हरियाणा में भाजपा गुड खाकर गुलगुले से परहेज कर रही है
-आने वाले छह माह में मनोहरलाल- नायब सैनी की जोड़ी कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतने में कामयाब रही तो चुनाव में वहीं होगा जो मनोहर चाहेंगे। अगर बिखराव नजर आया तो इसका बड़ा खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ेगा ।
रणघोष खास. प्रदीप नारायण
2024 विधानसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले हरियाणा भाजपा ने अपने संगठन का प्रदेश मुखिया बदल दिया। तीन वजह बताईं। पहला पुराने अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ का कार्यकाल पूरा हो गया था। दूसरा पार्टी की नजरें 30 प्रतिशत आबादी वाले बीसी पर रहेगी जहां से नए अध्यक्ष बने नायब सैनी आते हैं। तीसरा सैनी सीएम मनोहरलाल के विश्वासी है जो सरकार- संगठन के बीच बेहतर तालमेल को मजबूत करेंगे। 20 से 25 प्रतिशत जाट आबादी वाले इस राज्य में भाजपा पूरी तरह मन बना चुकी है कि तमाम कोशिशों के बावजूद जाट उनके साथ पूरी तरह जुड़ नहीं पा रहा है। ऐसे में समझदारी यही है कि नॉन जाट का कार्ड खेला जाए जिसकी महारत एक समय में 12 साल सीएम रहे भजनलाल के पास थी।
भाजपा को इस बदलाव का कितना फायदा मिलेगा यह समय बताएगा। इतना जरूर है कि पिछले तीन सालों में संगठन के तौर पर धनखड़ अपनी ऐसी छाप छोड़कर चले गए जिसे समझकर आगे बढ़ने के लिए नायब सैनी को अच्छी खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर यह उनका पहला अनुभव है। वे ऐसा चेहरा है जिसका दायरा अभी जीटी बैल्ट के दो तीन जिलों तक ही रहा है। कुरुक्षेत्र सांसद होने के नाते एक साल तक उनकी जिम्मेदारी अपने संसदीय क्षेत्र के लोगों के प्रति रहेगी। जाहिर है एक साथ दो जिम्मेदारियों को लेकर चलना भी आसान नहीं होगा। धनखड़ ने तो न्यूज चैनलों की तरह 24×7 के फार्मूले पर कार्यकर्ताओं को अस्त व्यस्त किया हुआ था। यहां सवाल बार बार यह उठ रहा है कि चुनाव सिर पर होने पर सरकार- नेताओं से भी पॉवरफुल संगठन को छेड़ने की जरूरत क्यों पड़ गईं। आमतौर पर भाजपा हाईकमान राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर जिला अध्यक्ष को ऐसे मौके पर बजाय हटाने के कार्यकाल विस्तार को समझदारी मानती रही है। इस तरह का बदलाव तभी होता है जब अंदरखाने संगठन ओर सरकार के बीच जबरदस्त खींचतान चल रही हो। धनखड़ का हटना इस बात का साफ इशारा है। ऐसा भी नहीं है कि संगठन मुखिया के खिलाफ कार्यकर्ताओं में रोष पनप रहा था। धनखड़ की वर्कस्टाइल का लोहा दिल्ली से देश चला रही हाईकमान भी मान चुकी थी। जिस तरह गांव की चौपाल तक धनखड़ भाजपा की हुक्का टोली बना चुके थे। जिसका फायदा भाजपा को 2024 में मिलना था। क्या उसी अंदाज से या उससे बेहतर नायब सैनी कर पाएंगे। यह देखने वाली बात होगी। भाजपा में कांग्रेस- इनेलो- जेजेपी की तरह वन मैन शो वाला फॉरमेट नहीं है। यहां अध्यक्ष को साबित करना होता है। नायब सैनी के लिए अभी से एक एक दिन अग्नि परीक्षा से कम नहीं है। सैनी पूरी तरह सीएम मनोहरलाल के अनुभवों से आगे बढ़ेंगे यह भी तय है। सीएम पर प्रदेश के साथ साथ पार्टी संगठन को संभालना भी बेहद चुनौतीपूर्ण रहेगा। यहां सैनी का कमजोर पड़ने का मतलब सीएम का घेराव है। जिसका इंतजार भाजपा के भीतर एक धड़े को है। आने वाले छह माह में मनोहरलाल- नायब सैनी की जोड़ी कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतने में कामयाब रही तो चुनाव में वहीं होगा जो मनोहर चाहेंगे। अगर बिखराव नजर आया तो इसका बड़ा खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ेगा । यह एक तरह से लॉस्ट बाल पर जरूरी सिक्स या बोल्ड होने की तरह है। कुल मिलाकर मौजूदा हालात में भाजपा संगठन में यह बदलाव गुड खाकर गुलगुले से परहेज जैसा भी है। जहां कार्यकर्ताओं में गुलगुले की तरह रहे धनखड़ की जगह सीएम के गुड सैनी आ गए।
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