5 मुकदमे : हिंदू गौरव का अखाड़ा ताजमहल, अटाला मस्जिद और सलीम चिश्ती दरगाह
रणघोष खास. कृष्ण मुरारी की रिपोर्ट दी प्रिंट में साभार के साथ
फतेहपुर सीकरी (आगरा): उत्तर प्रदेश जानलेवा गर्मी की चपेट में है. पारा अक्सर 45 डिग्री के पार ही रहा है, लेकिन जानलेवा गर्मी 42-वर्षीय अजय प्रताप सिंह को आगरा जिला न्यायालय परिसर की संकरी गलियों से गुज़रने से नहीं रोक सकी, उन्हें हाथों में ऐसी फाइलें थीं जो भारत के इतिहास को दोबारा गढ़ सकती हैं.लघु न्यायालय के युवा न्यायाधीश मृत्युंजय श्रीवास्तव ने सिंह को सुनवाई की तारीख 8 जुलाई दी है और उनसे अन्य पक्षों को समन भेजने को कहा है. यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और शेख सलीम चिश्ती दरगाह प्रबंधन समिति को सूचित किया जाएगा. सिंह ने कहा कि आगरा से 40 किलोमीटर दूर फतेहपुर सीकरी किले के अंदर स्थित शेख सलीम चिश्ती दरगाह का निर्माण कामाख्या देवी मंदिर के खंडहरों पर किया गया है, जिसका उल्लेख सीकरी के शासक राजा धाम देव के दरबार के कवि विद्याधर की कविताओं में किया गया है, जो 1580-81 से बहुत पहले की बात है, जब दरगाह बनी थी और इस शहर को मुगल बादशाह अकबर ने नहीं बल्कि सीकरवार राजपूतों ने बसाया था, जहां से इसका नाम पड़ा है. यहां तक कि बाबर की जीवनी बाबरनामा में भी सीकरी का ज़िक्र है.सिंह इतिहास को गढ़ने और हिंदू गौरव को बहाल करने के मिशन पर हैं — जो कभी एक पुरातत्व स्थल थे. ऐतिहासिक ज्ञान और कानूनी ताकत के साथ वन-मेन-आर्मी. यह उनके दावों को मान्यता दिला रहा है और उन्हें अपने परिवार के सदस्यों के सामने प्रसिद्धि और सम्मान दिला रहा है. भारत की अदालतों में फैले इसी तरह के मामलों के विपरीत, जो धार्मिक रंग और अभियान से जुड़े आंदोलन द्वारा समर्थित हैं, सिंह अपने दावों को पुरातत्व और ऐतिहासिक तर्क तक सीमित रखते हैं. पिछले एक साल में उन्होंने पांच मामले दायर किए हैं और उन सभी का एक ही उद्देश्य है. अतीत में मुसलमानों द्वारा कथित रूप से कब्ज़ा किए गए हिंदू स्थलों को वापस लेने का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि ताजमहल तेजो महल है, शेख सलीम चिश्ती दरगाह कामाख्या देवी मंदिर है, शाही ईदगाह श्री कृष्ण जन्मस्थान पर बनी है, जौनपुर में अटाला मस्जिद अटाला देवी मंदिर है और श्री कृष्ण विग्रह की मूर्तियां आगरा की जामा मस्जिद के नीचे हैं. सभी एएसआई संरक्षित स्थल हैं.सीकरी से 25 किलोमीटर दूर आगरा में स्थित अपने घर पर हाथों में लाल कलावा और पीतल का कंगन पहने हुए, सिंह ने कहा, “हमें अपने इतिहास पर गर्व होना चाहिए. असल, इतिहास को छिपाकर हमारी पहचान को खत्म करने की कोशिश की गई. अगर पहचान ही नहीं होगी तो क्या कोई व्यक्ति आत्मसम्मान के साथ जी पाएगा? यह हिंदू-मुस्लिम का मामला नहीं है बल्कि सच्चाई का मामला है और भारत के लोगों को इस सच्चाई को जानने का अधिकार है.”
अचानक बने वकील
आगरा से 80-किलोमीटर दूर एटा के रहने वाले सिंह खुद को आकस्मिक वकील कहते हैं. उन्होंने 2014 में बरेली लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई की और 2015 में प्रैक्टिस शुरू की, लेकिन यह उनकी पहली पसंद नहीं थी या उन्हें कानून में कोई दिलचस्पी नहीं थी. कानून से पहले, उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के सभी कोशिशें पूरी कर ली थीं. फिर, कई सालों तक उन्होंने मैनपुरी जिला अदालत में आपराधिक मामले लड़े, लेकिन इससे उन्हें कोई खास फायदा नहीं हुआ.उन्हें लग रहा था, “कुछ तो कमी है.”जब सिंह इतिहास के लिए नहीं लड़ रहे होते हैं, तो वे जिम जाते हैं. हालांकि, वे लॉ प्रैक्टिस कर रहे थे, लेकिन उन्हें पहचान नहीं मिल पाई और यहां तक कि परिवार के सदस्य भी उन्हें कुछ खास हासिल न करने के लिए ताना मारते थे, लेकिन जब इन अदालती मामलों के कारण उनका नाम अखबारों में छपने लगा, तो चीज़ें बदलने लगीं.वे मुस्कुराते हुए बताते हैं, “अब परिवार वाले मुझे कम ताना मारते हैं.”सिंह ने आगरा के सेंट जॉन्स कॉलेज से ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में एमएससी की है, लेकिन 2008 में यूपीएससी की तैयारी के दौरान वे इतिहास के शौकीन बन गए.
उन्होंने कहा, “मेरा हमेशा से ही विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण रहा है. जब मैंने इतिहास पढ़ना शुरू किया, तो कई विरोधाभासी तथ्य सामने आए, जिससे इस तरफ मेरी रुचि बढ़ने लगी. उसके बाद मैंने कई इतिहास की किताबें पढ़ीं.”वकील अपने मामलों को मजबूत करने के लिए इतिहास और पुरातत्व की किताबों को लंबे समय तक पढ़ते हैं — बाबरनामा से लेकर कनिंघम के लेखन और एएसआई की पुरानी वार्षिक रिपोर्ट तक, जो उन्हें पुरानी संरचनाओं की मूल प्रकृति को समझने में मदद करती हैं.सिंह ने कहा, “मेरी लड़ाई हिंदू इतिहास को किताबों से मिटाने के तरीके के खिलाफ है. इतिहासकारों ने मुगल राजाओं के बारे में लिखा है, लेकिन मुगल शासन के दौरान अपनी बहादुरी दिखाने वाले हिंदू राजाओं का उल्लेख नहीं किया और मैं यह बिना किसी भड़काऊ बयान के कर रहा हूं.”