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किसानों के मन की बात सुननी ही पड़ेगी नहीं तो सरकार की बात शोर लगेगी
कड़ाके की ठंड में हम अपने घरों में रजाइयों में दुबके हैं और देश के अन्नदाता किसान खुले आसमान में सड़कों पर रात बिताएं? क्या हमने ऐसे लोकतंत्र की कल्पना की थी जिसमें अभिव्यक्ति की आजादी को कुचला जाए? …