रणघोष खास. मुनज्ज अनवार की रिपोर्ट, साभार बीबीसी
पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम के बारे में अमेरिका की आशंका बढ़ती ही जा रही है.पहली बार अमेरिकी प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने औपचारिक तौर पर दावा किया है कि पाकिस्तान ने एक ऐसी ‘कारगर मिसाइल टेक्नोलॉजी’ तैयार कर ली है जो उसे अमेरिका को भी निशाना बनाने के योग्य बनाएगी.
अमेरिकी थिंक टैंक कार्नेगी एंडॉमेन्ट के बैनर तले आयोजित होने वाले एक समारोह को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के राष्ट्रीय सुरक्षा उप सलाहकार का कहना है कि पाकिस्तान ने लॉन्ग रेंज मिसाइल सिस्टम और ऐसे दूसरे हथियार बना लिए हैं जो उसे बड़ी रॉकेट मोटर्स से परीक्षण करने की क्षमता देते हैं.उनका कहना है, “अगर यह सिलसिला जारी रहता है तो पाकिस्तान के पास दक्षिण एशिया से बाहर भी अपने लक्ष्यों को निशाना बनाने की क्षमता आ जाएगी, इसमें अमेरिका भी शामिल है और इस बात से पाकिस्तान की संस्थाओं पर वास्तविक सवाल उठते हैं.”अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा उप सलाहकार का बयान एक ऐसे समय में सामने आया है जब दो दिन पहले ही बाइडन प्रशासन ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों से लैस लंबी दूरी तक मार करने वाले बैलिस्टिक मिसाइल प्रोग्राम से कथित तौर पर जुड़े चार संस्थानों पर प्रतिबंध लगा दिया है. इनमें इस मिसाइल प्रोग्राम की निगरानी करने वाला सरकारी संस्थान नेशनल डेवलपमेंट कॉम्प्लेक्स (एनडीसी) भी शामिल है.अमेरिका के लिए संभावित ख़तरों के बारे में बात करते हुए अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा उप सलाहकार जॉन फाइनर का कहना था कि ऐसे देशों की सूची छोटी है जो परमाणु हथियार भी रखते हों और उनके पास सीधे अमेरिका को निशाना बनाने की क्षमता भी हो. अमेरिका के ऐसे विरोधी हैं- रूस, उत्तर कोरिया और चीन.उनके अनुसार, “हमारे लिए यह मुश्किल होगा कि हम पाकिस्तान के उठाए गए क़दमों को अमेरिका के लिए ख़तरे के तौर पर न देखें. मुझ समेत हमारे प्रशासन के सीनियर अधिकारियों ने कई बार इन आशंकाओं को पाकिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों के सामने रखा है.”अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के उप सलाहकार का कहना है कि पाकिस्तान लंबे समय से अमेरिका का पार्टनर रहा है और वह साझा हितों पर पाकिस्तान के साथ काम करने की भी इच्छा रखते हैं. लेकिन उनका कहना था, “इसके बाद हमारे पास यह सवाल भी उठता है कि पाकिस्तान ऐसी क्षमता क्यों प्राप्त कर रहा है जो हमारे ख़िलाफ़ इस्तेमाल हो सके.”उनके अनुसार, “दुर्भाग्य से हमें लगता है कि पाकिस्तान हमारी और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आशंकाओं को गंभीरता से लेने में नाकाम हुआ है.”अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा उप सलाहकार के बयान के बाद बीबीसी ने विशेषज्ञों से बात कर यह जानने की कोशिश की है कि अमेरिका को यह आशंका क्यों है कि पाकिस्तान ऐसी मिसाइल तैयार कर रहा है जो अमेरिका में लक्ष्यों को निशाना बना सकेगी? इस समय इस आशंका की वजह क्या है और क्या पाकिस्तान सच में ऐसी मिसाइल बना सकता है जो अमेरिका तक पहुंच जाए?इसके अलावा इस लेख में हमने यह भी जानने की कोशिश की है कि पाकिस्तान का वह मिसाइल प्रोग्राम, जो हाल में अमेरिकी प्रतिबंधों का निशाना बन रहा है, वह क्या है? इसमें कौन-कौन सी मिसाइल शामिल हैं और अमेरिका को इनसे क्या आशंकाएं हैं? इस लेख में हमने यह भी समझने की कोशिश की है कि अमेरिकी प्रतिबंध पाकिस्तान के मिसाइल प्रोग्राम को कैसे प्रभावित कर सकते हैं.
पाकिस्तान क्या भारत को देखकर हथियार बनाता है?
इस्लामाबाद में रहने वाले रक्षा मामलों के विशेषज्ञ सैयद मोहम्मद अली के अनुसार पाकिस्तान पर लगाया गया अमेरिकी प्रशासन का हाल का आरोप तकनीकी सच्चाइयों से परे है.उनके अनुसार पहली वजह तकनीकी है, दूसरी रणनीतिक और तीसरी वजह आर्थिक या राजनीतिक है.सैयद मोहम्मद अली का दावा है कि पाकिस्तान की बैलिस्टिक मिसाइलों में बदलाव लाने का मक़सद भारत के अलावा किसी दूर-दराज़ के देश को निशाना बनाना नहीं, बल्कि भारत के तेज़ी से बढ़ रहे मिसाइल डिफ़ेंस सिस्टम का मुक़ाबला करना या उसे नाकाम बनाना है.
इसका मतलब यह है कि दुश्मन जितना भी आधुनिक रक्षा प्रणाली बना ले, आपकी बैलिस्टिक या क्रूज़ मिसाइल उसे नाकाम बनाने की क्षमता रखती हो और उसका रेंज से कोई संबंध नहीं है.वह इसराइल के पांच स्तरों पर आधारित डिफ़ेंस सिस्टम का उदाहरण देते हैं जिसमें एयरो और आयरन डोम से लेकर डेविड्स स्लिंग, इंटरसेप्टर और एंटी एयरक्राफ़्ट गन भी शामिल हैं.”अगर कोई मिसाइल पांच स्तरों से निकलकर अपने लक्ष्य को निशाना बनाकर उसे नष्ट करने की क्षमता रखती है तो इसका एमआईआरवी (मल्टीपल इंडिपेंडेंटली टारगेटेबल री-एंट्री व्हीकल) से लैस होना ज़रूरी होता है, जैसा कि पाकिस्तानी मिसाइल अबाबील है.”
सैयद मोहम्मद अली के अनुसार एमआईआरवी का मतलब एक ऐसी मिसाइल है जो एक ही समय पर कई वॉरहेड्स ले जा सकती है और यह स्वतंत्र रूप से प्रोग्राम्ड होते हैं. इन वॉरहेड्स की संख्या तीन से आठ और उससे अधिक भी हो सकती है. रूस के मामले में यह 12 तक है.यह मिसाइलें स्वतंत्र रूप से अपने-अपने लक्ष्य की ओर जाती हैं और हर एक का लक्ष्य की ओर जाने का रास्ता भी अलग होता है. एक मिसाइल के ज़रिए जब इसे लॉन्च किया जाता है और जब उसकी री-एंट्री व्हीकल दोबारा हवा में आती है तो वह री-एंट्री व्हीकल अलग दिशाओं में फैलकर अपने-अपने लक्ष्य को निशाना बनाती है.वह इसका उदाहरण लड़ाकू विमान की फ़ॉर्मेशन से देते हैं जो लक्ष्य तक पहुंचने से पहले, वहां पहुंचकर हमले के दौरान और बाद में अलग होती है. फ़ाइटर प्लेन किसी टारगेट पर पहुंचकर सरफ़ेस टू एयर मिसाइल और एंटी एयरक्राफ़्ट गन से बचने के लिए इस अंदाज़ में इधर-उधर फैल जाती हैं कि वह सब दुश्मन की फ़ायरिंग की चपेट में आए बिना अलग-अलग दिशाओं से टारगेट पर हमला कर सकें.सैयद मोहम्मद अली के अनुसार अमेरिका के पास ऐसी मिसाइल Minuteman III है और भारत ने हाल ही में इस टेक्नोलॉजी में सुधार लाना शुरू किया है.सैयद मोहम्मद अली का दावा है कि पाकिस्तान अगर इसको बेहतर बना रहा है तो उसका मक़सद भारत के अलावा किसी और देश को लक्ष्य बनाना नहीं है मगर भारत के सिस्टम में आने वाले बदलाव (चाहे वह एस 400 के बारे में हो या किसी और के बारे में) को नाकाम बनाकर उनकी टारगेट तक पहुंचाने की क्षमता को कुंद करना है.उनका कहना है, “पाकिस्तान किसी ऐसी टेक्नोलॉजी पर काम नहीं कर रहा जो पहले से भारत के पास नहीं है और भारत न केवल आईसीबीएम (इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल) बना रहा है बल्कि उन्हें टेस्ट भी कर चुका है जिनकी रेंज 5000 किलोमीटर से अधिक है. इसका मतलब है कि उनका टारगेट पाकिस्तान या चीन नहीं जबकि दूसरी ओर पाकिस्तान ने इस रेंज की किसी मिसाइल का आज तक परीक्षण नहीं किया.”उनका कहना है कि पाकिस्तान पर यह आरोप तकनीकी सच्चाई से परे हैं.
इसके बारे में ऑस्ट्रेलिया के शहर कैनबरा की नेशनल यूनिवर्सिटी में स्ट्रैटेजिक ऐंड डिफ़ेंस स्टडीज़ के शिक्षक डॉक्टर मंसूर अहमद कहते हैं, “जब तक एक सिस्टम (मिसाइल) एक रेंज पर टेस्ट नहीं हो जाता तब तक यह नहीं कहा जा सकता कि इस देश ने यह क्षमता प्राप्त कर ली है और पाकिस्तान ने अब तक ऐसी कोई मिसाइल टेस्ट नहीं की है जिसकी रेंज भारत से बाहर हो.”सैयद मोहम्मद अली का कहना है कि भारत एसएसबीएन (शिप, सबमर्सिबल, बैलिस्टिक, न्यूक्लियर या न्यूक्लियर पावर्ड बैलिस्टिक मिसाइल) सबमरीन या बैलिस्टिक मिसाइल फ़ायर करने की क्षमता रखने वाली पनडुब्बियां भी बना रहा है.वह कहते हैं, “मिसाइलों की बहस में ज़मीन से ज़मीन पर मार करने वाली मिसाइलों को तो बहुत महत्व दिया जाता है मगर समंदर की सतह के नीचे या परमाणु पनडुब्बियां रखने वाले देश के बारे में बात नहीं की जाती जिसमें रेंज का चक्कर ही नहीं होता क्योंकि किसी भी देश के पास पनडुब्बी ले जाकर वहां से यह मिसाइल फ़ायर की जा सकती है.”उनके अनुसार इसकी मिसाल भारत की ‘अरिहंत’ और ‘अरिघात’ परमाणु पनडुब्बियां हैं जो अब भारत की नौसेना का हिस्सा बन चुकी हैं.याद रहे कि अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, रूस और चीन के पास भी परमाणु हथियारों से लैस पनडुब्बियां हैं यानी यह पांच देश दुनिया के किसी भी देश पर परमाणु हमला करने की क्षमता रखते हैं.सैयद मोहम्मद अली का कहना है कि दो परमाणु पनडुब्बियों को अपनी नौसेना के बेड़े में शामिल करने के बाद भारत ने भी यह क्षमता प्राप्त कर ली है यानी वह उन देशों की पंक्ति में शामिल हो गया है जो अमेरिका समेत दुनिया के किसी भी देश पर परमाणु हमला करने की क्षमता रखते हैं. उनका कहना है कि केवल ज़मीन की सतह से ज़मीन तक मार करने वाली मिसाइलों पर बहस महत्वपूर्ण रणनीतिक पहलुओं को नज़रअंदाज़ करती है.सैयद मोहम्मद अली का मानना है कि पाकिस्तान अमेरिका को निशाना बनाने का सोचे, आर्थिक और राजनीतिक दृष्टि से यह संभव नहीं क्योंकि पाकिस्तान का सबसे बड़ा निर्यात बाज़ार (लगभग 6 अरब डॉलर) अमेरिका है और वहां रह रहे पाकिस्तानियों की बहुत बड़ी संख्या उस देश से पैसे भेजती है. इसके अलावा पाकिस्तान अपनी आर्थिक समस्याओं के हल (आईएमएफ़) के लिए अमेरिका के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना अपनी विदेश नीति के साथ-साथ राष्ट्रीय सुरक्षा का महत्वपूर्ण लक्ष्य समझता है.