आरटीए कहीं भी जाए, उसकी मर्जी, बदनाम हुआ तो क्या हुआ हैसियत पूरी..

-आरटीए जिस डंफर या ट्रक को इशारे में छोड़ता है। उसके पीछे लिखा होता है 100 मे से 80 बेईमान फिर भी भारत महान.. 


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


रेवाड़ी जिला सचिवालय पर सभी की नजरों में रहने वाले रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑथारिटी मतलब आरटीए  को पाबंदियां पंसद नहीं है। बदनाम हुआ तो क्या हुआ हैसियत पूरी रखता है। इसलिए उपायुक्त अशोक कुमार गर्ग से लेकर किसी भी सीनियर अधिकारियों को भनक तक नहीं लगी कि यह विभाग कब सचिवालय से सरककर 20 किमी दूर बावल में शिफ्ट हो गया। वहां पूरी शांति है। कोई परेशान करने वाला नहीं बेशक जिले की जनता बुरी तरह इधर से उधर भटकती रहे। सोचिए इस सिस्टम को सही मायनों में कौन चला रहा है। उपायुक्त जिले का कप्तान होता है। विभाग को इधर करते समय उन्हें विश्वास में नहीं लिया गया। अब आरटीए को वापस मुख्यालय पर लाने के लिए पत्राचार शुरू हो गया है। इस पूरे घटनाक्रम में एक साथ कई सवाल खड़े हो रहे हैं जो साफ इशारा करते हैं कि इस महकमें में काम करने का अपना तौर तरीका है। इसमें काम करने वाले चपरासी से लेकर शीर्ष अधिकारी में काम करने का गजब सा उत्साह होता है। इनकी खिड़की के आगे आमजन कम दलालों का झुंड ज्यादा नजर आता है। सरकार ने इस विभाग में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कई तरह के प्रयोग किए लेकिन सारे बेअसर साबित हुए। उल्टे भ्रष्टाचार को कितनी खुबसूरती से किया जा सकता है के तौर तरीकों में यह महकमा सबसे आगे हैं। यहीं वजह है कि हरियाणा विजिलेंस की चपेट में आने के बावजूद कुछ कर्मचारी एवं अधिकारी बहाल होकर प्रमोशन के साथ अपनी डयूटी कर रहे हैं। सोचिए जिस महकमें को पारदर्शी एवं साफ सुथरा बनाने में राज्य सरकार का तंत्र- मंत्र फेल हो गया,  एक से बढ़कर एक रणनीतियां धरी रह गईं। ऐसे में आरटीए विभाग की दादागिरी नहीं चलेगी तो किसकी चलेगी। साफ सुथरी बात है। इस महकमें की वजह से  असरदार नेताओं का सफेद कुर्ता पायजमा चमकता नजर आता है। संबंधित कुछ अधिकारियों के चेहरों पर ताजगी बनी रहती है। महकमें में काम करने वाले छोटे- बड़े कर्मचारियों का रूतबा- रहन सहन बताता है कि नौकरी इसे कहते हैं। कुल मिलाकर सबको सबका पता है। आरटीए जिस डंफर या ट्रक को इशारे में छोड़ता है। उसके पीछे लिखा होता है 100 मे से 80 बेईमान फिर भी भारत महान. बात खत्म..।