82 सालों से छिपा हुआ रेवाडी शहर की 3931 एकड़ जमीन का असली सच

 – सीबीआई जैसे बड़ी एजेंसी से जांच हुई तो रेवाड़ी की जमीन नीचे से खिसक जाएगी

-इस जमीन के मालिक कम सौदागार ज्यादा, अनेक मामले कोर्ट में विचारधीन

 -राव इंद्रजीत पर हमला करने वाले कप्तान खुद भी आ सकते हैं घेरे में, खुलेंगे अब कई राज

सही जांच  हुई तो बर्बाद हो जाएंगे ईमानदारी से जमीन को खरीदने- बेचने वाले

शहर में जमीन से जुड़े एक नहीं अनेक गिरोह बने हुए हैं जो करते हैं बड़ा खेल

कानून के जाल में इस  कदर उलझी हुई है जमीन सालों तक कोर्ट से नहीं हुए फैसले

  आरोप: कप्तान की तरफ से भी अहीर कॉलेज की जमीन को खरीदने के लिए लगाए गए थे 7 करोड़ लगाए

अनेक कर्मचारी- अधिकारी भी इस जमीन के नाम पर अपना खेल कर गए। आज करोड़ों की संपत्ति के मालिक

सीबीआई जांच करें तो उम्मीद बन सकती हैं


रणघोष खास. सुभाष चौधरी

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव ने अहीर कॉलेज की जमीन को लेकर केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के परिवार पर हमला क्या बोल दिया सालों से दबे कई राज अब उजागर होने  वाले हैं। खुद कप्तान पर भी सबूतों के साथ बड़ा हमला होगा। साथ ही ऐसे लोग भी पर्दाफाश होंगे जो खुद को समाज का साफ सुथरा एवं जिम्मेदार चेहरा मानते हैं। यह सारा खेल ही एक समय में शहर की 3931 एकड़ 7 कनाल जमीन के मालिक रहे राय बहादुर सिंह मक्खलाल की जमीन के मालिकाना हक के छिपे सच से जुड़ा हुआ है। आज रेवाड़ी शहर जिस जमीन पर खड़ा होकर इतरा रहा है दरअसल उस जमीन के नीचे  सौदागर छिपे हुए हैं। याद रखिए 2010-11 में शहर का सबसे बड़ा मैदान रामलीला मैदान को बेचने का खेल शुरू हुआ था। यह जमीन भाड़ावास रोड पर स्थित राजकीय बाल वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय रेवाड़ी को खेल गतिविधियों के लिए मिली हुई थी। इसे भी बेचने की पूरी तैयारी चुकी थी लेकिन सौदागरों के बीच रायता ऐसा फैला कि एक एक करके सभी अपनी इज्जत बचाने के लिए छिपते चले गए। इसमें नेता  लोग भी शामिल है। उस समय यह मामला शांत हो गया या कर दिया गया। यह अभी तक राज बना हुआ है। इसी तरह पिछले दिनों उठा टेकचंद क्लब  जमीन को बेचने का मामला भी रामलीला मैदान की तरह सुर्खियों में आया जो हाईकोर्ट में विचाराधीन है।  

सैकड़ों रजिस्ट्री बिना शोर मचाए कर दी गईं

इसके बाद राय बहादुर सिंह मक्खनलाल का खुद को वारिस बताने वालों ने टुकड़ों टुकड़ों में जमीन को बेचना शुरू कर दिया। सैकड़ों रजिस्ट्री बिना शोर मचाए अच्छे खासे सेवा शुल्क के साथ हो गईं। ऐसा करने वालों में कुछ रजिस्ट्री क्लर्क व अधिकारी है जो आज कई करोड़ों के मालिक है और एक दूसरे का राज छिपाकर राजनीति संरक्षण से बचे हुए है। अब दो बड़े नेताओं की लड़ाई से उनके नाम उजागर हो सकते हैं।

99 साल के पटटे पर थी अहीर कॉलेज की जमीन

सामाजिक एवं शैक्षणिक गतिविधियों के नाम पर राय बहादुर सिंह मक्खनलाल ने जमीन को पटटे पर एवं दान में दी थी। जिसमें एक अहीर कॉलेज की जमीन है। बताया जा रहा है कि इस जमीन पर किराया 90 साल का तय हुआ था। 2025 में समय अवधि पूरी हो रही थी। इस पूरे मामले की जड़ से जुड़े जानकारों का कहना है कि कॉलेज को संचालित करने के लिए गठित अहीर एजुकेशन बोर्ड के चेयरमैन राव इंद्रजीत सिंह एवं सचिव की जिम्मेदारी उनके छोटे भाई राव यादुवेंद्र सिंह निभा रहे हैं। पिछले दिनों बोर्ड ने यह जमीन खुद को मक्खनलाल का वारिस कहने वालों से डेढ़ करोड़ रुपए में बोर्ड के नाम करवा ली है। यह राशि भी विद्यार्थियों की फीस से आने वाली जमा पूंजी है। इसमें राव इंद्रजीत सिंह एवं उनके परिवार ने निजी तौर पर कोई खर्च नहीं किया। राव समर्थकों का कहना है कि जल्द ही दूध का दूध पानी का पानी सामने आ जाएगा। उधर कप्तान का दावा है कि भला 200 करोड़ रुपए की जमीन डेढ़ करोड़ रुपए में कैसे दी जा सकती है। इसमें पर्दे के पीछे बड़ा खेल हुआ है। इसलिए सीबीआई जांच जरूरी है।

  आरोप: कप्तान की तरफ से इस जमीन को खरीदने के लिए 7 करोड़ लगाए

कप्तान के हमले के बाद राव परिवार एवं उनके समर्थकों ने जवाब देने की तैयारी कर ली है। इस जमीन को अहीर एजुकेशन बोर्ड के नाम कराने में विशेष भूमिका निभाने वाले एक सदस्य ने बताया कि खुद कप्तान खेमें से इस जमीन को खरीदने के लिए 7 करोड़ रुपए का ऑफर इस जमीन के वारिसों को दिया गया था। वे किसी विवाद में नहीं फंसना चाहते थे इसलिए उसे ठुकरा दिया। ये वारिस तो जमीन बोर्ड को दान में देना चाहते थे लेकिन राव इंद्रजीत सिंह ने मना कर दिया था।

 अगर मक्खनलाल जमीन की निष्पक्ष जांच हुई तो शहर में भूकंप आ जाएगा

आज की तारीख में कई अरबों रुपए की जमीन बन चुकी राय बहादुर सिंह मक्खनलाल की वसीयत की अगर निष्पक्ष जांच की जाए तो शहर की जमीन पूरी तरह खिसक जाएगी। इस जमीन के इतिहास ऐसे कई राज पैसो के बल पर दफन कर दिए जिसे उजागर करने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाईं। बार बार वर्ष 1939 में एडीजे हिसार आईयू खान की कोर्ट के फैसले का जिक्र सामने आ रहा है जिसमें दावा किया था कि जिस नेमीचंद जैन ने खुद को मक्खनलाल का वारिस होने का जो हलफनामा पेश किया था वह झूठा था। उस फैसले के बाद उसी समय वारिस के नाम पर रिकार्ड को दुरुस्त किया जाना था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसी वजह से जमीन नेमीचंद जैन से होते हुए उनके वारिसों के नाम पर चढ़ती चली गईं। इस मामले में कितनी सच्चाई है यह बड़ी जांच एजेंसी से सामने आएगा। कायदे से आजादी से पहले जिस जमीन का कोई वारिस नहीं होता उसे सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया जाता है। अगर यह साबित हो जाता है कि राय मक्खनलाल की मौत के बाद कोई असल वारिस नहीं था। नेमीचंद ने वारिस होने का झूठा शपथपत्र तैयार किया था। उस हिसाब से शहर की सबसे बड़ी 3931 एकड़ 7 कनाल जमीन सरकारी मानी जाएगी। जिसके अधिकांश हिस्से को छोटे छोटे टुकड़ों में सैकड़ों लोगों को बेचा जा चुका है जिसमें कुछ विवाद होने की वजह से कोर्ट में विचारधीन है।

 कप्तान भी साबित कर रहे हैं मक्खनलाल का कोई वारिस नहीं

 पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव भी अब यह दावा कर रहे हैं कि मक्खनलाल के कोई वारिस नहीं था। 1938 में हाईकोर्ट में भी लाला मक्खनलाल के वारिस नहीं होने की रिपोर्ट साबित हो गई थी।  उन्होंने कहा कि 2009 में तत्कालीन डीसी टीएल सत्यप्रकाश ने भी इस तरह की जमीन की खरीद फरोख्त को गलत बताते हुए इंकवायरी करने के आदेश दिए थे जिसकी फाइल को ही दबा दिया गया है। कप्तान का कहना है कि बहुत बड़ा खेल हुआ है जिसमें कई लोग शामिल है।

 मक्खनलाल के कोई वारिस नहीं तो कप्तान के रिश्तेदारों ने क्यों खरीदी जमीन

  कप्तान ने अहीर कॉलेज की जमीन पर राव इंद्रजीत सिंह पर हमला तो जरूर कर दिया लेकिन वे भी घिर सकते हैं। उनके खिलाफ ऐेसे दस्तावेज जुटा लिए हैं जो यह साबित करते हैं कि कप्तान का माडल टाउन में जो अपना घर है, उनके रिश्तेदारों ने सरकुलर रोड पर जो जमीन खरीदी है वह जमीन भी मक्खनलाल की है जिसे उन्होंने उनके वारिसों से ही खरीदी है जिसे अब कप्तान मानने को तैयार नहीं है। अगर यह सच है तो रेवाड़ी के नहीं प्रदेश- देश के इतिहास  में जमीन से जुड़ा बड़ा खेल उजागर हो सकता है बशर्ते सरकार इसकी निष्पक्ष जांच कराकर दूध का दूध पानी का पानी सामने ला दे।

 रामलीला मैदान पर थी गिद्ध दृष्टि, मीडिया में उजागर होने पर दबा मामला

शहर के ठीक बीच में बना सबसे बड़ा रामलीला खेल मैदान के मालिक भी एक समय में मक्खनलाल थे जिन्होंने इसे स्कूल को खेल के लिए दान में दे दी थी। इसे भी बेचने की तैयारी हो चुकी थी। 2006-7 में  कई करोड़ों रुपए इस पर लग चुके थे जिसमें क्षेत्र के नामी नेता शामिल थे। मीडिया में खुलासा होने पर नेता पीछे हट गए और कोर्ट में यह जमीन स्कूल के नाम पर हो गईं। बताया जा रहा है कि एक नेता ने तो इस जमीन का बयाना भी तैयार कर लिया था।

  मक्खनलाल की वसीयत का असली सच आना जरूरी है.

शहर की 3931 एकड़ 7 कनाल जमीन के मालिक रहे राय बहादुर सिंह मक्खलाल की जमीन का असली सच आना बाकी है। क्या सच में उनके मुनीम नेमीचंद ने मक्खलाल की संतानों के अक्समात निधन के बाद झूठा शपथ पत्र तैयार कर जमीन अपने नाम करवा ली थी। वर्ष 1939 में एडीजे हिसार आईयू खान की कोर्ट ने उनके शपथ पत्र को झूठा साबित कर दिया था। अगर यह सच है तो उस रिकार्ड को सामने लाना जरूरी है। 1939 के बाद रिकार्ड दुरुस्त क्यों नहीं किया गया। 82 साल बाद जिला प्रशासन ने इतना शोर मचने के बाद भी मक्खनलाल की सही जमीन को सामने रखने की कोशिश क्यों नहीं की। क्या अधिकारी एवं कर्मचारी भी इस तरह की जमीन में अपना खेल करते रहे। 2009 में तत्कालीन डीसी टीएल सत्यप्रकाश की इंकवायरी रिपोर्ट कैसे गायब हो गईं। इसका मतलब इस पूरे खेल में तहसील विभाग से उन कर्मचारी एवं अधिकारियों  की मिली भगत सामने आ सकती हैं जो कई सालों से रजिस्ट्री क्लर्क या महत्वपूर्ण पदों पर काबिज होकर खरीदने  ओर बेचने वालों के साथ सौदेबाजी कर रहे थे।

 सीबीआई जांच करें तो उम्मीद बन सकती हैं

 यह मसला कई अरबों रुपए का है लिहाजा सीबीआई जांच होने पर ही असल सच सामने आ सकता है। छोटे स्तर पर इंकवायरी में लेन देन के खेल के अलावा कुछ नहीं होता। हालांकि यह आसान नही है सबकुछ सरकार की मंशा और नीयत पर तय होगा।   

 

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