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अच्छा है सत्यनारायण चुपचाप चला गया, एक पत्रकार की अहमियत तब तक है जितनी वेश्या की जवानी..
–असल सच यह है कि मौजूदा बाजारू पत्रकारिता में एक पत्रकार की मौत इसलिए मायने नहीं रखती क्योंकि उसकी अहमियत तब तक है जब तक एक वेश्या में जवानी रहती है। एक पत्रकार की मौत के पीछे छिपे संघर्ष का…