-रजनी ने खंड स्तर पर आयोजित हिंदी पखवाड़े में “नारा– लेखन” “निबंध” व “कविता पाठ” में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
रणघोष खास. रजनी की कलम से
मेरा नाम रजनी है। मेरे पिताजी का नाम उमेद सिंह और माताजी का नाम मनोज देवी है। इस समय मैं राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय गुगोढ की 12वीं कक्षा की छात्रा हूं। मैंने दसवीं कक्षा में 87% अंक प्राप्त किए थे। हम पांच बहनें हैं। हमारे समाज में लड़कियों की तुलना में लड़कों को अधिक महत्व दिया जाता है,क्योंकि हमारे समाज में अक्सर लड़कों से ज्यादा उम्मीद रखी जाती है। लड़कियों को बोझ समझा जाता है,लेकिन खुशी इस बात की है कि मेरे माता-पिता की सोच समाज से अलग और आधुनिक है। उन्होंने कभी भी लड़कों और लड़कियों में भेदभाव नहीं किया बल्कि हमें लड़कों से बेहतर जीवन दिया। उन्होंने समाज की ओर ध्यान न देकर कदम-कदम पर हमारा साथ दिया। मेरे पिताजी ने दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त की, उसके बाद प्रभाकर की। अच्छे अंक होने के बावजूद भी समाज में फैले भ्रष्टाचार के कारण पिताजी को आगे दाखिला नहीं मिल पाया। जिस कारण पिताजी को बीच में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। समाज की इन परिस्थितियों के कारण पिताजी ने जो सहन किया, उन परिस्थितियों को हमारे सामने नहीं आने दिया। आर्थिक परिस्थितियां कमजोर होने के कारण भी हम पांचों बहनों को शिक्षा के लिए प्रेरित किया और समाज में अलग पहचान बनाने के लिए हमें उच्च शिक्षा दिलाई। मेरी बड़ी बहन ने एमए हिंदी की और उसके बाद नौकरी की तैयारी में लग गई।लेकिन बहुत मेहनत करने के बाद भी वह 1-2 नंबरों से रह जाती है। बड़ी बहन ने दिल्ली, हरियाणा व चंडीगढ़ पुलिस का फिजिकल टेस्ट पास किया लेकिन दुर्भाग्यवश अंतिम सूची में उसका नाम नहीं आ पाया। फिर भी पिताजी ने उसका हौसला बनाए रखा। मेरे पिताजी चाहते हैं कि हम किसी भी सरकारी विभाग में काम करके समाज सेवा करें। मैं अपने माता-पिता के सपनों को साकार करने के लिए पूरी मेहनत करूंगी। हाल ही में खंड स्तर पर आयोजित हिंदी पखवाड़े में मैंने “नारा- लेखन” “निबंध” व “कविता पाठ” में प्रथम स्थान प्राप्त किया। यह सब मैंने अपनी हिंदी की प्राध्यापिका श्रीमती चंचल यादव और गुरु जी राकेश शास्त्री के उचित मार्गदर्शन में किया। वे समय-समय पर मुझे प्रेरित करते हैं और आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। मैं स्वयं को बहुत ही सौभाग्यशाली मानती हूं जो मुझे ऐसे माता- पिता और गुरुजनों का साथ मिला। जिन्होंने न केवल हर कदम पर साथ दिया बल्कि मुझे एक अच्छा इंसान बनाया। अंत में मैं यही इतना कहना चाहूंगी कि हे ईश्वर!मेरे माता- पिता को हमेशा खुश रखे व मेरा साथ दें ताकि मैं उनके सपनों को पूरा कर सकूं। मैं उनका नाम रोशन कर सकूं। साथ ही मैं “दैनिक रणघोष” समाचार- पत्र के संपादक को धन्यवाद देना चाहूंगी कि जिन्होंने मेरे परिवार की संघर्ष-कथा को अपने समाचार- पत्र में स्थान दिया।