बावल चेयरमैन बने वीरेंद्र सिंह की जीत में भाजपा- कांग्रेस का गठबंधन छिपा हुआ था

गुर्जर वोट चौकन को नहीं मिला, वीरेंद्र को मिला जाट का पूरा साथ


– डॉ. बनवारीलाल के लिए आगे का राजनीतिक सफर आसान नहीं


–चुनाव में लगे आरोप, डॉ. बनवारीलाल के निजी लोगों ने इकठठी कर ली बेहिसाब संपत्ति


– स्थानीय भाजपा नेताओं ने भी नहीं दिखाई दिलचस्पी


रणघोष खास. सुभाष चौधरी


बावल नगर पालिका चुनाव में शानदार मतों से चेयरमैन बने कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार एडवोकेट वीरेंद्र सिंह महलावत की जीत में भाजपा- कांग्रेसी नेताओं का अंदरखाने हो चुका गठबंधन काम कर गया। चुनाव परिणाम के बाद तस्वीर एकदम साफ हो गई हैं। सोचिए राज्य के कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारीलाल का चुनाव से कुछ समय पहले कांग्रेसी विचारधारा वाले शिवनारायण जाट को भाजपा की टिकट दिलाकर लाइन में खड़े पुराने कार्यकर्ताओं को सीधे नाराज करना समझ से परे था। दूसरा जीत के बाद चेयरमैन बने वीरेंद्र सिंह का केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह को अपना राजनीतिक गुरु बताकर चुनाव में चुप रहने पर आभार जताना भी बहुत कुछ कह गया। तीसरा कहने को भाजपा- जेजेपी गठबंधन का राग अलाप कर हरियाणा में सबसे ज्यादा सीट जीतने का शोर मचा रही है जबकि बावल में जेजेपी की पूरी टीम आजाद उम्मीदवार दीनदयाल सैनी को जीताने में लगी हुई थी। यानि जिसका जो जोर चल रहा था वह आमजनता की आंखों में धुल झोंककर अपने छिपे एजेंडे को अंजाम देने में लगा हुआ था। अब आते हैं मतदाताओं पर। कुछ प्रतिशत ने मतदान से ठीक एक- दो दिन पहले खुद को चुनाव की इस मंडी में बेचने में आगे रहे। जिसने ज्यादा बोली लगाई वे उसी के हो गए। चूंकि सबकुछ चोरी छिपे व गोपनीय होता है इसलिए यह खेल भी चुनाव परिणाम के बाद राज बनकर दफन हो जाता है। मक्कारी व गद्दारी करने पर ही कोई खुलासा सामने आ सकता है।

 गुर्जर वोट चौकन को नहीं मिला, वीरेंद्र को मिला जाट का पूरा साथ


मुकाबला सीधा वीरेंद्र सिंह एवं चंद्रपाल चौकन के बीच था। अलग अलग कारणों से दोनों एक दूसरे पर भारी नजर आ रहे थे। परिणाम के बाद जो जानकारी सामने आई उसके मुताबिक चौकन को पूरी तरह अपने समाज का वोट नहीं मिला। समाज में उसके विरोधी वीरेंद्र सिंह के पक्ष में चले गए। साथ ही जाट वोट भी चौकन को उम्मीद से भी कम ना के बराबर मिला। उधर वीरेंद्र सिंह चार जाट उम्मीदवार होते हुए भी सबसे ज्यादा अपने समाज के वोट लेने में कामयाब हो गए। सरप्राइज के तौर पर मिली गुर्जर वोट भी वीरेंद्र सिंह की जीत के गणित को मजबूत कर गईं। राव इंद्रजीत सिंह की चुप्पी ने भी अंतिम समय में भाजपा की वोटों को वीरेंद्र सिंह के पक्ष की तरफ मुंह मोड़ लिया।

स्थानीय भाजपा नेताओं ने भी नहीं दिखाई दिलचस्पी


चुनाव प्रचार में स्थानीय सीनियर भाजपा नेता एवं पदाधिकारियों ने भी भाजपा प्रत्याशी को जीताने में   कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई महज औपचारिकता पूरी करते नजर आए। जातिगत के आधार पर कोई बड़ा नेता भी प्रचार करने के लिए नहीं आया। जाहिर है इस सीट पर भाजपा से ज्यादा डॉ. बनवारीलाल का निजी नुकसान ज्यादा हुआ है

डॉ. बनवारीलाल के लिए आगे का राजनीतिक सफर आसान नहीं


बेशक कोई कुछ कहे यह चुनाव राज्य के कैबिनेट मंत्री डॉ. बनवारीलाल के लिए सबसे बड़ा राजनीतिक नुकसान है। इस चुनाव में राव इंद्रजीत सिंह का खुलकर साथ नहीं आना डॉ. बनवारीलाल के लिए मुश्किलों की शुरूआत है या फिर  भविष्य को ध्यान में  रखकर कोई गहरी रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है। इतना जरूर है कि डॉ. बनवारीलाल में अभी तक वह हिम्मत नहीं आई है कि वे राव इंद्रजीत सिंह के दिशा निर्देश को इधर उधर कर दे। दूसरा डॉ. बनवारीलाल के पास जो अपनी निजी टीम है उसे लेकर भी उनके समर्थकों में गहरी नाराजगी है।

चुनाव में लगे आरोप, डॉ. बनवारीलाल के निजी लोगों ने इकठठी कर ली बेहिसाब संपत्ति


चुनाव प्रचार में डॉ. बनवारीलाल के खिलाफ उनके विरोधियों ने जो हमला किया उसमें भ्रष्टाचार सबसे अह्म मुददा था। बताया जा रहा है कि पिछले कुछ सालों में डॉ. बनवारीलाल के बेहद करीबियों ने प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए बेहिसाब संपत्ति इकठठी कर ली है। हालांकि यह आरोप है। यह भी बताया जा रहा है कि राजस्थान के कुछ जिलों में कई सैकड़ों एकड़ जमीन भी बावल के पत्ते पर रजिस्ट्रर्ड हो चुकी है। हालांकि डॉ. बनवारीलाल बार बार भ्रष्टाचार करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की बात करते रहे हैं। अब देखना है कि नप चेयरमैन बने वीरेंद्र सिंह जिसका सीधे तौर पर डॉ. बनवारीलाल से छत्तीस का आंकड़ा है। वे कार्यभार ग्रहण करने के बाद कितनी ईमानदारी, जिम्मेदारी एवं जवाबदेही से बावल शहर के विकास की असल तस्वीर को सामने रख पाते हैं। औद्योगिक क्षेत्र होने की वजह से नपा बावल पर सभी की अलग अलग नजरें रहती हैं। यह बताने की जरूरत नहीं हैं।