दक्षिण हरियाणा की राजनीति में हुई हलचल

अहीर रेजीमेंट की मांग उठाकर दीपेंद्र ने भाजपा यादव नेताओं को परेशानी में डाल दिया


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


कांग्रेस से राज्य सभा सांसद दीपेंद्र हुड्‌डा ने शून्यकाल के दौरान अहीर रेजीमेंट का मुद्दा उठाकर एक तरह से दक्षिण हरियाणा के भाजपा यादव नेताओं को परेशानी में डाल दिया है। आमतौर पर राजनीति में जाति विशेष के नेता ही अपनी बिरादरी की आवाज को तेज करते आए हैं। दीपेंद्र ने सही समय पर इस ज्वलंत मुद्दे पर अपनी मोहर लगाकर उन नेताओं के अरमानों पर पानी फेर दिया जो आगे चलकर खुद श्रेय लेने का  इरादा बनाए हुए थे। यहां  बता दें कि रोहतक से भाजपा सांसद डॉ. अरविंद शर्मा भी लोकसभा में यह मसला उठा चुके हैं जबकि केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह अपनी सरकार के सामने समय समय पर यह मसला उठाते रहे हैं। इसके बावजूद केंद्र की तरफ से अभी तक इस मुद्दे को लेकर ऐसा कोई संकेत नहीं आया है जो उबल रहे इस मसले को शांत कर सके।

दरअसल पिछले कुछ माह से सेना में अहीर रेजीमेंट बनाने की मांग सड़कों पर शोर मचा रही है। यह मसला अब भावनात्मक होने के साथ साथ जाति विशेष को एक बैनर के नीचे आने के लिए भी मजबूर कर रहा है। हरियाणा- केंद्र में भाजपा सरकार होने की वजह से भाजपा यादव नेताओं पर ठीक उसी तरह का दबाव बनता जा रहा है जिस तरह कृषि बिल को लेकर किसानों की राजनीति करने वाले नेताओं पर।  हालांकि यह मुद्दा नया नहीं है। पिछले कई सालों से समय समय पर इसकी मांग पानी के बबुले की तरह उठती रही है । इस बार स्थिति एकदम अलग नजर आ रही है। जहां तक दीपेंद्र हुड्‌डा की जुबान से निकले इस मुद्दे को उठाने की बात है। इसका राजनीति फायदा उन्हें आने वाले दिनों में मिलेगा। इसकी वजह भी साफ है। जाट होते हुए भी दीपेंद्र हुड्‌डा अहीरवाल में बेहद ही असरदार नेता के तौर पर अपनी ताकत रखते हैं। इसलिए हर जगह उनके नाम पर समर्थकों की फौज हमेशा सजग रहती है। पिछले लोकसभा चुनाव में रोहतक लोकसभा सीट से वे बेशक जीत दर्ज नहीं कर पाए लेकिन आमजन में उनकी लोकप्रियता को भाजपाई अभी तक कमजोर नहीं कर पाए हैं। अपने मधुर एवं शील व्यवहार की वजह से दीपेंद्र की एक आवाज पर कार्यकर्ताओं की अच्छी खासी फौज दो दो हाथ करने के लिए तैयार हो जाती है। इसमें कोई शक नहीं की पिछले चुनाव में रोहतक सीट पर भाजपा प्रत्याशी डॉ. अरविंद शर्मा को जीत देश में दौड़ती पीएम मोदी लहर के नाम पर मिली थी जबकि महज 7503 वोटों से हारने वाले दीपेंद्र को वोट उनके नाम,व्यवहार एवं कुशल कार्यशैली की वजह से मिले थे ना की कांग्रेस के प्रभाव से। हालांकि अभी छोटे- बड़े चुनाव में दो साल का समय बचा हुआ है लेकिन दीपेंद्र ने सही समय पर अहीर रेजीमेंट की आवाज में अपना सुर मिलाकर अहीरवाल की जमीन पर अपनी राजनीति हैसियत को काफी हद तक सुरक्षित कर लिया है।