संसद को बचाना होगा, बीजेपी को चतुराई से काम करने की जरूरत

 विपक्षी सांसदों ने संसद में सुरक्षा उल्लंघन के मुद्दे का राजनीतिकरण करने की कोशिश की. लेकिन मोदी सरकार इस संवेदनशील सुरक्षा उल्लंघन को और अधिक सही तरीके से संभाल सकती थी.


 रणघोष खास. शेषाद्री चारी.  साभार दि प्रिंट 

एक अभूतपूर्व फैसले के तहत, इस शीतकालीन सत्र में 146 विपक्षी सांसदों -जिसमें लोकसभा के 100 और राज्यसभा के 46 सांसद हैं – को निलंबित कर दिया गया है. आज़ादी के बाद शायद यह पहली बार है कि सदन में इतनी बड़ी संख्या में सांसदों को अनियंत्रित या यूं कहें कि ‘असंसदीय’ व्यवहार के कारण निलंबन का सामना करना पड़ा. इससे पहले 15 मार्च 1989 को निलंबन का रिकार्ड बनाया गया था, जब विपक्षी दलों के 63 लोकसभा सदस्यों, जिनमें से अधिकांश वर्तमान सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के थे, को इंदिरा गांधी की हत्या पर न्यायमूर्ति ठक्कर आयोग की रिपोर्ट को पेश करने पर विवाद के बाद निलंबित कर दिया गया था. हालांकि, उस समय निलंबन केवल उस विशेष सप्ताह के शेष भाग के लिए ही था. लेकिन, इस बार सदस्यों को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है.निलंबन के तहत सांसदों को सदन के आंतरिक परिसर, जैसे चैंबर, लॉबी और गैलरी तक पहुंचने पर भी रोक लगा दी गई है. वे संसदीय समिति की बैठकों में भी भाग नहीं ले सकते. इसके अलावा, उनके द्वारा दिए गए किसी भी नोटिस पर सदन द्वारा विचार नहीं किया जाएगा. आमतौर पर, यदि नोटिस देने वाला सदस्य अनुपस्थित है, तो नोटिस को सपोर्ट करने वाला कोई अन्य सदस्य सभापति की अनुमति से चर्चा शुरू कर सकता है. निलंबित सांसदों की स्थिति को देखते हुए, यह संभावना नहीं है कि सदन में मौजूद कोई भी सत्तारूढ़ दल का सदस्य उनके नोटिस को सपोर्ट करेगा.2001 के संसद हमले की बारहवीं बरसी पर, दो लोग लोकसभा की दर्शक दीर्घा से चैंबर में कूद गए और कुछ सदस्यों द्वारा उन्हें पकड़ने से पहले उन्होंने रंगीन धुंआ सदन में छोड़ा. यह घटना एक गंभीर सुरक्षा उल्लंघन को उजागर करती है, जिसके लिए गहन जांच और संसद के सुरक्षा प्रोटोकॉल में खामियों को ठीक करने के उपाय करने की आवश्यकता है. यह निश्चित रूप से कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिसका विपक्षी दलों को गैर-जिम्मेदाराना तरीके से राजनीतिकरण करना चाहिए था. सदन के वेल में तख्तियां ले जाना, नारे लगाना और अध्यक्ष का मज़ाक उड़ाना ऐसे व्यवहार नहीं हैं जिनकी जनता अपेक्षा करती है, खासकर जब वे अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के बारे में आश्वासन चाहते हैं कि वे केवल नाटकीयता के बजाय आर्थिक महत्व के अधिक महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करें.विभिन्न राज्यों में इस सुरक्षा उल्लंघन से जुड़े लोगों की गिरफ़्तारी एक बड़ी साजिश की ओर इशारा करती है जिसमें कई पक्ष शामिल हैं और योजना का एक लंबा चरण चल रहा है. यह कुछ हताश, असंतुष्ट, बेरोजगार व्यक्तियों द्वारा किया गया कोई सहज कृत्य नहीं लगता. चौंकाने वाली बात यह है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस घटना के लिए बढ़ती कीमतों और बेरोजगारी को जिम्मेदार ठहराया, जिससे इस आशंका को बल मिला कि संसद पर इस गंभीर हमले के पीछे उनकी पार्टी का कोई व्यक्ति हो सकता है.