रुखसत तो यूसुफ खान हुए हैं….
दिलीप कुमार तो सदा अमर रहेंगे
रणघोष खास. सुशील कुमार ‘नवीन’
वे ट्रेजेडी किंग थे। उनका शानदार व्यकित्त्व अभिनय की चलती फिरती पाठशाला था। छोटे से छोटे चरित्र को विराटता प्रदान करने वाले बेमिसाल अभिनेता थे। वे हमसे कभी रुखसत हो ही नहीं सकते। सुपुर्दे खाक तो उनके यूसुफ खान वाला शरीर हुआ है। अभिनय की पवित्र आत्मा बन लाखों लोगों के दिल मे दिलीप कुमार के रूप में तो वे हमेशा साथ रहेंगे। जाएंगे तो तब ना जब हम उन्हें जाने की इजाजत देंगे। और ऐसा हो ही नहीं सकता। भारतीय सिनेमा में दिलीप कुमार उर्फ यूसुफ खान को सदा याद किया जाएगा। स्वेत श्याम से रंगीन चलचित्र पटल तक उन्होंने जो विराटता हासिल की उसे पाना कोई सहज नहीं है।जिंदगी का शतक भले ही न बन पाया हो , पर अभिनय के उनके बेमिसाल रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ पाएगा। हर अभिनेता के वो आदर्श रहे। हर किसी ने उनसे कुछ न कुछ सीखा। ज्वार भाटा से शुरू उनका फिल्मी सफर भले ही किला तक समाप्त हो गया हो। पर वे देवदास बन सदा के लिए अमर बन गए। उनके अभिनय की नौका कभी नहीं डूबी वे सदा नदिया के पार ही रहे। जुगनू बन दिल दिया दर्द लिया का तराना खूब गाया। वो चरित्र निभाने में संगदिल जरूर थे पर इंसानियत की भावना कूट-कूट कर भरी थी। संघर्ष से कभी नहीं घबराए। उड़नखटोला भी उनके अंदाज को कभी शिकस्त नहीं दे पाया। मुसाफिर बन भले ही फुटपाथ पर हलचल मचाई हो, पर असल जीवन में तो वे गोपी बन मधुमती के दिल में दीदार की आरजू जगाए रहे। आन को सदा ऊपर रखा।, घर की इज्जत पर कोई दाग नहीं लगने दिया। राम और श्याम बन मेला में खूब धमाल मचाया। क्रांति की मशाल लेकर विधाता भी उनके साथ फिर कब मिलोगी के गीत गाते रहे। जोगन की कोशिश रही तो बाबुल भी नया दौर के लीडर बन गए। वे आजाद थे, आजाद ही रहे। कर्मा की शक्ति से कोहिनूर के सौदागर बन खूब नाम कमाया। अंततः बुधवार को गंगा जमुना तहजीब लिए शहीद की अमरता का पैगाम सुनाते सुनाते वो बैराग धारण कर दुनिया से रुखसत हो गए।
उनके अमर व्यक्तित्व में उनके डायलॉग याद न किये जाए ऐसा तो हो ही नहीं सकता। आप ने शक्ति में सच कहा था- कुल्हाड़ी में लकड़ी का दस्ता ना होता, तो लकड़ी के काटने का रास्ता ना होता। नया दौर के इस डायलॉग के तो क्या कहने। जब अमीर का दिल खराब होता हैं ना, तो गरीब का दिमाग खराब होता हैं। किला फ़िल्म में तो आपने औलाद की ऐसी परिभाषा दी, जिसे और कोई दे ही नहीं सकता। आपने कहा- पैदा हुए बच्चे पर जायज़ नाजायज़ की छाप नहीं होती, औलाद सिर्फ औलाद होती है। देवदास का यह डायलॉग तो प्रेमियों के लिए आदर्श है। कौन कमबख्त है जो बर्दाश्त करने के लिए पीता है, मैं तो पीता हूं कि बस सांस ले सकूं। बैराग फ़िल्म में प्यार की दी गई परिभाषा का कोई जवाब नहीं। प्यार देवताओं का वरदान हैं जो केवल भाग्यशालियों को मिलता हैं। मशाल में आपने वक्त की महिमा का वर्णन करते हुए कहा- हालात, किस्मतें, इंसान, ज़िन्दगी। वक़्त के साथ साथ सब बदल जाता है। नया दौर के इस डायलॉग के तो क्या कहने- जिसके दिल में दगा आ जाती है ना, उसके दिल में दया कभी नहीं आती। आपने मुगल ए आजम में सच कहा था- मोहब्बत जो डरती है वो मोहब्बत नहीं..अय्याशी है गुनाह है। समापन सौदागर के अमर डायलॉग से कर आपको विदाई देता हूं कि-हक़ हमेशा सर झुकाके नहीं, सर उठाके माँगा जाता है।