समलैंगिक विवाह पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला, सीजेआई बोले- साथी चुनने का अधिकार सबको

– समलैंगिक संबंधों को कानूनी दर्जा दे सरकार


रणघोष अपडेट. देशभर से 

सुप्रीम कोर्ट समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी देने की मांग वाली याचिकाओं पर आज अपना फैसला सुनाया और कहा कि हम इस पर कानून नहीं बना सकते। सीजेआई ने कहा कि यह संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है। इस दौरान उन्होंने केंद्र सरकार को समलैंगिकों के अधिकारों के लिए उचित कदम उठाने के दिशा-निर्देश जारी किए हैं।सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को समलैंगिक संघों में व्यक्तियों के अधिकारों और हक को तय करने के लिए एक समिति का गठन करने के निर्देश भी दिए। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “यह समिति समलैंगिक जोड़ों को राशन कार्डों में ‘परिवार’ के रूप में शामिल करने, समलैंगिक जोड़ों को संयुक्त बैंक खातों के लिए नामांकन करने में सक्षम बनाने, पेंशन, ग्रेच्युटी आदि से मिलने वाले अधिकारों पर विचार करेगी। समिति की रिपोर्ट को केंद्र सरकार के स्तर पर देखा जाएगा।”सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 10 दिनों की सुनवाई के बाद 11 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। बता दें कि शीर्ष अदालत की संविधान पीठ में भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट्ट, हेमा कोहली और पीएस नरसिम्हा शामिल हैं।जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा कि वह विशेष विवाह अधिनियम पर सीजेआई द्वारा जारी निर्देशों से सहमत नहीं हैं। न्यायमूर्ति रवींद्र भट ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा, “शादी करने का कोई अयोग्य अधिकार नहीं हो सकता है, जिसे मौलिक अधिकार माना जाना चाहिए। हालांकि हम सहमत हैं कि रिश्ते का अधिकार है, हम स्पष्ट रूप से मानते हैं कि यह अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आता है।””यह इसमें एक साथी चुनने और उनके साथ शारीरिक अंतरंगता का आनंद लेने का अधिकार शामिल है, जिसमें निजता, स्वायत्तता आदि का अधिकार भी शामिल है और समाज से बिना किसी बाधा के इस अधिकार का आनंद लेना चाहिए और जब खतरा हो तो राज्य को इसकी रक्षा करनी होगी। इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि एक विकल्प है एक जीवनसाथी पाने के लिए।”उन्होंने कहा, “जब गैर-विषमलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह करने का कोई संवैधानिक अधिकार या संघों की कानूनी मान्यता नहीं है तो न्यायालय राज्य को किसी भी दायित्व के तहत नहीं डाल सकता है।”