उधर कर दिया गया हो।
प्रधानमंत्री- राष्ट्रपति को भेजा पत्र
अब सुमन देवी ने अपने परिजनों के सहयोग से प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति को पत्र भेजा है। उसमें पीड़िता ने सरकार से गरीबी की सही परिभाषा पूछी है।