रणघोष खास. सुभाष चौधरी
हरियाणा में रेवाड़ी जिला गांव माजरा में प्रस्तावित एम्स एक बार फिर सिस्टम की लापरवाही की वजह से बीमार यानि ठंडे बस्ते में चला गया है। राजनीति के हिसाब से बात करें तो एम्स का सही ऑप्रेशन 2024 में होने जा रहे लोकसभा व राज्य के चुनाव के आस पास होगा। फिलहाल सरकार के पास भरोसा दिलाने के लिए कैप्सूल हैं जिसे खाते रहने से कुछ समय तक आराम रहता है।
शुक्रवार को जैसे ही एम्स को लेकर जारी किए गए टेंडर के रद्द होने की सूचना जारी हुईं ऐसा लगा यह परियोजना दूसरों का इलाज करने की बजाय खुद ही कोमा में चली गईं। पिछले आठ सालों से एम्स की हालात उस मनोरोगी जैसी बना दी गई है जो कभी लगातार हंसता नजर आएगा तो कभी रोने के बाद चुप नहीं रहेगा। करीब दो माह पहले राजनीति व प्रशासनिक स्तर पर हलचल मचाई गई कि पीएम नरेंद्र मोदी संभवत 23 सितंबर को रेवाड़ी या गुरुग्राम से एम्स का जमीन पर उतर जाने का ऐलान कर सकते हैँ। कुछ दिन बाद यह दावा भी शगूफा निकला। वजह टेंडर में हो रही देरी बताया गया। बाद में यह कार्रवाई पूरी हो गई तो अब टेंडर रदद किए जाने की सूचना जारी कर दी गई। यानि 8 साल बाद तमाम विरोधाभास- किंतु परंतु के बीच एम्स का श्रेय लेना भाजपाईयों के लिए गन्ने का मशीन में निचोड़े जाने के बाद की बची हैसियत जितना रह गया है। जुलाई 2015 में इसकी घोषणा हुई थी जिसे समझने और समझाने में सितंबर 2023 आ गईं। 8 साल में तो शिशु भी मां के गर्भ से बाहर आकर बैठना, उठना, चलना, दौड़ना, स्कूल जाना और घर आकर यह बता देता है कि हमारे देश के पीएम का नाम नरेंद्र मोदी है। मतलब इन सालों में एक मासूम दुनियादारी व समझदारी सीख जाता है। एम्स परियोजना को जमीन पर उतारने के लिए हमारे नेता सिर्फ सोचते ही रह गए। इस हिसाब से यह बच्चा जब डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए तैयार हो जाएगा उस समय तक एम्स भवन ही शायद बन पाए। राजनीति गलियारों में चर्चा है कि राज्य व केंद्र सरकार इस परियोजना का फायदा एक साल बाद होने जा रहे चुनाव में लेना चाहती है। इसलिए किसी ना किसी बहाने से निर्माण कार्य को आगे के लिए सरकाया जा रहा है। कुल मिलाकर विपक्षी दलों के लिए टेंडर रदद होने की खबर अच्छा खासा मुददा बनने जा रही है तो सत्ताधारी नेताओं के लिए कान की सफाई का बहाना।