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ऐसे जैसे मेरे भीतर उतर रही है, धीरे धीरे। और साँझ होते ही….
होई जबै द्वै तनहुँ इक प्यार की नयी परिभाषा ( अध्याय 9) रणघोष खास. बाबू गौतम यह शख्स मुझे जानता हो, मुमकिन नहीं है। मैं ही इसके पास गया था, वह भी बेसाख्ता। यह मुझे ढूँढता हुआ नहीं आया है। लगता है यह…