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पांच या पचास (अध्याय-1) होई जबै द्वै तनहुँ इक
..इतनी छोटी ज़िंदगी जीना ज़िंदगी की तौहीन करना है रणघोष खास. बाबू गौतम मेरे कदम अचानक रुक गये। कार की चाबी वापस जेब में रख कर उसे देखता रहा। देखा मैंने उसे पहले भी कई बार था, पर चेहरा आज पहली बार …