बुजुर्ग सेवानिवृत्ति की बाधा को तोड़ने के इच्छुक, 40 फीसदी लोग ‘जब तक संभव हो’ काम करने के लिए उत्सुक
रणघोष अपडेट. विश्वभर से
युनाइटेड नेशन की ओर से मान्यता प्राप्त ‘वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवेयरनेस डे’ (15 जून) की पूर्व संध्या पर हेल्पएज इंडिया ने अपनी राष्ट्रीय रिपोर्ट ‘ब्रिज द गैप – अंडरस्टैंडिंग एल्डर नीड्स’ को जारी किया। इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में एक गंभीर पैनल चर्चा के बाद इस रिपोर्ट को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के सचिव श्आर सुब्रह्मण्यम ने जारी किया। भारत में बुजुर्गों की आबादी लगभग 138 मिलियन है, और यह संख्या इसकी कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत है। कोविड-19 का प्रभाव अभूतपूर्व था और बुजुर्गों पर इसके प्रभाव ने दुनिया भर की सरकारों, संस्थानों और समाज को उस ढांचे को बदलने के लिए मजबूर किया जो सीधा बुजुर्गों से संबंधित है। महामारी के दौरान सबसे कमजोर और सबसे कठिन हिट के रूप में बुजुर्गों की पहचान की गई। पिछले दो वर्षों में हेल्पएज इंडिया इस बात पर शोध कर रहा है कि बेहद खामोशी के साथ सताने वाली महामारी कोविड-19 का बुजुर्गों की जिंदगी पर क्या प्रभाव पड़ा है। लेकिन बुजुर्गों के लिए यह साल भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि महामारी की तबाही के बाद बदलते समय के साथ रिकवरी के शुरुआती संकेत मिल रहे हैं और इस दृष्टिकोण से भी यह वर्ष खास हो जाता है। इसलिए रिपोर्ट न केवल ऐसे मुद्दों पर केंद्रित है, जो बुजुर्गों की रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़े हैं, बल्कि उनके अनुभव की संपूर्णता का भी जायजा लेते हैं। आत्म निर्भर होकर जीवन निर्वाह करना, समाज में भागीदारी, स्वतंत्रता, गरिमा और देखभाल की उम्र बढ़ने पर संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों के आधार पर, इस रिपोर्ट का उद्देश्य उन व्यापक अंतरालों को समझना है, जो बुजुर्गों को खुशहाल, स्वस्थ और बेहतर जीवन जीने से रोकते हैं। हेल्पएज इंडिया के सीईओ रोहित प्रसाद कहते हैं, ‘‘रिपोर्ट कुछ चौंकाने वाले तथ्यों को सामने लाती है और हमें बुजुर्गों के जीवन को नए सिरे से देखने के लिए मजबूर करती है। रिपोर्ट कहती है कि बुजुर्ग आज काम करने के इच्छुक हैं, वे केवल आश्रितों के रूप में नहीं, बल्कि समाज के योगदानकर्ता के रूप में खुद को देखना चाहते हैं। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि गरीबों और वंचितों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ, हम वरिष्ठ नागरिकों के एक ऐसे बड़े वर्ग के लिए एक बेहतर और अनुकूल वातावरण तैयार करें, जो दीर्घायु का फायदा उठाते हुए समाज में अपनी ओर से योगदान देने के इच्छुक और सक्षम हैं। इस बीच, परिवार वरिष्ठ नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हमें देखभाल करने वाली पारिवारिक संस्था का पोषण और समर्थन करना जारी रखना चाहिए। महामारी के बाद, स्वास्थ्य, आय, रोजगार, और सामाजिक और डिजिटल समावेशन, प्रमुख क्षेत्र बन गए हैं, जिसमें बुजुर्गों के लिए सम्मानजनक जीवन जीने के लिए सामाजिक और नीति दोनों स्तरों पर व्याप्त अंतराल को दूर करने की आवश्यकता है। इसलिए इस साल हमने वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवेयरनेस डे की जो थीम रखी है, वह है- ब्रिज द गैप!’’
रिपोर्ट में वृद्धावस्था में आमदनी और रोजगार, स्वास्थ्य और बेहतरी, बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार और सुरक्षा, और बुजुर्गों के सामाजिक और डिजिटल समावेशन से संबंधित मसलों को समझने के लिए गहराई से अध्ययन किया गया है। यह भारत के 22 शहरों में बड़े पैमाने पर ए, बी, सी श्रेणियों में 4,399 बुजुर्ग उत्तरदाताओं और उनकी देखभाल करने वाले 2,200 युवा वयस्कों से मिले जवाबों पर आधारित है।
रिपोर्ट में यह दिलचस्प जानकारी भी है कि राष्ट्रीय स्तर पर 47 प्रतिशत बुजुर्ग अपनी आय के स्रोत के लिए परिवार पर निर्भर हैं जबकि 34 प्रतिशत लोग पेंशन और नकद हस्तांतरण पर निर्भर हैं। इस बीच, दिल्ली में, 57 प्रतिशत बुजुर्ग परिवार पर निर्भर हैं, जबकि 63 फीसदी लोग पेंशन और नकद हस्तांतरण पर निर्भर हैं। इसका मतलब है कि दिल्ली में बड़ी संख्या में बुजुर्गों को परिवार के साथ-साथ पेंशन का भी सपोर्ट है।
हालांकि, जब आय की पर्याप्तता के बारे में पूछा गया, तो राष्ट्रीय स्तर पर 52 प्रतिशत बुजुर्गों ने बताया कि उनकी आमदनी अपर्याप्त है। 40 प्रतिशत बुजुर्गों ने कहा कि वे आर्थिक रूप से सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं, इसके दो बड़े कारण हैं- पहला, क्योंकि ‘उनके खर्च उनकी बचत/आमदनी से अधिक हैं’ (57 प्रतिशत) और दूसरा, पेंशन भी पर्याप्त नहीं है (45 प्रतिशत)। इससे पता चलता है कि बाद के वर्षों के लिए वित्तीय नियोजन और सामाजिक सुरक्षा दोनों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इस बीच दिल्ली में 52 प्रतिशत बुजुर्गों का कहना है कि उनकी आय पर्याप्त है, जबकि 48 प्रतिशत का कहना है कि उनकी आमदनी बहुत कम है और इसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। दिल्ली में कुल मिलाकर करीब 71 फीसदी बुजुर्गों का कहना है कि वे अपने आप को वित्तीय रूप से सुरक्षित महसूस करते हैं।
हालांकि यह सर्वेक्षण रिपोर्ट बड़े पैमाने पर शहरी मध्यम वर्ग की स्थिति बयान करती है, लेकिन यह गरीब शहरी और ग्रामीण बुजुर्गों की दुर्दशा पर भी सवाल खडे़ करती है। ये ऐसे लोग हैं, जिनके पास आमदनी का कोई स्रोत नहीं है या पर्याप्त आय अथवा पेंशन नहीं है। हेल्पएज हर महीने 3000 रुपए की सार्वभौमिक पेंशन की वकालत करता रहा है, ताकि हर बुजुर्ग सम्मान के साथ जीवन जी सके। इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाने की आवश्यकता अब पहले से कहीं अधिक जरूरी है, खास तौर पर महामारी के बाद। लगभग 71 फीसदी बुजुर्ग काम नहीं कर रहे हैं। 36 फीसदी बुजुर्ग काम करने के इच्छुक हैं और उनमें से 40 फीसदी ‘जितना संभव हो’ काम करना चाहते हैं। 61 फीसदी बुजुर्गों को लगता है कि वे बुजुर्गों के लिए उपलब्ध रोजगार के अनुकूल नहीं हैं। दिल्ली में, 87 उपलब्ध बुजुर्ग काम नहीं कर रहे हैं, यहां तक कि 40 फीसदी का कहना है कि उनके पास रोजगार के अवसर हैं। अध्ययन में आगे पता चला है कि दिल्ली के 44 प्रतिशत बुजुर्ग अपनी सेवानिवृत्ति के बाद काम करने के इच्छुक हैं।
स्वयंसेवा के मोर्चे पर, लगभग 30 प्रतिशत बुजुर्ग स्वयंसेवा करने और समाज में योगदान करने के इच्छुक हैं। हेल्पएज के एल्डर सेल्फ-हेल्प-ग्रुप्स (ईएसएचजी) की अग्रणी पहल समाज में योगदान करने की बुजुर्गों की इच्छा को सफलतापूर्वक प्रदर्शित करती है। दिल्ली में, लगभग 48 प्रतिशत बुजुर्ग स्वयंसेवा करने और समाज में योगदान करने के इच्छुक हैं, जबकि वर्तमान में केवल 16 फीसदी स्वयंसेवा कार्य में शामिल हैं।
बुजुर्गों ने जिन प्रमुख अपेक्षाओं का हवाला दिया है, उनमंे से ज्यादातर अपेक्षाएं रोजगार के अवसरों के लिए एक सक्षम वातावरण बनाने के लिए आवश्यक हैं – 45 प्रतिशत बुजुर्गों ने ‘वर्क फ्रॉम होम’ को सर्वाेत्तम साधन के रूप में सुझाया, 34 प्रतिशत ने ‘काम करने वाले बुजुर्गों के प्रति अधिक सम्मान’ की अपेक्षा जताई और 29 प्रतिशत ने ‘सेवानिवृत्ति आयु में वृद्धि’ और ‘बुजुर्गों के लिए विशेष रूप से नौकरी’ के लिए कहा। वरिष्ठ नागरिकों को रोजगार देने के सर्वाेत्तम तरीके के रूप में वर्क फ्रॉम होम (डब्ल्यूएफएच) के लिए देखभाल करने वालों के बीच एक राष्ट्रीय सहमति दिखाई देती है। दिल्ली में, 74 प्रतिशत देखभाल करने वाले (जिनमें परिवार के सदस्य शामिल हैं) और 60 फीसदी बुजुर्ग कहते हैं कि डब्ल्यूएफएच उनके लिए सबसे अच्छा है।
–16 जून को पढ़ेंगे पार्ट–2 में बुजुर्गों का सांझा अनुभव