भ्रष्टाचार की भूखमरी जिंदा इंसानों को खा रही है, यकीन ना हो तो मिटटी से निकली तीन लाशों से पूछ लो
-मीडिया में इस तरह घटना की कवरेज को इस लहजे में लिखना इसलिए मजबूरी हो गई हैं कि हमारे अंदर इंसानियत- मानवता जिंदा लाश में तब्दील होती जा रही है। हमें यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि एक दिन हिसाब सबका होना है जिंदगी कर्मों की लिखी किताब है।
रणघोष खास. सुभाष चौधरी
शहर के सरकुलर रोड स्थित कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय की पीछे खाली जमीन में बेसमेंट की खुदाई को लेकर चल रहे निर्माण कार्य के दौरान तीन मजदूरों की हुई मौत की वजह मिटटी नहीं भ्रष्टाचार की भूखमरी है जो अलग अलग चेहरों में इंसानों को जिंदा खा रही हैं। यकीन ना हो तो तीन से चार घंटों से तड़फते रहे यूपी दमोह जिला की सुनीता, लक्ष्मी, मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ के पप्पू सिंह की लाशों से पूछ लो जो अब रूह बनकर यहां से गुजरने वाले हर इंसान से सवाल करेगी उनका कसूर क्या था। क्या हो गया है हम इंसानी जमात को। अधिकारी- कर्मचारी इस घटना के बाद कितना झूठ बोलेंगे। यह बताने की जरूरत नहीं है। कहां चले गए शहर के नगर पार्षद जो मीटिंग हॉल में हल्ला मचाते हें और इस घटना के बाद चुप है। अगर तीनों लाशें शहर के किसी प्रभावशाली संपन्न परिवारों के सदस्यों की होती अभी तक शहर को जाम कर दिया जाता। इसमें कोई दो राय नहीं कुछ दिन बाद मृतक के परिजनों को आर्थिक मदद देकर शांत करवाया दिया जाएगा। अगर यही भ्रष्टाचार की भूखमरी का असली समाधान है तो इंसानों की मौतों का टेंडर ही जारी कर देना चाहिए। इस तरह की यह पहली घटना नहीं है। आए दिन कई हादसे अलग अलग वजहों का नाम देकर हो चुके हैं। इन्हें अंजाम देने वाला हमारा सिस्टम है जो अधिकारी- कर्मचारी, दलाल- ठेकेदार की शक्ल में नजर आता है और समय समय पर चेहरा बदलता रहता है। कितना बड़ा भद्दा मजाक है जब इस घटना के बाद मौके पर पहुंचे अधिकारियों ने कहा उन्हें इस खुदाई के कार्य के बारे में कोई सूचना नहीं थी जबकि कई दिनों से यह काम चल रहा था। अधिकारियों का इसलिए कुछ नहीं बिगड़ने वाला क्योंकि वे एक दूसरे की कमजोरियों को पकड़ कर चलते हैं। चंडीगढ़- दिल्ली से होने वाली कार्रवाई रास्ते में कितनी बार शानदार होटलों में लंच- डीनर करती हैं यह बताने की जरूरत नहीं है। कोविड-19 का कहर जब चरम पर था। अस्पतालों में भर्ती होने वाले लाश की शक्ल मे बाहर आ रहे थे। उस समय भी जमकर हल्ला मचा था। आज तक पता नहीं चलता असली गुनाहगार कौन है। बेशक इंसानी जमात में आज सबकुछ खुलेआम खरीदा बेचा जा रहा है बोलियां लग रही है। लेकिन एक बात दिमाग में बैठा लिजिए। अगर इस तरह की घटनाओं से सबक लेकर कार्रवाई नहीं हुई तो ये तीनों लाशें उन दोषी एवं जिम्मेदार लोगों को जीने नहीं देंगी।मीडिया में इस तरह घटना की कवरेज को इस लहजे में लिखना इसलिए मजबूरी हो गई हैं कि हमारे अंदर इंसानियत- मानवता जिंदा लाश में तब्दील होती जा रही है। हमें यह हरगिज नहीं भूलना चाहिए कि एक दिन हिसाब सबका होना है जिंदगी कर्मों की लिखी किताब है।