कोरोना ईमानदारी से फैल रहा,हम बेईमानी से लड़ रहे, आइए असली वायरस को तलाशे..

-जिम्मेदार लोगों का फरमान देखिए शराब के ठेके खुले रहेंगे, शिक्षण संस्थान समेत सभी प्राइवेट सेक्टर बंद कर दिए। यानि अनुशासन नशे से आएगा शिक्षा से नहीं..।

रणघोष खास. प्रदीप नारायण


धर्म-कर्म में भरोसा करने वाले ईमानदारी से यह बताए कि कोरोना का कसूर क्या है। वह वायरस है इंसानी जमात में प्रवेश कर उसके शरीर को बिगाड़ रहा है। अगर यह उसका दोष है तो फिर उसका कर्म क्या है। इसका मतलब यह हुआ कि  बिछू डंक मारना छोड़ दे, सांप डसना ओर शेर शिकार ना करें। कितने शातिर है हम लोग। यह वायरस नजर नहीं आता इसलिए अपने सारे दोष, जुर्म, खामियां, छल, कपट, मक्कारी, कुकर्म आसानी से इसकी आड लेकर छिपा रहे हैं। सोचिए यह किसी शक्ल में नजर आता तो अभी तक देश चलाने वाले नेता इसके जन्मदाता से डील कर चुके होते। उद्योगपतियों की मदद से इसके नाम पर सिम कार्ड की तरह जगह जगह फ्रेंचाइजी सेंटर खुल जाते। यह अनिवार्य कर दिया जाता जिसके पास कोरोना की आईडी होगी उसे कुछ नहीं होगा। कोरोना के नाम पर जगह जगह टेंडर जारी होते।  भद्दा मजाक के अलावा कुछ नहीं है हम।  मौजूदा हालात में जहां भी नजर दौड़ाइए। शर्म आती हैं खुद को इंसानी जमात कहने में। जिम्मेदार लोगों का फरमान देखिए शराब के ठेके खुले रहेंगे, शिक्षण संस्थान समेत सभी प्राइवेट सेक्टर बंद कर दिए। यानि अनुशासन नशे से आएगा शिक्षा से नहीं..।  चेहरे पर मास्क जरूरी, दो गज की दूरी गाइड लाइन की पालना नहीं करने वालों में एक भी सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या सत्ता चला रहे नेता या प्रभावशाली पदाधिकारी पर किया गया चालान दिखा दीजिए। समझ में आ जाएगा कि असली बेईमान एवं चालाक कौन है। मतलब साफ है इस वायरस से लड़ने के लिए जो भी कायदे कानून बने हैं वे पूरी तरह से उस जमात पर लागू हो रहे हैं जिसके चिल्लाने पर सिस्टम गूंगा बहरा-नेत्रहीन हो जाता है। समझ में यह नहीं आता कि देश के शीर्ष नेता एवं अधिकारी इस वायरस की चपेट में आकर पॉजीटिव हो रहे हैं यानि लापरवाही हुई है तभी तो संक्रमित हुए हैं। ऐसे में उनके खिलाफ एक्शन क्यों नहीं होता। सोचिए तेजी से बिगड़ रहे माहौल में सरकारी तबके में अपनी सेवाएं देने वालों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा है। समय पर उनका वेतन खातों में पहुंच रहा है। जिन प्राइवेट सेक्टरों को बंद कर दिया गया है वहां वेतन तो दूर नौकरियां जा रही है। बाजार में बैठा छोटा- बड़ा व्यापारी इस वायरस से ज्यादा सिस्टम के क्रिया कलापों से सहमा हुआ है। उसे समझ में नहीं आ रहा है कि असली बेईमान या ईमानदार कौन है। कोरोना का संक्रमण जो किसी के साथ भेद नहीं कर रहा या उसे रोकने के लिए  चेहरे देखकर रौब से चालान कर रहा पुलिसवाला या अधिकारी।


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