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आज यह चाँद एक तिरछी सी सुनहरी लकीर सा है। रात आज सोई सोई सी है
होई जबै द्वै तनहुँ इक आँगन के पार द्वार ( अध्याय 11 ) रणघोष खास. बाबू गौतम ” मैंने जब बावरी को मृत मानने से इनकार किया तो मैं उसकी जुदाई के दुख से बौराया नहीं था। बल्कि मैं मृत्यु को अक्षम क…