रणघोष खास. प्रदीप जैन
आज लोक डाउन को 10 दिन हो गए। व्यापारियों के दर्द को पहले की तरह कोई नहीं समझ पाया है। शहर के दुकानदारों ने एक शब्दावली में मौजूदा हालात में अपनी संवेदनाओं को कुछ इस तरह सांझा किया। उन्होंने कहा कि बंद हे तो सिर्फ़ बाज़ार चलो एक बात तो साबित हुई की कोरोना सिर्फ़ हम दुकानदारों से नहीं फैल रहा । ज़िन से फैल रहा हे उन्हें सरकार के पास रोकने का कोई उपाय नहीं हैं। सरकार लगी हुई है की नम्बर कम आए लेकिन जनता नहीं चाहती की नम्बर कम आये। लेकिन बंद रहेंगे तो सिर्फ़ बाज़ार। क्यू नहीं इतनी मल्टीनेशनल कंपनी का खर्चा कैसे निक़लेगा वैल्यूशन कैसे बढ़ेगा , लेकिन बंद हे सिर्फ़ बाज़ार । जब खोलोगे तो फिर हम गुनहगार हो जाएंगे , हम को फिर से ऐसे देखा जाएगा जैसे कोरोना हम फैला रहे है , दुकानें सीज होगी या चालान होगा क्योंकि कोरोना हम फैला रहे हैं। फिर से पुलिस की गाड़ियां ख़ाली सड़कों से ट्रैफिक हटाएगी और हम को मुजरिम होने का ऐहसास कराएगी । देश के चिकित्सक व स्वस्थकर्मियो को नमन है, पुलिस व उन सरकारी कर्मचारियों को भी नमन है जिन्होंने इस संकट कि घड़ी में देश को सम्भाल रखा है , लेक़िन उस छोटे दुकानदारों का क्या जिसने २० दिन से कोई माल नहीं बेचा हैं। उसे आपकी मुफ़्त रोटी की ज़रूरत नहीं हे, उसे काम दे दो , रोज। क्या उसे कोई नमन करेगा जिसने आपकी सुरक्षा के लिए अपना काम बंद कर रखा है। उन भामाशाओ के नाम पढ़ते हे तो अच्छा लगता है सरकार भी तारीफ़ करती है , लेकिन इन रईसों से भी रईस है वो दुकानदार जो 20 दिन से बिना कमाए भी चुप चाप लगा हुआ हाई कोरोना को रोकने में। क्या वो सम्मान का हक़दार नहीं है । कर्मचारी को जब कहा की २० दिन बाद आना तो उसके चेहरे पर सवाल था तनख़्वाह मिलेगी या नहीं ? दुकानदार ने कहा हाँ मिलेगी लेकिन किसी ने दुकानदार से पूछा कहा से लाएगा?जो बड़ी कम्पनियों ने भामशाओ ने दान दिया हे उन्हें सरकार से मदद मिलेगी लेकिन इन दुकानदारो को सिर्फ़ ठेंगा । हम मिडिल क्लास दुकानदार समझ ही नहीं पाते की हमको हमेशा अपेक्षित क्यू देखा जाता हैं , कोई राहत पैकेज नहीं कोई सबसीडी नहीं , सब से महंगी बिजली सब से ज़्यादा नुक़सान , संगठन जब भारत बंद कराते है तो निशाना हमें बनाया जाता है। , कोई मरहम भी नहीं लगाने वाला होता है, किसान का माल हम बेचते है , उद्योग का माल हम बेचते है लेकिन फिर भी हम को आजतक सरकार से कोई शाबाशी नहीं मिली है। मिला हैं तो सिर्फ़ चालान? लेकिन हमें किसी का सहयोग चाहिए भी नहीं । हम फिर से खड़े होंगे फिर निकल पड़ेंगे देश चलाने चाहे कोई हमारे साथ हो या नहीं । हम को अपने आप को कोरोना वर्रीयर्स से कम नहीं समझना है, खुद का सम्मान खुद करना हे, हम वो बीएमडब्ल्यू वाले किसान नहीं हे जो इनकम टैक्स नहीं भरते , या वो बड़ीं कम्पनी भी नहीं जो सरकार की सब्सिडी पर ज़िंदा है। हम खुद पर विश्वास करते हैञ हम बैँक को धोखा नहीं देते , हम रविवार की छुट्टी नहीं करते। हम स्कूटर पर घूमते है कड़क धूप में। बुख़ार में देश क़ो चलाते हैं , हम से ही रोनक हे देश की हम से शान हैं देश की । समय है एक राष्ट्रव्यापी संगठन का जो सरकार को दुकानदारो से रुबरू कराए। एक जुट होकर दिखाना होगा की हम भी हैं और सरकार से भी निवेदन है कीं हमको भी सम्मान पूर्वक देखे हम को प्यार चाहिए सब्सिडी नहीं। दुआ करते है की यह बीमारी ख़त्म हो और हमारे त्याग की आप कद्र करे और घर से ना निकले हमारे लिए यही सबसे बड़ा सम्मान है।