राव इंद्रजीत सिंह के गैर भाजपाई बनने के दिन शुरू, भूपेंद्र यादव- डॉ. सुधा की मोहर ही काफी है

Danke Ki Chot Parरणघोष खास. प्रदीप नारायण


केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह को भाजपा में 7 साल बाद  महसूस हो रहा या करवाया जा रहा है कि वे अब गैर भाजपाई बनते जा रहे हैं। इसके लिए भाजपा शीर्ष नेतृत्व से आए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव एवं भाजपा संसदीय बोर्ड की सदस्या डॉ. सुधा यादव की मौजूदगी ही काफी है। रविवार को डॉ. सुधा यादव के ससुराल गांव धामलावास में भूपेंद्र यादव ने मंच से इस पर मोहर लगाते हुए कह दिया कि यह इलाका डॉ. सुधा के नेतृत्व में आगे बढ़ना चाहता है। वे छोटे भाई की तरह उनके साथ कदमताल करते रहेंगे। यहां बताना जरूरी है कि भूपेंद्र यादव भाजपा के सुपर-5  नेताओं में आते हैं। बड़े अह्म फैसलों में उनकी सलाह को गंभीरता से लिया जाता है। वहीं पोजीशन अब डॉ. सुधा की बन चुकी है।  मतलब साफ है कि राव इंद्रजीत के लिए भाजपा में ऊपर से लेकर नीचे तक दाए से बाए तक ऐसी गुंजाइश नहीं बची है जहां उनकी आवाज को ताकत मिल सके। देखा जाए तो राव अपने राजनीतिक जीवन में पहली बार अंदर बाहर चौतरफा घिरे हुए नजर आ रहे हैं। 2013 में जब उन्होंने कांग्रेस छोड़ी तो उन्हें रोकने के लिए कई हाथ आगे आए थे। आज भाजपा में उनके जाने  की खुशी में कमल का फूल लेकर खड़े उनके विरोधियों की तादाद ज्यादा है।

45 साल की सफल राजनीति में राव का इधर उधर होना बड़ी बात नहीं है। राजनीति की हवा का रूख कब किस दिशा की तरफ मूड जाए कुछ भी कहा नहीं जा सकता। इसलिए मौजूदा हालात के मद्देनजर ही राजनीति खाका तैयार होता है। फिलहाल भाजपा में राव दिन प्रतिदिन सिकुड़ते जा रहे हैं। भाजपा राव पर अपना होमवर्क कर रिपोर्ट बना चुकी है जबकि राव अभी उलझन में है। चंडीगढ़ में भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नडडा की मौजूदगी में हुई मीटिंग में राव के चेहरे की खामोशी व गंभीरता बता रही थी कि वे समय की नजाकत को देखते हुए अपने मिजाज को कम से कम एक साल तक साइलेंट मोड पर रखने का प्रयास करेंगे। 2024 अभी  दूर है। राव की सबसे बड़ी चुनौती बेटी आरती राव का  दीपेंद्र हुडडा, दुष्यंत चौटाला की तरह राजनीति में युवा के तौर पर  निखर कर नहीं आना है। हालांकि आरती ने पिछले एक- दो सालों में काफी मेहनत की है लेकिन पिता की विरासत को संभालने के लिए उसे काफी मेहनत करनी पड़ेगी। दूसरा परिवारवाद की राजनीति का खात्मा करने में भाजपा अमादा नजर आ रही है। ऐसे में उम्रदराज हो रहे राव के सामने दो विकल्प ही बचे हैं। पहला भाजपा के भीतर रहकर ही किसी तरह अपने वजूद को बचाने का रास्ता निकाल ले जो संभव नजर नहीं आ रहा। दूसरा अपना अलग संगठन बनाकर अपनी समर्थकों की फौज के साथ मैदान में उतर आए। देशभर में अनेक दिग्गज नेता ऐसा करते आए हैं। इसके अलावा राव के पास कोई चारा नहीं..।

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