सीएम ने कहा रीजनल रैपिड ट्रांसिट सिस्टम शुरू हो गया है जबकि एचएसआईआईडीसी जवाब दे रही है कि प्रोजेक्ट के तहत मुआवजा देने के बाद ली गई जमीन कोडी नोटिफाई कर रहे हैं
रणघोष अपडेट. चंडीगढ़. रेवाड़ी
मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने 10 नवंबर को प्रेस को जारी बयान में कहा कि 70 हजार करोड़ की लागत से सराय- कालेखा करनाल और सराय कालेखा से अलवर राजस्थान बार्डर के बीच रैपिड ट्रांसिट सिस्टम क्नेक्टिविटी परियोजना शुरू की है। इस परियोजना के तहत जब अधिग्रहित की गई जमीन का मुआवजा मिलने के बाद बचे स्ट्रक्चर की राशि को लेकर जिला रेवाड़ी के 20 गांवों के किसानों ने अनेक शिकायतों, धरना प्रदर्शन के बाद सीएम विंडो लगाई तो एचएसआईआईडीसी ने हैरान करने वाला जवाब दिया। इस महकमें ने बताया कि जिस जमीन को एमआरटीएस प्रोजेक्ट के तहत अधिग्रहित किया था उसे डी नोटिफाई किया जा रहा है। जबकि यहीं एचएसआईआईडीसी इस जमीन का 120 करोड़ का मुआवजा 2017-18 में बांट चुकी है। किसान इस जमीन पर बने स्ट्रक्चर की राशि को लेकर अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं जिसका अवार्ड भी 8 सितंबर 2021 को इस महकमें ने कर दिया था। ऐसे में सवाल उठता है कि सीएम ने जिस तरह रैपिड ट्रांसिट सिस्टम क्नेक्टिविटी परियोजना शुरू होने का दावा किया है तो एचएसआईआईडीसी बकायदा लिखित में पीड़ित किसानों को उनकी जमीन डी नोटिफाई करने की बात किस आधार पर कर रही है। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि सरकार के अंदर आपसी तालमेल की कमी है या इस प्रोजेक्ट में अधिकारियों के स्तर पर बहुत बड़ी चूक की गई है जिसके कारण मुआवजा देने के 4 साल बाद अधिग्रहित की गई जमीन को डी नोटिफाई करने की बात की जा रही है। यहां बता दें कि स्ट्रक्चर के मुआवजा को लेकर किसान पिछले तीन माह से लगातार संघर्ष कर रहे हैं। पंचायती चुनाव के चलते आंदोलन को स्थगित किया गया है। 12 नवंबर के बाद नए सिरे से किसान बड़ा आंदोलन खड़ा करने का एलान कर चुके हैं।
केंद्रीय आवास और शहरी विकास मंत्रालय ने भी कहा…..
दिल्ली- अलवर प्रोजेक्ट पर काम शुरू
करीब छह माह पहले भी केंद्रीय आवास और शहरी विकास मंत्रालय के सचिव मनोज जोशी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा था कि दिल्ली से मेरठ कारिडोर पर रैपिड ट्रेन का परिचालन जल्द ही शुरू करने की तैयारी चल रही है। यह पूरा प्रोजेक्ट 30 हजार करोड़ रुपये का है। इसलिए रिकवरी भी जरूरी है, जिससे ऋण की धनराशि लौटाई जा सके। किराया इसी हिसाब से तय किया जाएगा कि अधिक से अधिक यात्री इसमें सफर कर सकें। हालांकि, यह इतना कम भी नहीं होगा कि ट्रेन में बहुत ज्यादा भीड़ बढ़ जाए। ट्रेन के परिचालन और रखरखाव के लिए जर्मनी की कंपनी दोसेभान को पार्टनर चुना गया है। सभी के साथ राय मशविरा करने के बाद ही किराया फाइनल किया जाएगा। साथ ही उन्होंने कहा कि इसके बाद निस्संदेह दिल्ली-अलवर कारिडोर। इस संबंध में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) और निर्माण पूर्व गतिविधियों सहित तैयारी भी पूरी कर ली गई है। यूटिलिटी डायवर्जन का काम पूरा होने वाला है। कारिडोर पर सड़क चौड़ीकरण, पाइपलाइनों की शिफ्टिंग और बिजली की हाई टेंशन लाइनों का काम भी चल रहा है। राज्य सरकारों की मंजूरी पहले ही मिल चुकी है।
जिला रेवाड़ी में किसानों को मिल चुके 120 करोड़ रुपए
एमआरटीएस परियोजना (Mass.rapid transit system and allies use and early project DMIC) के विस्तारीकरण हेतु एचएसआईआईडीसी द्वारा रेवाड़ी जिले के 20 गांवों की 93 एकड़, 7 कनाल 16 मरला जमीन अधिग्रहण की गई थी। यह अधिग्रहण प्रक्रिया 2013 से चलकर 2018 तक चली। जिसके तहत 2017- 2018 में इस परियोजना के तहत इन जमीनों एवं बने भवनों की कुल मुआवजा 201 करोड़ 53 लाख 62 हजार 130 रुपए अवार्ड हुआ। जिसमें 120 करोड़ रुपए जमीन के नाम पर किसानों को जारी कर दिए। उसके बाद एचएसआईआईडीसी ने 8 सितंबर 2021 को इन जमीन पर बने स्ट्रक्चर का अवार्ड भी जारी कर दिया। मुआवजा मिलने की उम्मीद व जमीन चले जाने की स्थिति में किसानों व भवन मालिकों ने अपने व्यवसाय एवं घरों के लिए अलग से जमीन खरीद कर बनाना शुरू कर दिया। अधिकांश ने यह सोचकर कर्ज भी उठाया कि सरकार जल्द ही स्ट्रक्चर की राशि जारी कर रही है। जिला राजस्व अधिकारी रेवाड़ी 15 बार मुआवजा को लेकर पत्र भेजता रहा। एक साल से अधिक का समय बीत गया। जिस किसानों को जमीन का मुआवजा मिल चुका है उसकी जमाबंदी में एचएसआईआईडीसी मालिकाना बन चुकी है जबकि स्ट्रक्चर की राशि मिली नहीं है। सीएम विंडो के जवाब में एचएसआईडीडीसी ने जवाब दिया है कि इस प्रोजेक्ट को डी नोटिफाई करने की अनुशंसा कर फाइल सीएम कार्यालय भेज चुकी है। वहां से निर्णय होने के बाद ही मुआवजा मिलेगा। यानि जिसकी जमीन अधिग्रहित की उसे 10 सालों से गुमराह करके रखा। उसके कारोबार को खत्म् कर दिया। कुछ करने नहीं दिया और बड़ी आसानी से कह दिया अब इसे डी नोटिफाई करेंगे। 20 दिन पहले किसान जिला प्रशासन से मिलकर विडियो जारी कर आत्महत्या करने जैसे आत्मघाती कदम उठाने की चेतावनी दे चुके हैं। ढाई माह से स्ट्रक्चर मुआवजा को लेकर धरना प्रदर्शन जारी है। ऐसे में सवाल उठता है कि जिसे जमीन का मुआवजा मिल चुका है वह तो अन्य कार्यों में खर्च कर चुका है। उसकी रिकवरी कैसे संभव हो सकती है। अधिकारियों की गलत नीतियों एवं निर्णयों का खामियाजा किसान क्यों भुगते। मुआवजा कम ज्यादा को लेकर भी कोई विवाद नहीं है। डी नोटिफाई को लेकर जिस सेक्शन u/s 101-A का हवाला दिया गया है वह मुआवजा देने से पहले जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया के दायरे में आता है। मतलब सरकार ने जिस जमीन का मुआवजा देकर उस पर कब्जा नहीं लिया उसे वह परिस्थिति अनुसार डी नोटिफाई कर सकती है। यह सेक्शन स्ट्रक्चर मुआवजा पर लागू नहीं होता। किसानों का कहना है कि जिसकी जमीन पर एचएसआईआईडीसी रिकार्ड में मालिक बन चुकी है। उनके स्ट्रक्चर का मुआवजा सम्मान के साथ जारी होना चाहिए। यह कैसे हो सकता है कि मन किया जमीन पर कब्जा कर लिया दिमाग बदला तो उसे वापस लौटा दिया। अधिकारियों की ज्यादती के चलते कुछ किसान कोर्ट में भी चले गए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि हरियाणा के इतिहास में पहली बार किसानों के साथ ज्यादती हुई है कि सरकार ने जमीन का मुआवजा देने के नाम पर किसानों का भिखारी बना दिया। किसानों ने मुख्यमंत्री से हाथ जोड़कर विनती है कि वे इस पूरे मामले में किसानों की गलती बताए। अगर नहीं है तो स्ट्रक्चर के नाम पर बची मुआवजा राशि तुरंत जारी करवाए ताकि किसान आत्महत्या करने के लिए मजबूर नहीं हो।