असम में हिमंत बिस्वा सरमा को सीएम बनाकर बीजेपी ने जहां कई निशाने साध लिए। वहीं, उन नेताओं को संदेश दिया है जो दूसरी पार्टियों से आए हैं या आना चाहते हैं।। बीजेपी ने साफ कर दिया है कि परफॉर्म करने वालों को पद देने में वह पीछे नहीं है। यह संदेश सिंधिया और सचिन पायलट को भी है कि बीजेपी में बड़ी जिम्मेदारी के लिए उन्हें धैर्य रखने के साथ अपनी उपयोगिता साबित करनी होगी। बीजेपी ने सर्वानंद सोनोवाल की जगह हिमंत को सीएम बनाने की न केवल इच्छा पूरी की बल्कि कई अन्य नेताओं की महत्वाकांक्षाओं को भी हवा दे दी। खासकर कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आने वाले उन नेताओं को जो कॉडर आधारित पार्टी में अपने भविष्य को लेकर सशंकित हैं। इनमें पिछले साल मार्च में कांग्रेस से बीजेपी में आए राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हैं और कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिए जाने की प्रतीक्षा में हैं। ये संदेश सिंधिया के साथ उनके मित्र और राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के लिए भी है। राज्य की सत्ता में कांग्रेस की वापसी कराने वाले पायलट मुख्यमंत्री का पद नहीं मिलने से असंतुष्ट हैं और कई बार इसे खुले तौर पर जता भी चुके हैं। सिंधिया जब बीजेपी में आए थे तो उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाने की चर्चा जोर-शोर से चली थी और समर्थकों को पार्टी संगठन में एडजस्ट करने की बात कही गई थी। सिंधिया अपने साथ करीब 25 विधायकों को बीजेपी में लेकर आए थे। नतीजा यह हुआ कि तब मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई और बीजेपी को सरकार बनाने का मौका मिल गया। सिंधिया समर्थकों को मंत्री पद मिला, लेकिन खुद सिंधिया इंतजार में ही है। बीजेपी कॉडर आधारित पार्टी है और इसे लेकर आम धारणा है कि पार्टी में आए लोगों को संदेह की नजरों से देखा जाता है। पार्टी के पुराने लोगों को ही अहम महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी जाती हैं। हालाकि बीजेपी ने हिमंत बिस्वा को सीएम बनाकर इस धारणा को तोड़ने का प्रयास किया है। साथ ही संदेश दिया है कि उसके काम के लोगों को पार्टी पद देने में भी पीछे नहीं रहेगी। जोरहाट में पैदा हुए हेमंत बिस्वा शर्मा ने कांग्रेस के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। साल 2001 से 2015 तक जालुकबारी विधानसभा क्षेत्र में उन्होंने कांग्रेस का दबदबा बरकरार रखा। 15 साल तक वे इस सीट से विधायक रह चुके हैं। साल 2011 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी। इसके बावजूद कांग्रेस से उन्हें तवज्जो नहीं मिली। फिर वे बीजेपी में शामिल हो गए। साल 2016 असम में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी। उन्होंने कांग्रेस को हराने में अहम भूमिका निभाई और फिर सर्बानंद सोनोवाल की कैबिनेट में मंत्री बने, लेकिन उनकी इच्छा सीएम बनने की थी। बीजेपी ने 2016 के बाद से सरमा को कई जिम्मेदारियां दी। खासकर पूर्वोत्तर के राज्यों में अपने विस्तार के लिए पार्टी ने उनका इस्तेमाल किया और सरमा पार्टी की उम्मीदों पर हमेशार खरे उतरे। अब जब पार्टी सत्ता में आई तो उन्हें उनकी मेहनत का फल मिल गया।