राव इंद्रजीत के लिए भाजपा अब बुढ़ापे का सहारा
-राव के लिए खुद से ज्यादा अपनी बेटी को किसी तरह प्रदेश की सत्ता में स्थापित करने की चिंता ठीक उसी तरह है जिस तरह एक पिता शादी में तब तक इधर से उधर भागता रहता है जब तक बेटी राजी खुशी घर से विदा नही हो जाए।
रणघोष खास. प्रदीप हरीश नारायण
अभी तक लगभग 50 साल की सफल और मजबूत राजनीति करने वाले दक्षिण हरियाणा के हष्ट पुष्ट और ताकतवर नेता राव इंद्रजीत सिंह को किसी ने ढलते हुए नही देखा है। उम्र भले ही 72 पार हो जाए शरीर की रंगत उन्हें बुजुर्ग कहने से रोकती रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में राव ने अपनी जुबान से यह एलान भी नही किया की वे अब उम्र दराज होते जा रहे हैं लेकिन उनके शब्दों ने सबकुछ इशारा कर दिया की बची खुची राजनीति में भाजपा ही उनके बुढापे का सहारा है।
गुरुग्राम सीट से नामाकंन भरते समय हुई जनसभा में राव इंद्रजीत के शब्दों पर जाइए। पहली बार अपने विरोधियों को शब्दों के सम्मान में पूरी तरह नहाते नजर आ रहे थे। समझ में नही आ रहा था की ये रामपुरा हाउस वाले राव इंद्रजीत है या भाजपा वाले। ना अब वे अपने विरोधियों को नसीहत देते नजर आए और ना ही उन्हें देखकर आंखें इधर उधर की। ऐसा लग रहा था की सारे गिले शिकवे खत्म..। नई शुरूआत करे। ना हम रामपुरा हाउस वाले ना तुम एंटी रामपुरा हाउस वाले। हम सभी भाजपाई। सचमुच में राव इंद्रजीत बदलते जा रहे हैं या हवा का रूख देखकर चल रहे हैं। यह इस चुनाव के बाद साफ हो पाएगा। जहा तक बेटी आरती राव को चार महीने बाद होने जा रहे हरियाणा विधानसभा चुनाव में राजनीति तौर पर स्थापित करने का सवाल है। राव किसी सूरत में 2014 व 2019 वाली गलती नही करेगे। अगर हालात भाजपा के खिलाफ जाते नजर आए तो राव भाजपा की जरूरत बन जाएगे। ऐसे में वे जो चाहेगे भाजपा रणनीतिकारों को मानना पडेगा। 2023 के कर्नाटक चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा समेत अनेक राज्यों में असरदार नेताओं का इसी तरह ही अपने पारिवारिक सदस्यों को टिकट दिलवाना यह साबित करता है की राजनीति में नियम कायदे कानून कुर्सी के सामने कोई मायने नही रखते।
मौजूदा हालात पर सबकुछ टिका रहता है। यहा राव को अपने उन समर्थकों से परेशानी हो सकती है जो टिकट की उम्मीद में सुबह शाम दरबार में हाजिरी लगा रहे हैं। यह भी स्पष्ट है की बेटी की टिकट पर राव भाजपा के सामने ज्यादा किंतु परंतु नही करेगे। आरती राव को अभी राजनीति में बहुछ कुछ सीखना है इसलिए पिता के पूरी तरह सक्रिय रहते चुनाव लड़ना बहुत जरूरी है। तभी वह मजबूत बन सकती है। एक समय बाद उम्र का तकाजा उनकी राजनीति को एक दायरे में सिमेट कर रख देगा। यह भी असल सच है। इसलिए राव इंद्रजीत सिंह का इस चुनाव में जीतने के बाद क्या रूख होगा। हरियाणा विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के भीतर विरोधियों के प्रति रैवया इस लोकसभा चुनाव जैसा रहेगा या किसी वजह को आधार बनाकर एकाएक बदल जाएगा। यह देखने वाली बात होगी। कुल मिलाकर राव के लिए खुद से ज्यादा अपनी बेटी को किसी तरह प्रदेश की सत्ता में स्थापित करने की चिंता ठीक उसी तरह है जिस तरह एक पिता शादी में तब तक इधर से उधर भागता रहता है जब तक बेटी राजी खुशी घर से विदा नही हो जाए।