रणघोष की सीधी सपाट बात

शहर के वार्ड 10 की विवादित जमीन पर 8-10 करोड़ कमाई का खेल था


– बंटवारा ईमानदारी से नहीं हुआ तो खुलासा कर दिया


रणघोष खास.  सुभाष चौधरी


शहर की नगर परिषद के वाइस चेयरमैन श्याम चुग के वार्ड नंबर 10 में विवादित जमीन की प्रोपर्टी आईडी एवं प्लाटिंग को लेकर हो रहा खुलासा नया नहीं है। आधे से ज्यादा पार्षद प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर इस तरह के काम धंधे में लगे हुए हैं। वजह वे चुनाव में मोटा पैसा खर्च करके आते हैं ओर उसकी ब्याज समेत रिकवरी करना उनकी मजबूरी होता है। अगर इस जमीन पर विवाद नहीं होता तो यह सीधे तौर पर 8 से 10 करोड़ रुपए की कमाई का जरिया बनी हुई थी। आपसी हिस्से का समान बंटवारा नहीं होने पर यह मामला मीडिया में सुर्खियां बटोर रहा है। इस तरह के मामलों में ईमानदार वो बन जाते हैं जिसे बेईमानी करने का मौका नहीं मिलता या बराबर का हिस्सा नहीं मिलता।

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इस पूरे मामले को ऐसे समझिए


शहर के सैनी स्कूल एवं बिल बैरी होटल के रास्ते के बीच में आने वाली करीब 3 एकड़ के आस पास की इस जमीन पर कई सालों से सैनी एवं खटीक परिवार का विवाद चलता आ रहा है। विवाद भी सरकारी रास्ते को लेकर था। दोनों पक्ष एक दूसरे की जमीन में इस रास्ते को दिखा रहे थे। नगर परिषद कागजात नहीं होने की वजह से कोर्ट में केस हार चुकी थी। इस पूरे विवाद में पटवारी से लेकर संबंधित अधिकारियों ने समय के हिसाब से रिकार्ड को इधर उधर करने या छेड़छाड़ करने के नाम पर दोनों पक्षों से मलाई खाई है। करीब 15- 20 साल पहले खटीक परिवार ने अपने अंतर्गत आने वाली जमीन में करीब 1200 वर्ग गज की प्लाटिंग कर दी जिसे आस पास रहने वाले परिवारों में दौलतराम चुग, सुभाष दुआ एव महेंद्र सचदेवा ने बेहद ही सस्ती दरों पर खरीद लिया लेकिन विवाद बना रहा। इसी दौरान एक पक्ष ने पटवारी से मिली भगत कर 67 गज रास्ते को रिकार्ड में हैंड राइटिंग कर 77 गज करा दिया। इस पूरे मामले में सैनी एवं खटीक परिवार भी आपस में भी बंटवारे को लेकर बंटे हुए थे। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि जिस जमीन को खरीदा गया था उस समय वह 100 रुपए से लेकर एक हजार रुपए वर्ग गज के रेट तय किए गए थे। आज इनके रेट 10 से 12 हजार वर्ग तक हो गए हैं। अगर जमीन पूरी तरह से साफ सुथरी कर दी जाती है तो इसके रेट सीधे 25 से 30 हजार रुपए वर्ग गज पर आसानी से बिक सकती है। इस हिसाब से यह 8-10 करोड़ रुपए की कमाई कराने वाली जमीन बन गई है। जिसकी वजह से तीन पार्षदों भूमिका संदिग्ध हो गई थी। बताया जा रहा है कि इन पार्षदों का काम नगर परिषद में प्रोपर्टी आईडी या अन्य कागजात में मालिकाना हक को मजबूत कर इस पर कब्जा करना था। यहां सेवा शुल्क सलीके से नहीं बंटने की वजह से  भेद खुलता चला गया। नप में अधिकारी एंव पार्षदों के अपने धड़े बने हुए हैं। रणघोष पहले ही नप की कार्यप्रणाली का खुलासा करता आ रहा है।

हमारा दावा है कि होना कुछ नहीं सब अपने हिसाब से खेल कर जाएंगे


इस तरह का यह पहला व नया मामला नहीं है। नप में ऐसा कोई कार्य नहीं है जो ईमानदारी से रास्ते से चलकर पूरा हुआ हो। बस मीडिया में सुर्खियां बटोकर कर कुछ नेता, पार्षद एवं अधिकारी अपना खेल कर जाते हैं। मीडिया में इस तरह के मामले सामने आने से अधिकारियों एवं इस मामले को शांत कराने का ठेका लेने वाले प्रभावशाली लोगों के रेट कई गुणा बढ़ जाते हैं। कार्रवाई इसलिए नहीं होगी। इससे पहले भी सैकड़ों मामलों का सच भी यहां भी राजनीति कारणों एवं प्रभाव से सामने नहीं आया।

श्याम चुग की मुश्किलें बढ़ सकती हैं


नप के उपप्रधान श्याम चुग की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। ऐसा नहीं है कि उनके वार्ड में जमीन के नाम पर यह खेल चले ओर उन्हें जानकारी तक नहीं हो। पार्षदों की आपसी गुटबाजी एवं चुनाव में हारे हुए प्रत्याशी भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर इस मसले को शांत नहीं होने देंगे।

 विजिलेंस के पास भेजी जा रही है शिकायत


स्थानीय स्तर पर इस मामले के दबने की आंशका के चलते कुछ लोगों ने इसकी शिकायत विजिलेंस एवं मुख्यमंत्री के पास भी भेजी है।