रेवाड़ी सीट पर भाजपा को शहीद होने में आनंद आने लगा है

भाजपा की लड़ाई ने चिरंजीव राव को समय से पहले समझदार बना दिया


रणघोष खास. रेवाड़ी से ग्राउंड रिपोर्ट


दक्षिण हरियाणा की राजनीति का मुख्यालय कहलाए जाने वाली रेवाड़ी विधानसभा सीट इस बार भी जारी  भाजपा की आपसी लड़ाई के चलते कांग्रेस के हाथ को मजबूत कर सकती है। 2019 के चुनाव में इसी वजह से पूर्व मंत्री कप्तान अजय सिंह यादव के बेटे चिरंजीव राव विधायक बन गए थे वो भी महज 1317 वोटों से। उस चुनाव के बाद से आज तक के समय ने इस युवा विधायक को समय से पहले समझदार बना दिया जबकि भाजपा सबकुछ होते हुए भी नासमझी करती जा रही है।  2019 में जब चिरंजीव राव ने चुनाव लड़ा तो वे अपने पिता की जमीन पर डटे और खड़े थे। उस समय हालात एकदम उनके पक्ष में नही थे। भाजपा की पोजीशन काफी बेहतर नजर आ रही थी लेकिन ऐन वक्त पर टिकट को लेकर हुए घमासान ने सारे समीकरण बदल दिए ओर सही कसर भाग्य ने चिंरजीव राव साथ देकर पूरी कर दी। इस बार भी चिंरजीव मैदान में आ चुके हैं। वे अपनी टिकट को लेकर इतने आश्वास्त है की कांग्रेस सरकार आने पर डिप्टी सीएम का कोटा भी अपने नाम कर लिया जिस पर कांग्रेस हाईकमान में काफी इधर उधर की चर्चा हुई। चिंरजीव ने चुनाव के समय को देखते हुए डोर टू डोर अभियान भी शुरू कर दिया  है जबकि भाजपाई टिकट के इंतजार में अपने कदम तौर तरीकों से नहीं बढ़ा पा रहे हैं। प्रमुख दावेदार अपने अपने स्तर पर अपने समर्थकों के साथ रणनीति पर  विचार जरूर कर रहे हैं लेकिन उनके चेहरों पर टिकट को लेकर बैचेनी साफ नजर आ रही है। इस स्थिति में चिरंजीव राव के लिए यह स्थिति खुद को मजबूत करने के लिए इसलिए बेहतर है की उन्हें चुनौती देने वाला पार्टी के अंदर बाहर इस सीट पर कोई नजर नही आ रहा है। भाजपा में टिकट की घोषणा होते ही हालात इधर उधर हो जाएंगे। इससे इंकार नही किया जा सकता। 2019 में ऐसा हो चुका है। ऐसा भी नही है की यहा की जनता भाजपा की लड़ाई में पूरी तरह से कांग्रेस के साथ नजर आएगी। भाजपा संगठन के तोर पर काफी मजबूत है जबकि कांग्रेस पूरी तरह से धाराशाही नजर आ रहा है। चिंरजीव राव के पास कांग्रेस के नाम पर अपने समर्थकों की फौज है। जरूरी नही है की जो कांग्रेसी है वह चिरंजीव के पक्ष में नजर आएगा। यहा भी कांग्रेस में एक धड़ा ऐसा है जो कप्तान का धुर विरोधी  है ओर वह किसी सूरत में नही चाहेगा की चिरंजीव राव यहां से जीत दर्ज करे। भाजपा की संगठनात्मक ताकत यह है की उसमें आपसी गुटबाजी पानी के बबुले की तरह है जिसे कंट्रोल करने के लिए हाईकमान का एक आदेश ही काफी होता है  जबकि कांग्रेस में आपसी लड़ाई बिच्छु जैसी है। किस पर कब डंक मारना है यह इशारा भी कांग्रेस हाईकमान से मिलता है। कुल मिलाकर आज की स्थिति में भाजपा इस सीट पर काफी हद तक मजबूत होते हुए भी आपसी चौधर की लड़ाई में चिरंजीव राव को मजबूती की तरफ ले जा रही है। पिछली बार से इस बार कांग्रेस की पोजीशन काफी  बेहतर भी है। इसलिए चिरंजीव राव के चेहरे पर नजर आ रही मुस्कान यह बताने के लिए काफी है की सबकुछ 2019 वाली कहानी दोहराई जा रही है। बदला कुछ नही।