पत्रकारों के सवालों से ‘लाजवाब’ होते ये ‘रणछोड़’

रणघोष खास. निर्मला रानी


हमारे देश में ‘मीडिया’ व पत्रकारिता का स्तर इतना गिर चुका है कि ‘गोदी मीडिया ‘, ‘दलाल मीडिया’ व ‘चाटुकार मीडिया’ जैसे शब्द प्रचलन में आ गये हैं। दुर्भाग्यवश सत्ता प्रतिष्ठान को ‘दंडवत ‘ करने तथा सत्ता के एजेंडे को प्रसारित करने वाले पत्रकारों को भी दलाल, चाटुकार व बिकाऊ पत्रकारों जैसी उपाधियों से नवाज़ा जा चुका है। कहना ग़लत नहीं होगा कि मुख्य धारा के अधिकांश मीडिया घराने तथा इससे जुड़े पत्रकार, पत्रकारिता जैसे ज़िम्मेदाराना पेशे की मान मर्यादा व कर्तव्यों का पालन करने के विपरीत चाटुकारिता, धनार्जन तथा सत्ता के समक्ष नत मस्तक होने को ही पत्रकारिता मान बैठे हैं। परन्तु आज भी देश में बीबीसी व एनडीटीवी जैसे कुछ गिने चुने मीडिया संस्थान, अनेक सोशल मीडिया साइट्स तथा इन्हीं से जुड़े कुछ पत्रकार ऐसे भी हैं जो ‘वास्तविक पत्रकारिता ‘ की लाज बचाए हुए हैं।और जब ऐसा ही कोई सच्चा पत्रकार किसी भी राजनेता या धर्मगुरु से कुछ ऐसे सवाल पूछ बैठता है जिसका जवाब देना आसान नहीं होता, अथवा जिन सवालों के जवाब यह देना नहीं चाहते, या फिर इनके सामने ऐसे सवाल रख दिये जाते हैं जिनसे यह इसलिये बचना चाहते हैं क्योंकि इनके पास उन सवालों के जवाब नहीं हैं, उस समय इनकी खीज व चिढ़ देखने लायक़ होती है। यह उस समय अपना माइक उतार फेंकते हैं, पत्रकार को अपमानित करते हैं, गाली गलौच व मारपीट पर उतर आते हैं। और भविष्य में ऐसे ‘गुस्ताख़’ पत्रकार को कभी कोई इंटरव्यू भी नहीं देते। देश के अनेक जाने माने पत्रकार इन दिनों अपने ‘दलाल स्वामियों ‘ की ग़ुलामी करने के बजाये अपना यू ट्यूब चैनल चला कर न केवल अपने पेशे की लाज बचा रहे हैं बल्कि देश को वास्तविक पत्रकारिता के तेवरों से भी परिचित करा रहे हैं।परन्तु इन परिस्थितियों में सवाल यह पैदा होता है कि आख़िर जो कथित धर्म गुरु या राजनेता देश व समाज को मार्ग दर्शन देने का दावा करते हैं, जिन्हें यह मुग़ालता रहता है कि वे जो भी करते या कहते हैं केवल वही शाश्वत सत्य है, उन्हीं के पास किसी भी कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार के सवालों का माक़ूल जवाब आख़िर क्यों नहीं होता ? क्यों ऐसे लोग उन पत्रकारों को अपमानित करने लगते हैं यहाँ तक कि हिंसा पर उतारू हो जाते हैं ? पिछले दिनों ग़ाज़ियाबाद के डासना स्थित मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद ने बीबीसी की टीम को एक पूर्व निर्धारित इंटरव्यू दिया। महंत यति नरसिंहानंद का नाम मीडिया के द्वारा पहली बार तब प्रचारित किया गया था जब डासना स्थित उनके मंदिर के बाहर लगे एक प्याऊ पर गत वर्ष 11 मार्च को पानी पीने के कारण एक मुसलमान परिवार के आसिफ़ नामक बच्चे को बुरी तरह से पीटा गया था तथा उसका वीडियो वायरल किया गया था।इस घटना के बाद महंत ने कहा था कि उन्हें इस घटना पर कोई अफ़सोस नहीं है। यही महंत इन दिनों मुसलमानों के विरुद्ध सार्वजनिक रूप से ज़हर उगलते फिर रहे हैं। इन्होंने भारतीय मुसलमानों के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष छेड़ने का आह्वान कर भारत की पूरी दुनिया  में काफ़ी बदनामी भी की है।

यति नरसिंहानंद की बेहूदगी  


पिछले दिनों बीबीसी की टीम यति नरसिंहानंद की सहमति से उनसे समय तय करने के बाद हरिद्वार के सर्वानंद घाट पर उनका साक्षात्कार करने पहुंची। बीबीसी संवाददाता ने जब उनसे हरिद्वार में गत दिनों आयोजित धर्म संसद में मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत भरी टिप्पणी करने से जुड़े विषय के बारे में पूछा गया तो वे भड़क उठे। उन्होंने अपने कोट में लगा माइक उतारकर फेंक दिया और ऊँची आवाज़ में अपशब्द बोलने लगे।यति नरसिंहानंद के समर्थकों ने बीबीसी पत्रकार व उनकी टीम के साथ मार पीट,गाली-गलौच और धक्का-मुक्की की। उन्होंने धमकियाँ दीं और पूरी टीम को काफ़ी देर तक जबरन रोके रखा।बीबीसी पत्रकार सहित इंटरव्यू लेने पहुंची पूरी टीम की तलाशी ली गई और उन्हें धमकाया गया कि वीडियो प्रसारित नहीं होना चाहिए। इस घटना के बाद बीबीसी ने  यति नरसिंहानंद व उनके सहयोगियों के विरुद्ध पुलिस में 341 (ग़ैर-कानूनी तरीक़े से बलपूर्वक रोकना), 352 (बिना उकसावे के हमला), 504 (अपमान, गाली-गलौज, शांति भंग) और 506 (धमकी देना) जैसी अपराधिक धाराओं के अंतर्गत शिकायत दर्ज की गई।

अब ज़रा इनके चरित्र इनकी बोल वाणी, इनकी भाषा इनके इरादों तथा देश की सामाजिक एकता के ताने बाने को छिन्न भिन्न करने के इनके इरादों पर ग़ौर कीजिये और उसी समय इस जैसे व्यक्ति व इसके साथियों की एक ज़िम्मेदार मीडिया संस्थान की टीम के साथ हिंसक बर्ताव करने के हौसले को भी देखिये तो साफ़ पता चलेगा कि इसके पास पत्रकार द्वारा पूछे गये सवाल का जवाब ही नहीं था।

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