- रणघोष खास. लुईस बारूचो, साभार बीबीसी
जब लुईसा टोस्कानो को पता चला कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर (स्तन कैंसर) है, तो वह सन्न रह गई थीं.
ब्राज़ील में रहने वाली दो बच्चों की मां, 38 साल की टोस्कानो कहती हैं, “इसकी बिल्कुल भी आशंका नहीं थी. मैं युवा थी, स्वस्थ और फ़िट थी, कोई रिस्क फ़ैक्टर भी नहीं था, मेरे साथ ऐसा नहीं होना था. मुझे बिल्कुल भरोसा नहीं हुआ. कैंसर मेरी कल्पना से बहुत दूर था.”लुईसा को मार्च 2024 में स्टेज 3 के कैंसर का पता चला, जिसका मतलब था, यह पहले ही बहुत आगे के चरण में था.उनकी ब्रेस्ट सर्जरी हुई और साढ़े चार महीने से ज़्यादा समय तक कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से होकर गुजरना पड़ा.बीते अगस्त में ही उनका इलाज पूरा हुआ, लेकिन कैंसर दोबारा न उभरे, इसके लिए दवाएं अभी भी लेनी पड़ रही हैं.वो याद करती हैं, “कीमोथेरेपी की बहुत अधिक डोज़ थी, लेकिन मेरे शरीर ने इसे बखूबी संभाला. इसका श्रेय मैं अपने सक्रिय होने और शारीरिक क्षमता को देती हूं.”सर्जरी के बारे में उन्होंने बताया कि उन्हें पूरा ब्रेस्ट नहीं हटाना पड़ा, “सबसे मुश्किल था बालों को खोना. यह बहुत तेज़ी से बड़े पैमाने पर हुआ. जब मैं शीशे में खुद को देखती थी तो डर जाती थी, और मेरे बच्चों पर भी इसका असर पड़ा.”यह सिर्फ़ लुईसा की अकेली कहानी नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में यह बीमारी बढ़ रही है. अधिक से अधिक युवा लोग कैंसर की ग़िरफ़्त में आ रहे हैं और अक्सर ऐसे नौजवान हैं जिनका पूर्व में कैंसर का कोई पारिवारिक इतिहास भी नहीं रहा है.जैविक, पर्यावरणीय और लाईफ़स्टाइल जैसे कारकों के चलते, आम तौर पर कैंसर बड़ी उम्र के लोगों में होता है. उदाहरण के लिए, उम्र बढ़ने के साथ कोशिकाओं का विभाजन भी बढ़ता है, जिससे म्युटेशन बढ़ता है और कैंसर का जोखिम बढ़ता है.इसलिए, ऑन्कोलॉजिस्ट लंबे समय तक मानते रहे हैं कि युवाओं में कैंसर के पीछे अनुवांशिक फ़ैक्टर होते हैं, जैसे ब्रेस्ट कैंसर में बीआरसीए1 और बीआरसीए2 म्युटेशन का होना.
हालांकि लुईसा जैसे और मरीज़ों में अनुवांशिक म्युटेशन का कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला.
बढ़ते मामले
कम उम्र में कैंसर पर आई एक रिपोर्ट के अनुसार ब्रेस्ट कैंसर के मामलों में वृद्धि हुई है.
बीएमजे ऑन्कोलॉजी में छपी एक हालिया रिपोर्ट में पाया गया है कि 1990 से 2019 के बीच पूरी दुनिया में 50 साल से कम उम्र के लोगों में कैंसर के मामले 79% बढ़े हैं.इसी आयु वर्ग में कैंसर से जुड़ी मौतों में 28% का इज़ाफ़ा हुआ है.इस अध्ययन में 204 देशों में 29 प्रकार के कैंसर का विश्लेषण किया गया.इसी तरह लांसेट पब्लिक हेल्थ में आई एक रिपोर्ट में पता चला कि अमेरिका में सभी पीढ़ियों में 17 प्रकार के कैंसर लगातार बढ़े हैं, ख़ास तौर पर 1965 से 1996 के बीच पैदा होने वाले लोगों में.अमेरिकन कैंसर सोसाइटी (एसीएस) की एक नई रिपोर्ट कहती है कि 2012 और 2021 के बीच, 50 साल से कम उम्र की गोरी महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले सालाना 1.4% की दर से बढ़े, जबकि इसी दौरान 50 साल या उससे अधिक उम्र की गोरी महिलाओं में कैंसर मामलों में सालाना 0.7% की वृद्धि देखी गई.बीएमजे ऑन्कोलॉजी रिपोर्ट के अनुसार, नैसोफैरिंजियल, पेट और आंत के कैंसर भी युवा लोगों में बढ़े हैं.
संभावित कारण
लुईसा कहती हैं कि ब्रेस्ट कैंसर के ख़िलाफ़ उनकी लड़ाई में उनके परिवार के समर्थन की अहम भूमिका रही.हालांकि शोधकर्ता कारणों की पहचान करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि लांसेट स्टडी ने चेतावनी दी है कि ऐसे मामलों में लगातार वृद्धि, कैंसर रोकथाम में हुई दशकों की प्रगति को उलट सकती है.
बीएमजे ऑन्कोलॉजी और लांसेट की रिपोर्टों के अनुसार अब तक मांस, सोडियम की अधिकता वाला भोजन खाना, शराब और तंबाकू का इस्तेमाल कैंसर के प्रमुख कारण माने जाते रहे हैं.इसके अलावा फल सब्ज़ी और दूध कम लेना भी इसका कारण बन सकते हैं.विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि कैंसर के बढ़ते जोखिम का संबंध मोटापे से है, क्योंकि मोटापे के कारण शरीर के अंदर सूजन (इनफ़्लेमेशन) और हार्मोन में बदलाव होते हैं.लांसेट रिपोर्ट का कहना है कि अमेरिका में युवा लोगों में होने वाले 17 में से 10 कैंसर के मामलों का संबंध मोटापे से है. इनमें किडनी, ओवरी, लिवर, पैंक्रियाज़ और पित्ताशय के कैंसर शामिल हैं.
हालांकि, ये फ़ैक्टर सभी मामलों के कारणों पर रोशनी नहीं डालते. वैज्ञानिक और संभावित कारणों को तलाशने में जुटे हुए हैं.कुछ का कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों या स्ट्रीट लाइट्स के अप्राकृतिक रोशनी के लगातार संपर्क में रहने से शरीर की जैविक घड़ी बाधित होती है. इससे ब्रेस्ट, आंत, ओवरी और प्रोस्टेट के कैंसर का ख़तरा बढ़ता है.अन्य अध्ययनों ने सुझाया है कि शिफ़्टों में काम करना, जिसमें रात में देर तक रोशनी में रहने के कारण मेलाटोनिन का स्तर कम होता है, जो कैंसर को बढ़ने में मदद करता है.
जून 2023 में, कोलोरेक्टल सर्जन फ्रैंक फ़्रीज़ेल ने आंत के कैंसर में माइक्रोप्लास्टिक की भूमिका पर शोध करने का सुझाव दिया था और कहा था ये आंत की अंदरूनी परत को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
अन्य शोधकर्ताओं ने तर्क दिया कि पैकेज़्ड फ़ूड में मिलाए जाने वाले रसायन, जैसे इमल्सीफ़ायर और कलरेंट आदि आंत में सूजन पैदा करते हैं और डीएनए को क्षति पहुंचाते हैं.अमेरिकन एसोसिएशन फ़ॉर कैंसर रिसर्च के अनुसार, पेट की गड़बड़ी सिर्फ आंत के कैंसर का ही कारण नहीं है, बल्कि ब्रेस्ट और ब्लड कैंसर में भी यह एक फ़ैक्टर है.एंटीबॉयोटिक का इस्तेमाल साल 2000 से ही वैश्विक रूप से 45% बढ़ा है. कुछ शोधकर्ताओं का कहना है कि यह भी पेट में जीवाणुओं की व्यवस्था में बदलाव लाने का एक बड़ा कारण है.
इटली के वैज्ञानिकों के एक समूह ने 2019 में जारी अपनी रिपोर्ट में इसका संबंध फेफड़े के कैंसर, लिम्फोमास, पैंक्रियाटिक कैंसर, रीनल सेल कार्सिनोमा और मल्टिपल मायेलोमा से भी जोड़ा.बीएमजे ऑन्कोलॉजी रिपोर्ट के सह लेखक और स्कॉटलैंड के एडिनबरा यूनिवर्सिटी में कोलोप्रोक्टोलॉजी के प्रोफ़ेसर मैल्कम डनलप का कहना है कि सभी पीढ़ियों में लंबाई का बढ़ना भी बढ़ते कैंसर दरों का कारण हो सकता है.वह कहते हैं, “आम तौर पर पूरी दुनिया में इंसान वास्तव में लंबा होता जा रहा है और लंबाई और तमाम कैंसरों के बीच एक मजबूत संबंध है, उदाहरण के लिए कोलोन कैंसर यानी आंत का कैंसर.”
अधिक कोशिकाओं, हार्मोन में वृद्धि और आंत की बढ़ी सतह, जोकि म्युटेशन को बढ़ने का मौका देती है, इन्हें वह कैंसर के जोख़िम से जोड़ते हैं.दुनिया के अग्रणी कैंसर जेनेटिक्स एक्सपर्ट डॉ. डनलप का माना है कि कम उम्र में कैंसर होने के एक से अधिक कारण हैं, लेकिन उन्हें पहचानना मुश्किल है.
वो कहते हैं कि युवाओं में कैंसर के बढ़ते मामलों के बावजूद, रिस्क कम होने के चलते उनमें कैंसर की स्क्रीनिंग कम होती है.यूएस नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट (एनसीआई) के अनुसार, 80% कैंसर के मामले, 55 साल या उससे अधिक उम्र के लोगों में पता चला है.
डॉक्टरों में जागरूकता की ज़रूरत
ब्राज़ीलियन सोसाइटी ऑफ़ क्लीनिकल ऑन्कोलॉजी के डायरेक्टर डॉ. एलेक्ज़ेंडर जैकोम, कम उम्र में होने वाले कैंसर से पैदा होने वाली दीर्घकालिक जटिलता को लेकर चिंतित हैं.हालांकि मौजूदा हालात ने यूनियन फ़ॉर इंटरनेशनल कैंसर कंट्रोल (यूआईसीसी) जैसे बड़े संगठनों को डॉक्टरों के बीच कम उम्र के मरीजों में कैंसर के लक्षणों के बारे में जागरूकता अभियान चलाने को प्रेरित किया है.डॉ. एलेक्ज़ेंडर जैकोम कहते हैं, “अगर 60 साल से अधिक उम्र का मरीज़ कब्ज़ियत, गैस बनने आदि की शिकायत करता है तो डॉक्टर इसे गंभीरता से लेते हैं और पूरी स्क्रीनिंग की सलाह देते हैं. लेकिन अगर 30 से 40 साल के बीच कोई व्यक्ति, जो सक्रिय है और आंत के कैंसर जैसे मामले नहीं होने की संभावना है, तो इन शिकायतों को मामूली दर्द कह कर ख़ारिज़ कर दिया जाता है.”वो कहते हैं, “ये लोग अपने जीवन के शुरुआती चरण में होते हैं, अपना परिवार शुरू कर रहे होते हैं, वो सबकुछ जीने के लिए करते हैं. कैंसर का पता लगाना उनके और उनके करीबियों के लिए दिल तोड़ने जैसा है.”लेकिन जैकोम कहते हैं कि युवाओं में कड़ी दवाओं को झेलने की ताक़त होती है, इसलिए शुरू में बीमारी पकड़ में आने पर उनमें सुधार जल्दी होता है.डॉ. डनलप कहते हैं, “कम उम्र में कैंसर से प्रभावित लोगों को बुढ़ापे में इस ख़तरे से जूझना पड़ सकता है. पता नहीं भविष्य में ये मामले और बढ़ेंगे या इस ख़ास उम्र समूह के लोगों पर किसी ख़ास चीज़ का असर हुआ है?”
जीवन बदल देने वाला अनुभव
कैंसर के इलाज से गुजर चुकीं लुईसा कहती हैं, “सबसे बड़ी सीख तो यही है कि ज़िंदगी के सबसे कठिन और सबसे खुशनुमा समय को एक तरह से लेना चाहिए. जब अंधेरा आता है, उसे गुजर जाने देना चाहिए. मैं अब मजबूत महसूस करती हूं और हर अच्छे-बुरे लम्हों का आनंद लेती हूं ये जानते हुए कि ये भी गुज़र जाएंगे.”
दूसरों को उनकी सलाह , “वर्तमान में जियो. अपने शरीर की सुनो, कुछ दिन आप आराम कर सकते हैं. कैंसर एक सदमा, एक छाया लेकर आता है, लेकिन इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है. मुश्किल से मुश्किल वक़्त में भी ज़िंदगी है, आगे बढ़ने का मौका है और ज़िंदगी का एक मतलब है.”