क्रिकेट के कोहिनूर थे वार्न, कई पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे

रणघोष खास. विमल कुमार 

करीब 15 साल के दबदबे के बाद शेन वार्न जब 2006-07 में अपनी आखिरी टेस्ट सीरीज़ इंग्लैंड के खिलाफ खेल रहे थे तब भी उनका जलवा बरकरार था। पूरी सीरीज़ में तीन मौकों पर वार्न ने पारी में 4 विकेट लेने का कमाल दिखाया और एशेज़ सीरीज़ क 5 मैचों में 23 विकेट झटके। लेकिन, सबसे यादगार लम्हा रहा था मेलबर्न टेस्ट जो उनका घरेलू मैदान हुआ करता था। बॉक्सिंग डे टेस्ट के पहले दिन जब वार्न ने पारी में 5 विकेट लेकर टेस्ट में 700 विकेट का आंकड़ा छुआ तो हर किसी ने पूछा कि भला शेन वार्न की पटकथा कौन लिखता है। वार्न ने भी उस वक्त मुस्कराते हुए ऊपर वाले की तरफ इशारा किया। लेकिन, जिस बेदर्दी के साथ वार्न ने दुनिया को अलविदा कहा है उससे तो नहीं लगता है कि उनकी पटकथा ईश्वर ही वाकई लिख रहा था।क्रिकेटर आयेंगे और जायेंगे। हीरो भी बनेंगे और विलेन भी बनेंगे लेकिन शेन वार्न जैसा बेटा क्रिकेट को शायद ही दोबारा मिले। असाधारण प्रतिभा वाले इस गेंदबाज़ का जन्म मानो लेग स्पिन की गेंदबाज़ी के लिए ही हुआ था। वार्न लेग स्पिन के दीवाने थे या फिर लेग स्पिन को वार्न से इश्क हो गया था ये कहना शायद मुमकिन नहीं।

खुशमिज़ाज इंसान थे वार्न 

बहरहाल, जिन लोगों ने वार्न के साथ ड्रेसिंग रुम और मैदान में वक्त बिताया वो सब मानते हैं कि उनकी मौजूदगी में एक पल भी उदासी का नहीं होता था। जितने रंगीन-मिज़ाजी के लिए वो बदनाम हुए, उससे ज़्यादा खुशमिज़ाज किस्म के इंसान वार्न अपने चाहने वालों के लिए थे। कुछ साल पहले टीम इंडिया के पूर्व खिलाड़ी यूसुफ पठान ने वार्न के बारे में एक दिलचस्प बात कही थी। पठान ने कहा था, “अगर वार्न नहीं मिलता मुझे तो ऐसा आत्म-विश्वास मेरे खेल में नहीं आता। खुद पर नहीं आता। क्या बंदा है यार, जब बोलता है तो लगता है कुछ भी कर सकता हूं।”  पठान ही नहीं वार्न ने एक दशक पहले कई भारतीय युवा खिलाड़ियों को नई राह दिखायी। आज जिस रविंद्र जडेजा को दुनिया सर जडेजा कहकर सलाम करती है उसे 2008 में रॉक-स्टार कहने वाले तो वार्न ही थे ना।अगर ये कहा जाए कि लेग स्पिन जैसी विधा के वार्न बेहद आधुनिक प्रचारक थे तो शायद ग़लत नहीं होगा क्योंकि अगर वार्न नहीं आते हो सकता है कि ये लेग स्पिन भी क्रिकेट से शायद अप्रासंगिक हो जाती। क्रिकेट को हमेशा अपने इस लाडले पर गर्व करना चाहिए। क्या हुआ अगर ये लाडला बीच-बीच में राह भटक जाया करता था। वैसे भी वार्न के बार में ये कहावत चरितार्थ होती है कि अगर सुबह का भूला शाम घल लौट आये तो उसे भूला नहीं कहते हैं। वाकई में क्रिकेट के मैदान में वार्न ने दुनिया भर के लोगों को इतनी खुशियां दी, अनगिनत चेहरों पर मुस्कानें बिखेरी कि निजी ज़िंदगी के उनके कुछ स्कैंडल्स को ज़्यादातर लोगों ने बस उनका लड़कपन समझकर नज़रअंदाज़ कर दिया। और शायद वार्न जैसे जीनियस के लिए ऐसा ही नज़रिया अपनाने की ज़रुरत थी। नैतिकता के आयने से देखने से वार्न की मैदान वाली छवि शायद बहुत सारे लोगों को खोखली भी लग सकती थी।