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तीसरी लहर से पहले हमारे भीतर शिव का तीसरा नेत्र खुले तो रास्ते बनें और लोक व तंत्र दोनों बचें
रणघोष खास. कुमार प्रंशात जब हर बीतते दिन के साथ देश हारता जा रहा हो और सांसें टूट रही हों तब हम कुछ लोगों या दलों की हार-जीत का विश्लेषण करें तो कोई कह सकता है कि यह तुच्छ हृदयहीनता या असभ्यता है।…