रणघोष खास. सुभाष चौधरी
50 साल से देश प्रदेश की सफल राजनीति करते हुए हरियाणा राजनीति के इतिहास में छह बार सांसद बनने का रिकार्ड बनाने वाले राव इंद्रजीत सिंह का तजुर्बा भाजपा हाईकमान की नजर में 2013 में पार्टी ज्वाइन करने के बाद शुरू होता है। इसलिए उनकी नजर में राव की राजनीति 10 साल पुरानी है। इससे पहले की राव की राजनीति से भाजपा को कोई लेना देना नही है। कभी कभार मौका देखकर बोनस अंक के तौर पर उन पर मेहरबानी कर दी जाती है। मसलन छोटे चुनाव में टिकट बंटवारे के समय अहमियत देना इत्यादि। 9 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में नए मंत्रीमंडल में राव ने लगातार स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री के तौर पर शपथ ली। जबकि राजनीति की पाठशाला में उनसे काफी जूनियर रहे अलवर सांसद भूपेंद्र यादव एवं हरियाणा के पूर्व सीएम मनोहरलाल खटटर को मंत्रीमंडल में कैबिनेट का दर्जा मिला। भाजपा संगठन के तौर उक्त दोनो नेता जरूर राव से काफी सीनियर है। इसी तरह फरीदाबाद से सांसद कृष्णपाल गुर्जर को भी राज्य मंत्री के तौर पर लगातार बराबर का सम्मान दिया गया। ऐसे अब सवाल यह उठता है अगर हरियाणा में चार माह बाद विधानसभा चुनाव नहीं होते तो क्या राव को मंत्रीमंडल में शामिल किया जाता।
दरअसल हरियाणा में भाजपा की असल राजनीति अब शुरू होने जा रही है। मनोहरलाल सीएम से हटने के बाद भी हरियाणा में पूरी तरह से असरदार रहेंगे। यह संदेश पीएम मोदी के नए मंत्रिमंडल से जारी हो चुका है। खटटर एवं राव के बीच बेहतर तालमेल नही रहा है यह भी जग जाहिर होता रहा है। केंद्रीय कैबिनेट मंत्री भूपेंद्र यादव भाजपा की ताकतवर ताकतों में एक है। वे एक तरह से भाजपा में संकट मोचक हनुमान जी की भूमिका में रहे हैं। मध्यप्रदेश के बाद उड़ीसा में भाजपा की पहली बार सरकार बनाने में उनकी रणनीति का जलवा हाईकमान मान चुकी है। वर्तमान में उनका मूल निवास गुरुग्राम के गांव जमालपुर में हैं जहां से राव इंद्रजीत सांसद है। भूपेंद्र यादव ने इसी आवास से साथ लगते राजस्थान की अलवर संसदीय सीट पर पहली बार चुनाव लड़कर जीत हासिल की। भाजपा में उनका कद राष्ट्रीय शीर्ष स्तर का है जहा से उनकी कहीं बातों पर भाजपा की राजनीति करवट लेना शुरू कर देती है। जब उन्होंने गुरुग्राम में अपना मूल निवास बनाया उस समय यह लगने लगा था की वे राव इंद्रजीत की राजनीति का बायोडाटा बदलने जा रहे हैं। इसी तरह गुरुग्राम से भाजपा संसदीय बोर्ड की सदस्या डॉ. सुधा यादव का भी गुरुग्राम की राजनीति वसीयत पर दावेदारी को लेकर राव इंद्रजीत सिंह से चुनावी मैदान में दो बार आमना सामना हो चुका है जब राव कांग्रेस का चेहरा हुआ करते थे। इन तमाम वजहों के चलते इस बार के लोकसभा चुनाव में राव ने बेशक भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन भाजपा संगठन और पदाधिकारी उनके साथ महज रस्म अदायगी करते नजर आए जिसका खुलासा वे चुनाव जीतने के बाद अपने समर्थकों के बीच कर चुके हैं। राव ने अब अपना पूरा ध्यान विधानसभा चुनाव में लगा दिया है। वे बेशक केंद्र में मंत्री के तौर पर रहेंगे लेकिन उनका काफिला गुरुग्राम में उन सड़कों और गलियारों में दौड़ता नजर आएगा जहां से उन्हें अपने बेटी आरती राव एवं विश्वसनीय समर्थकों की राजनीति का आधार मजबूत करना है। जाहिर है ऐसा करते ही उनका टकराव भाजपा के भीतर उन दावेदारों के साथ भी होगा जिनकी गिनती पार्टी के समर्पित सिपाही के तौर पर रही है। 2014-2019 के चुनाव में ऐसा हो चुका है। इसी वजह से भाजपा को रेवाड़ी, बादशाहपुर समेत कुछ सीटों पर एक तरफा संभावित जीत के बाद भी हार का सामना करना पड़ा था। इस बार हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा की आंतरिक कलह की वजह से भाजपा को अनेक सीटों पर काफी बड़ा नुकसान उठाना पड़़ा है। जो सांसद जीते हैं उसमें अधिकांश का भाग्य ने साथ दिया इसलिए वे कड़े मुकाबले में हजारों में जीते और जो हार गए उसकी वजह भी अपनो साथ मिलना नही मिलना और भीतरघात रहा। ऐसे में अब देखना होगा की भाजपा हाईकमान अब अंदर बाहर बेकाबू होती स्थिति को कैसे कंट्रोल कर पाती है। आसार आसान नजर नही आ रहे हैं लेकिन राजनीति संभावनाओं में पलती रही है इसलिए कुछ भी हो सकता है।